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आईपीएल के इस माहौल में, आईपीएल मीडिया अधिकार की बिक्री की हर चर्चा में 2023 से शुरू होने वाले और इसकी बदौलत आने वाले कई हजार करोड़ की बात हो रही है।  बीसीसीआई, कोर्ट के उस बाउंसर की तो बात ही नहीं कर रहे जिसने आईपीएल के पहले सबसे बड़े विवाद का पिटारा फिर से खोल दिया है। अगर आप ये नहीं जानते कि आईपीएल को शुरू करने के लिए जिम्मेदार बीसीसीआई के अधिकारी ललित मोदी को बीसीसीआई से निकाला क्यों गया तो समझ लीजिए कि यही किस्सा उसके लिए जिम्मेदार था। 
बोर्ड ने उन पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए- यहां तक कि उनके बच्चों को टिकट खरीदकर भी आईपीएल मैच नहीं देखने दिया। आज जिन ललित मोदी को ‘भगोड़ा’ कहा जाता है- उनके देश से बाहर जाने के पीछे यही किस्सा जिम्मेदार था। मजे की बात ये है कि अब कोर्ट ने कह दिया है कि ललित मोदी ने कुछ गलत नहीं किया। बीसीसीआई चुप है।  
ये एक ऐसा मामला है जिस पर पूरी किताब लिखी जा सकती है पर संक्षेप में समझते हैं कि यह ‘फेसिलिटेशन फीस’ का मामला है क्या जिस पर इतना हंगामा हुआ और आगे भी होता रहेगा।  इसके लिए आईपीएल शुरू होने से भी पहले के दिनों में जाना होगा।  
*  नवंबर 2007 : बीसीसीआई ने 10 साल (2008 से 2017) के लिए आईपीएल मीडिया अधिकारों के लिए दो बिड मांगे- 1. भारतीय उपमहाद्वीप के लिए (भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और मालदीव शामिल) और 2. शेष विश्व। *  डब्लूएसजीआई (WSGI) विजेता रहे और बिड थी एक बिलियन डॉलर की। देखिए- वे ब्रॉडकास्टर थे नहीं पर अधिकार ले गए। वे तो व्यापारी थे- इसलिए बोर्ड को मालूम था कि वास्तव में  टेलीकास्ट कोई और करेगा। उन्होंने पहले ही मल्टी-स्क्रीन मीडिया (एमएसएम) सैटेलाइट (सिंगापुर) को तैयार कर लिया था भारत में ब्रॉडकास्ट के लिए। इसी से मैच सोनी ने दिखाए। अब देखिए इस कॉन्ट्रैक्ट से बीसीसीआई को क्या मिला :WSGI ने दिए भारत के अधिकारों के लिए 550 मिलियन डॉलर  MSM ने दिए भारत के अधिकारों के लिए 274.50 मिलियन डॉलरये बने 824.50 मिलियन डॉलर (उस समय 3301.60 करोड़ रुपये) साथ में WSGI ने शेष विश्व के लिए 92 मिलियन डॉलर दिए * आईपीएल का पहला सीजन बेहद कामयाब रहा तो सारा नजारा ही बदल गया। बीसीसीआई को लगा कि ये तो गलत हो गया और वे सस्ते में मीडिया अधिकार बेच गए। इसी से, बीसीसीआई और एमएसएम के बीच विवाद पैदा हुए और 2009 में बीसीसीआई ने उनके साथ कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया।*  तब भी बीसीसीआई, आईपीएल मीडिया अधिकार फिर से नहीं बेच सकते थे क्योंकि WSGI से हुआ कॉन्ट्रैक्ट तो चल रहा था। तब बीसीसीआई ने WSGI को मीडिया अधिकार लाइसेंस ख़त्म करने पर राजी कर लिया। इसका एग्रीमेंट 15 मार्च, 2009 की तारीख का है।  
*  जल्दी देखिए- उसी दिन बीसीसीआई ने WSG मॉरीशस को 2009-2017 के लिए 4791.89 करोड़ रुपये में भारत के अधिकारों का लाइसेंस दे दिया। उस समय की रिपोर्ट में लिखा है कि 2009-2017 के लिए जो 3,000 करोड़ रुपये मिलने थे उसकी तुलना में 1791 करोड़ रुपये ज्यादा मिल गए।  *  यहीं से उलझन वाला पेच फंसा। WSG मॉरीशस ने लाइसेंस तो ले लिया पर उनके पास अपना कोई चैनल नहीं था भारत में। दूसरी तरफ बीसीसीआई ने MSM (या सोनी) को कॉन्ट्रैक्ट तोड़ते हुए विकल्प दिया था कि ‘राइट टू मैच’ उनके पास होगा।  *  इसी शर्त की बदौलत वे भी भारत के अधिकारों के लाइसेंस के लिए 4791 करोड़ रुपये देने के लिए राजी हो गए। एमएसएम तब बीसीसीआई के साथ सीधे कॉन्ट्रैक्ट पर जोर दे रहा था, न कि डब्ल्यूएसजीएम के उप-लाइसेंसधारी के तौर पर। ऐसे में, डब्ल्यूएसजीएम को अपना कॉन्ट्रैक्ट छोड़ने के लिए राजी करना पड़ा और सोनी उन्हें 425 करोड़ रुपये की अतिरिक्त रकम का  भुगतान करने पर सहमत हुए। ये हैं वे 425 करोड़ रूपये जिन्हें आप फेसिलिटेशन फीस के तौर पर सालों से पढ़ते आ रहे हैं और झगड़ा इन्हीं का है। ये पैसा कॉन्ट्रैक्ट की शर्त के अनुसार ही दिया गया।  बीसीसीआई का कहना है ये पैसा उनका है- उन्हें मिले। मामला सालों से एक से दूसरे कोर्ट में जा रहा है। जब केस आर्बिट्रेशन में था तो रिटायर सुप्रीम कोर्ट जज सुजाता मनोहर और मुकुंदकम शर्मा ने बीसीसीआई का समर्थन किया। केस सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया। दलीलें 18 मार्च, 2021 को ख़त्म हो गई थीं पर महामारी और काम की जरूरतों के कारण, फैसला सुनाने में देरी हुई, जो अब 16 मार्च 2022 को दिया गया। कोर्ट ने कहा- फेसिलिटेशन फीस कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों के हिसाब से दी गई और इसमें हेरा-फेरी का कोई संकेत नहीं है। कोर्ट ने आर्बिट्रेशन के ये पैसा बीसीसीआई को दिए जाने के आदेश पर रोक लगा दी।  
संकट में घिरे मोदी, जो अब ब्रिटेन में हैं, ने इसी पर कहा- ‘सच्चाई की जीत हुई है।’ बीसीसीआई का ये भी दावा था कि सिर्फ मोदी को इस फेसिलिटेशन फीस की शर्त की जानकारी थी- कोर्ट ने कहा कि सभी को इसकी पूरी जानकारी थी। 
ये पैसा हाल फिलहाल कोर्ट में जमा है और अगर बीसीसीआई ने फैसले को चुनौती नहीं दी तो इसके भुगतान की कार्रवाई होगी। क्या ये इस सालों पुराने केस का अंत है?
– चरनपाल सिंह सोबती 

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