जस्टिस लोढ़ा कमेटी की सिफारिशें भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को बदलने की कोशिश थी। क्या वास्तव में बदल पाए? इस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर बोर्ड का नया संविधान बना पर एक के बाद एक शर्त को बदलने सिलसिला जारी है और धीरे-धीरे वहीं लौट रहे हैं- जहां थे।
अब फिर से बीसीसीआई ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और बोर्ड के संविधान के 6 नियमों में संशोधन की मंजूरी के लिए दायर पिटीशन पर जल्दी से जल्दी सुनवाई की मांग की। जो भी फैसला आएगा, उसका न सिर्फ बोर्ड के मौजूदा दो बड़े अधिकारियों को इंतजार है- उन्हें भी जो खाली होने वाली कुर्सी की तरफ देख रहे हैं। ये हैं बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली और सचिव जय शाह- दोनों का कार्यकाल सितंबर 2022 में खत्म होने वाला है और कोर्ट का आदेश इन दोनों की बीसीसीआई में पारी तय करेगा। वैसे ये अंदाजा तो कोई भी लगा सकता है कि ये दोनों भी लंबी से लंबी पारी खेलना चाहते हैं।
असल में 2019 में, बीसीसीआई ने अपनी एजीएम में तय किया कि संविधान में 6 संशोधन करेंगे। इनमें वह नियम 6 भी था जो बीसीसीआई और राज्य बोर्ड के पदाधिकारियों को लगातार 6 सालों से ज्यादा अपने पद पर रहने से रोकता है। मौजूदा नियम ये है कि 6 साल के बाद, 3 साल “कूलिंग ऑफ पीरियड” और इन 3 साल के दौरान, किसी एसोसिएशन या बोर्ड में कोई पोस्ट नहीं- 3 साल आराम।
बीसीसीआई अध्यक्ष बनने से पहले, सौरव गांगुली 2014 से बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन अध्यक्ष थे जबकि जय शाह 2013 से गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन में थे। सच ये है कि इस समय भी दोनों बीसीसीआई में ‘एक्सटेंशन’ के तहत हैं। सुप्रीम कोर्ट ने नियमों में संशोधन की पिटीशन पर न सुनवाई की और न इन्हें हटाने के संबंध में कोई आदेश दिया- इसका फायदा उठाकर ये दोनों जमे हुए हैं।
अब जो सबसे ख़ास संशोधन मांगा है वह 6 साल के कार्यकाल के प्रतिबंध वाले नियम को पूरी तरह से हटाने का है। इसके पीछे वजह ये बताई कि बीसीसीआई को अपने अधिकारियों के उस अनुभव का फायदा मिले जो उन्होंने राज्य क्रिकेट एसोसिएशन में हासिल किया।
कोर्ट जाने की जरूरत क्यों है? असल में बीसीसीआई का संविधान 2018 में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत बनाया था (जस्टिस लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों के बाद), राजनीतिक प्रभाव को हटाने और पेशेवर खिलाड़ियों को स्पोर्ट्स एसोसिएशन के नियंत्रण का मौका देने के इरादे से। इसलिए नियमों में कोई भी बदलाव या संशोधन, सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी से हो सकता है क्योंकि कोर्ट अभी भी इस मुद्दे पर बीसीसीआई की निगरानी कर रहा है।
संशोधनों की मंजूरी के लिए आवेदन पर फैसला अप्रैल 2020 में होना था लेकिन कोविड लॉकडाउन के दौरान ऐसा हो नहीं पाया। चूंकि यह मुद्दा 2 साल से टलता आ रहा है- इस पर, बिना देरी कार्रवाई की जरूरत है। संशोधन मंजूर हो गए तो आगे से, इन मुद्दों पर, कोर्ट जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
कोर्ट अब पिटीशन पर आख़िरी फैसला देगा या एक और तारीख आ जाएगी- ये देखना है। 21 जुलाई, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई से संबंधित मामले में वरिष्ठ वकील और पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह को एमिकस क्यूरी भी नियुक्त कर दिया है। क्या चीफ जस्टिस शरद बोबडे और जस्टिस एल नागेश्वर राव की विशेष बेंच नए संविधान को ही बनाए रखेगी या बीसीसीआई पर गांगुली और शाह के नियंत्रण का कोई नया रास्ता खोज लेंगे?
सोच अलग-अलग है। 2014 में बीसीसीआई के चीफ एन श्रीनिवासन को बाहर करने वाले जस्टिस एके पटनायक कहते हैं कि “कूलिंग-ऑफ” से कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए- ‘कोई भी इतना जरूरी नहीं है कि उसके बिना काम ही नहीं चलेगा। गांगुली हमेशा तीन साल बाद वापस आ सकते हैं।’ कोर्ट की सोच क्या रहेगी- इस पर हर किसी की नजर है। क्या लोढ़ा कमेटी की सिफारिशें, बदलते समय की कसौटी पर टिक पाएंगी?
बीसीसीआई खुद सख्त शर्तों को हटाने के लिए कितना बेताब है इसका सबूत उनकी ‘डीबार’ के नियम में ढील है। अब वे कहते हैं एक अधिकारी के खिलाफ सिर्फ आपराधिक आरोप उसे क्रिकेट बोर्ड या राज्य एसोसिएशन में किसी भी पद का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य नहीं बना देगा। बीसीसीआई ने संविधान में संशोधन में कहा है कि एक व्यक्ति को “किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराया हो और कम से कम तीन (3) साल की जेल की सजा सुनाई हो तभी उसे पदाधिकारी होने के लिए अयोग्य ठहराया जा सकता है।”
दूसरी तरफ देखिए मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन में क्या हो रहा है- वहां सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर और दिलीप वेंगसरकर जैसे कई दिग्गज एसोसिएशन में वोटिंग का अधिकार खोने के कगार पर हैं। ऐसा क्यों? एसोसिएशन चाहती है कि इंटरनेशनल खिलाड़ियों को बिना किसी वोटिंग अधिकार के सहयोगी सदस्य बनाया जाए। एसोसिएशन ने एक विशेष एजीएम बुलाई है, जिसमें इंटरनेशनल क्रिकेटरों के वोटिंग अधिकार को खत्म करने और 70 साल से ऊपर के व्यक्तियों को पदों पर रहने की इजाजत देने पर चर्चा की जाएगी।
बीसीसीआई के तहत हर राज्य एसोसिएशन को भी लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों पर अपना संविधान बदलना पड़ा। इसमें सभी पुराने इंटरनेशनल खिलाड़ियों को वोटिंग अधिकार दिया और किसी भी व्यक्ति को 70 साल की उम्र तक पहुंचने के बाद, किसी पद पर रहने से रोक दिया। एसोसिएशन का कहना है- उनके सदस्य सिर्फ क्लब हैं और किसी का व्यक्तिगत वोट नहीं है। इसलिए इंटरनेशनल खिलाड़ियों को बिना किसी वोटिंग अधिकार के सहयोगी सदस्य बनाया जाए।
- चरनपाल सिंह सोबती