कुछ दिन पहले इस खबर की बड़ी चर्चा हुई कि झारखंड ने नागालैंड के विरुद्ध रणजी ट्रॉफी नॉक-आउट प्री क्वार्टरफाइनल में अपने बल्लेबाजों को बैटिंग प्रैक्टिस देने की ऐसी चाह में 1297 रन ठोक दिए। मैच तो उस वक्त ही खत्म हो गया था जब झारखंड को पहले बल्लेबाजी के बाद 591 रन की भारी बढ़त मिली। उसके बाद स्पष्ट जीत की कोशिश की जगह, वे खेलते रहे और बढ़त को 1000 के पार पहुंचा कर ही चैन लिया- रिकॉर्ड रहा 1008 रन। तब ये भी कहा गया कि भारत में ही क्रिकेट का ऐसा मजाक हो सकता है।
ऐसा नहीं है। इंग्लैंड में 2022 काउंटी चैंपियनशिप सीजन शुरू हो चुका है। उसमें एक मैच वारविकशायर-सरे, एजबेस्टन में खेला गया। जैसे ही मेजबान वारविक फॉलो-ऑन की संभावना से बचे और अधिकतम बैटिंग पॉइंट हासिल कर लिए तो मैच वहीं ख़त्म हो गया था- तब भी खेलना जारी रखा। आखिरी स्कोर : सरे 428-8 पारी समाप्त घोषित और 43-0, वारविकशायर 531- मैच ड्रॉ। अब देखिए कि वारविक के अपनी पारी को लंबा खींचने से हासिल क्या हुआ और जो क्रिकेट हुई, उसमें था क्या :
* नंबर 11 ओली हैनोन-डेल्बी ने 94 मिनट (67 गेंद) लिए अपना खाता खोलने में- काउंटी क्रिकेट में नया रिकॉर्ड। उनका स्कोर रहा- 89 गेंद में 11* रन। * माइकल बर्जेस ने ओली के साथ 10 वें विकेट के लिए 122 रन जोड़े- इसमें 6 छक्के थे। ये साझेदारी 134 मिनट तक चली।* जब ओली बैटिंग के लिए आए तो बर्जेस 69 पर थे। बीस ओवर बाद, ओली ने कोई रन नहीं बनाया था और बर्जेस 100 पर पहुंच गए थे।* माइकल बर्जेस ने कुल 178 रन बनाए : करियर का सर्वश्रेष्ठ स्कोर जिसमें 128 रन बाउंड्री शॉट से बने- 20 चौके और 8 छक्के। * गेंदबाज थे : विल जैक (रिकॉर्ड : सिर्फ 5 प्रथम श्रेणी विकेट), रयान पटेल (मीडियम पेस से भी धीमे) और रोरी बर्न्स (बस नाम के गेंदबाज) और अपने लंबे बालों के साथ ऐसी मस्ती से गेंदबाजी की मानो उनका हो रही क्रिकेट से कोई लेना-देना ही न हो।
ये सब रिकॉर्ड पढ़कर अच्छा लगता है पर हासिल क्या हुआ? मैच तो आखिर में ड्रा ही रहा- बोर ड्रा। इसका मतलब कतई ये मत निकालिए कि हर ड्रा बोर होता है। अभी कुछ दिन पहले पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया के बीच दो ड्रा खेले गए। टेस्ट इतिहास में 2461 टेस्ट में से सिर्फ 780 (32% से भी कम) ही ड्रा हुए हैं। पाकिस्तान के पहले 128 टेस्ट में से 65 ड्रा (51%) थे। अक्टूबर 1961 और मार्च 1984 के बीच इंग्लैंड ने वहां लगातार 11 ड्रॉ खेले- उस दौर में पाकिस्तान द्वारा आयोजित सभी ड्रा वाली पांच में से तीन सीरीज शामिल थीं। 1960 के दशक में पाकिस्तान में खेले सभी टेस्टों में से 69% ड्रा हुए। इसके बाद 1970 के दशक में 71% और 1980 के दशक में 56% ड्रा थे। 24 साल में पहली बार देश में वापसी करते हुए ऑस्ट्रेलिया ने वहीं से शुरुआत की, जहां छोड़ा था- अपने पिछले 10 मैचों में 8 ड्रॉ के साथ। ऐसे बोर ड्रा खेलने का क्या फायदा? मजे की बात ये कि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के चीफ रमीज राजा ने कहा- ‘एक ड्रॉ मैच, टेस्ट क्रिकेट के लिए कोई अच्छी मशहूरी नहीं है।’
इस बीच वेस्टइंडीज और इंग्लैंड के बीच सीरीज के पहले दो टेस्ट ड्रा रहे और तीसरे में वेस्टइंडीज को जीत मिली। ड्रा मैच आधुनिक टेस्ट के लिए खतरा और बर्बादी हैं। हाल के सालों में लिमिटेड ओवर क्रिकेट की स्टाइल टेस्ट क्रिकेट में आने के बाद ड्रा की गिनती काम हो गई थी पर इन दोनों सीरीज में फिर से ड्रा खेले गए। हर ड्रा बोर नहीं होता। जब ड्रा ‘ग्रेट एस्केप’ बन जाता है- तब तो कहना ही क्या? उदाहरण के लिए बाबर आजम ने जिस अंदाज में टेस्ट ड्रा कराया- वह किसी उपलब्धि से कम नहीं था।
ड्रा मैच क्रिकेट हिस्सा हैं पर ऐसा हिस्सा नहीं कि क्रिकेट को ही ख़त्म कर दें।
– चरनपाल सिंह सोबती