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मौजूदा घरेलू क्रिकेट सीजन में अब तक सीनियर क्रिकेट की दो ट्रॉफी खेली गई हैं :

सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी : मुंबई ने भले ही अपने आखिरी ग्रुप मैच में बड़ौदा को हराया पर क्वार्टर फाइनल के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाए। कर्नाटक और बंगाल ने एलीट ग्रुप बी से क्वालीफाई किया। लगातार दूसरा सीजन जब मुंबई इस ट्रॉफी के लीग राउंड में बाहर- ये टी 20 टूर्नामेंट मुंबई ने कभी नहीं जीता है।
विजय हजारे ट्रॉफी : डिफेंडिंग चैंपियन मुंबई की पांच मैचों में चार हार- जिससे ग्रुप बी में 6 वें नंबर पर। इसमें एक हार पुडुचेरी (टीम के नाम पर ध्यान दीजिए) से भी थी- 18 रन से। पिछले सीज़न में पृथ्वी शॉ ने 4 सेंचुरी सहित 8 मैचों में 827 रन बनाए थे- इसी दम पर ट्रॉफी जीती थी। इस बार मुंबई का कोई भी बल्लेबाज सेंचुरी नहीं बना सका। ये तब जबकि टीम में शिवम दुबे और यशस्वी जायसवाल जैसे खिलाड़ी भी थे।

इन दोनों नाकामयाबी से, 1993 -94 में युवा मुंबई टीम को रणजी चैंपियन बनाने वाले कप्तान, रवि शास्त्री ने नतीजा निकाला : ‘मुंबई के क्रिकेटरों का मिजाज ही बदल गया है। जीत की भूख की जगह ले ली है घमंड ने- हम तो मुंबई टीम से हैं और हमें कौन हरा सकता है!’

क्या हो गया है मुंबई क्रिकेट को? वे दिन कहाँ गए, जब कहा जाता था कि टीम इंडिया में आना मुश्किल है तो मुंबई की टीम में आना तो और भी मुश्किल। एक समय था जब ऐसा ही प्रभुत्व घरेलू फर्स्ट क्लास क्रिकेट में न्यू साउथ वेल्स और बारबेडॉस का था- अन्य दूसरी टीम की प्रगति अच्छी बात है पर इनका क्रिकेट में पतन- चिंता की बात है। अब ये समझना कोई मुश्किल नहीं- मुंबई क्रिकेट पूरी तरह से चरमरा गई है। माहौल में जीत है कहाँ? खुले तौर पर भाई-भतीजावाद और गुटबाज़ी यानि कि टीम गलत। क्या अब मुंबई क्रिकेट का आंकलन करने का समय नहीं आ गया है?

बौखलाहट साफ़ दिखाई देने लगी है :

  • जो मुंबई क्रिकेट को समझते हैं, उन्हें ऐसे में उम्मीद की किरण सिर्फ दिलीप वेंगसरकर में दिखाई दे रही है- मुंबई रणजी टीम के लिए उन्हें मेंटोर बनाकर लाओ।
  • एपेक्स काऊंसिल ने कहा- क्रिकेट इम्प्रूवमेंट कमेटी (सीआईसी) को भंग करो (इस कमेटी के सदस्य : विनोद कांबली, जतिन परांजपे और नीलेश कुलकर्णी)। साफ़ नाम लिया इन तीनों का टीम के खराब प्रदर्शन के लिए और मांग की कि नई सीएसी बने।
  • इस समय कोच अमोल मजूमदार हैं- हाल फिलहाल वे निशाने पर नहीं पर सिलसिला यूं ही चला तो वह दिन दूर नहीं जब उनका नाम भी हिट लिस्ट में होगा।
  • कोच मजूमदार टीम के रणजी ट्रॉफी मैचों के लिए रवाना होने से पहले, टीम के लिए साइकोलॉजिस्ट मांग रहे हैं। कोच ने ये भी कहा कि रेड-बॉल सीजन की शुरुआत से पहले टीम कुछ प्रैक्टिस मैच खेले।
  • इसी तरह हाल फिलहाल सेलेक्शन कमेटी के चेयरमैन सलिल अंकोला भी बचे हुए हैं। वे बार बार दावा कर रहे हैं कि उनका पूरा ध्यान “मुंबई क्रिकेट की बेहतरी” पर है। उनकी सीजन शुरू होने के समय की एक स्टेटमेंट (जो फिटनेस कैंप के लिए चुने 45 खिलाड़ियों के जिक्र में दी थी) – ‘जिन्हें फिटनेस कैंप के लिए चुना है – जरूरी नहीं कि आखिरी टीम इन्हीं में से चुनी जाए।’ तो फिर इस फिटनेस कैंप का मकसद क्या था? जिसे फिट करो- उसे खिलाओ मत!
  • और देखिए- अंडर 23 क्रिकेट में पिछले 2 साल में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले पेसर मिनाद मांजरेकर को इस कैंप में बुलाया ही नहीं। 2018-19 सीज़न में पेसर मिनाद ने अंडर 23 में 28 विकेट और जिस एकमात्र रणजी मैच में खिलाया, उसमें 6 विकेट लिए। अगले सीज़न में अंडर 23 में 49 विकेट- 2 सीज़न में कुल 83 विकेट ! इस गड़बड़ी के लिए कौन जिम्मेदार है – सीआईसी या सेलेक्टर?
  • इसी तरह वैभव कलामकर को भी नहीं चुना। वह भी क्या दौर था जब गावस्कर, वेंगसरकर, शास्त्री, तेंदुलकर और मांजरेकर जैसे क्रिकेटर मुंबई से आए। आज के नाम पृथ्वी शॉ, श्रेयस अय्यर, सूर्य यादव, शिवम् दुबे और शार्दुल ठाकुर और सीनियर अजिंक्य रहाणे एवं रोहित शर्मा हैं। मुंबई टीम अगर ख़राब खेल रही है तो टीम इंडिया में उसका प्रतिनिधित्व भी कम हो रहा है। जहां 90 के दशक तक मुंबई क्रिकेट में महाराष्ट्रियों का बोलबाला था- अब यादव, शर्मा, अय्यर और शॉ खेल रहे हैं- रहाणे के साथ।

वह खड़ूस क्रिकेटर वाला नजरिया भी धीरे धीरे गायब होता जा रहा है- वही तो दिलीप वेंगसरकर ने कहा। आज भी मुंबई के अलग अलग ग्राउंड में क्रिकेट तो नज़र आती है पर वह टेलेंट कहाँ है जो उन्हें चैंपियन बनाए? सही सोच की जरूरत है। अगर मुंबई क्रिकेट को वापस अपना गौरव हासिल करना है तो उन्हें आगे आना होगा जो मुंबई क्रिकेट को जानते हैं और जिनकी रगों में मुंबई क्रिकेट का मिजाज दौड़ रहा है। मुंबई क्रिकेट को न्यू साउथ वेल्स और बारबेडॉस बनने से रोकना होगा।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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