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बंगाल की टीम का इस सीजन में रणजी ट्रॉफी सफर सेमीफाइनल में रुक गया। ख़ास तौर पर टीम का एक खिलाड़ी अपना वायदा पूरा करने से चूक गया। ये मनोज तिवारी हैं जिन्होंने कुछ ही दिन पहले कहा था कि वे बंगाल के लिए रणजी ट्रॉफी जीतना चाहते हैं। बहरहाल खुद मनोज तिवारी ने कोई कमी नहीं रखी- पहली पारी में जब खेलने आए तो स्कोर 11-3 था और शतक (102) बनाया। इससे पहले झारखंड के विरुद्ध, क्वार्टर फाइनल में, बंगाल ने पहली पारी में जो रिकॉर्ड 773-7 बनाए उसमें मनोज तिवारी के 73 रन थे पर दूसरी पारी में 136 रन बनाए और बंगाल ने पहली पारी की बढ़त के आधार पर सेमीफाइनल में जगह बनाई।
लगातार 3 पारी में 102 ,73 और 136 के स्कोर पर किसी को भी गर्व हो सकता है और ख़ास तौर पर मनोज तिवारी को तो होना भी चाहिए क्योंकि मैच के दौरान टीम ड्यूटी के साथ साथ वे एक ड्यूटी और निभा रहे थे- बंगाल  सरकार में मिनिस्टर की। दिन में क्रिकेट और खेल के बाद अपनी मिनिस्ट्री से आई जरूरी फाइल को देखना और निपटाना। ये कोई मामूली जिम्मेदारी नहीं है। अगर एक मिनिस्टर के तौर रणजी ट्रॉफी में उनका खेलना एक रिकॉर्ड है तो मिनिस्टर के तौर पर रणजी/फर्स्ट क्लास क्रिकेट में शतक बनाना तो उससे भी बड़ा रिकॉर्ड है। अब फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 29 शतक हैं उनके नाम- इसमें से 24 रणजी ट्रॉफी में (उनसे ज्यादा : 40 वसीम जाफर, 31 अजय शर्मा ,29 पारस डोगरा, 28 अमोल मजूमदार, 28 एच कानिटकर,  27 अमरजीत केपी, 26 बृजेश पटेल और सुरेंद्र भावे, 25 मिथुन मन्हास, 24 विनोद कांबली, एस बद्रीनाथ, देवेंद्र बुंदेला, यशपाल सिंह एवं 24 मनोज तिवारी) जबकि रणजी ट्रॉफी में 8 हजार रन पूरे करने के रिकॉर्ड के बहुत करीब हैं।  
एक आक्रामक दाएं हाथ के बल्लेबाज, इंटरनेशनल करियर- 12 वन डे (287 रन और 5 विकेट ) और 3 टी 20 ( 15  रन)   । मनोज तिवारी को मालूम है कि उनका टीम इंडिया और आईपीएल करियर खत्म हो चुकें हैं। अगर वे बंगाल के लिए इस सीजन में खेले तो ये वास्तव में उनका पक्का इरादा ही था कि खेल पाए। परिवार के लिए पहले ही समय नहीं था- अब तो और भी कम हो गया। 
भारत में हाल फिलहाल कोई ऐसी और मिसाल सामने नहीं है कि मंत्री ने फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेली। इस सीजन में रणजी रिकॉर्ड : 5 मैच में 433 रन 43.30 औसत से 2 शतक के साथ और सेमीफाइनल तक सिर्फ 12 बल्लेबाज के नाम, इस सीजन में उनसे ज्यादा रन थे। इस भृम को भी गलत साबित कर दिया कि वे टीम में रतबे की बदौलत हैं- अपनी क्रिकेट टेलेंट की वजह से टीम में हैं न कि एमएलए के रुतबे की वजह से। 
नवजोत सिद्धू, कीर्ति आज़ाद और चेतन चौहान जैसे कई टेस्ट क्रिकेटर एक्टिव राजनीति में गए पर कोई एमपी/एमएलए बनने के बाद नहीं खेला। मौजूदा केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर 2008 में पहली बार एमपी बनने से पहले ही खेल चुके थे अपना एकमात्र फर्स्ट क्लास मैच। इस नजरिए से मनोज तिवारी की मिसाल इन सबसे अलग है। शायद यह पहली बार हुआ है कि किसी मौजूदा मंत्री ने, भारत में, फर्स्ट क्लास क्रिकेट मैच में अपने स्टेट का प्रतिनिधित्व किया-  बंगाल सरकार में युवा मामलों और खेल राज्य मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर 2021 का चुनाव जीते थे शिबपुर से। राजनीति में आने के फैसले के साथ ही उन्होंने कह दिया था कि खेलना जारी रखेंगे।  
हां अगर क्रिकेट की दुनिया में देखें तो पार्लियामेंट पहुंचे क्रिकेटर इंटरनेशनल क्रिकेट भी खेले हैं। श्रीलंका के सनथ जयसूर्या फरवरी 2010 में  मतारा से संसद के लिए जीते और 2011 में इंग्लैंड के विरुद्ध ओवल में एक वन डे इंटरनेशनल खेले। दिसंबर 2018 में बांग्लादेश के मशरफे मुर्तजा ने अवामी लीग टिकट पर नरेल-2 सीट जीती और 2019 में युवा और खेल मंत्रालय पर संसदीय स्थायी कमेटी में आ गए। वे एमपी बनने के बाद भी खेलते रहे और आख़िरी वन डे 6 मार्च 2020 को खेला।  
– चरनपाल सिंह सोबती 

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