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कई खिलाड़ियों की कहानी है ये कि स्कूल तक कई खेल खेलते थे पर जब एक खेल चुनने का सवाल आया तो उसे चुना जिसके लिए वे बाद में पहचाने गए। इसका मतलब ये नहीं कि दूसरे खेल से प्यार /लगाव ख़त्म हो गया। सौरव गांगुली और महेंद्र सिंह धोनी को जब भी मौका मिला फुटबॉल खेले। सुनील गावस्कर बैडमिंटन खेलते थे। कई क्रिकेटर, शौकिया नहीं, इंटरनेशनल स्तर पर दूसरे खेल खेले और चमके भी। लिस्ट बहुत लंबी है। ये मानना पड़ेगा कि हाल के सालों में क्रिकेट खेलने का मौका इतना बढ़ा कि क्रिकेटर ने दूसरा कोई खेल खेलना भी चाहा तो फुर्सत ही नहीं मिली।

इसी संदर्भ में दो नई मिसाल का जिक्र जरूरी है- हालांकि उनके पीछे की कहानी अलग है।

इन दिनों भारत की महिला टीम न्यूजीलैंड में है जहां न्यूजीलैंड से सीरीज के बाद वर्ल्ड कप खेलना है। इस टीम में जिस एक खिलाड़ी की कमी का सबसे ज्यादा जिक्र हुआ और वास्तव में कमी महसूस हो रही है वह जेमिमा रोड्रिग्स है। जेमिमा ने माना कि उन्हें ये उम्मीद नहीं थी कि टूर टीम में ही जगह नहीं मिलेगी। न सिर्फ दिल टूटा- क्रिकेट करियर पर भी सवाल आ गया। इस निराशा में जेमिमाह ने क्या किया- हॉकी खेलना शुरू कर दिया।

स्कूल में खेलती थीं हॉकी। रोज़ दो घंटे प्रेक्टिस,अंकल्स किचन युनाइटेड गर्ल्स हॉकी टीम के साथ। क्रिकेट के अलावा बचपन से ही हॉकी में रुचि रही। 9 साल की उम्र में महाराष्ट्र की अंडर-17 हॉकी टीम में जगह मिल गई थी- MSSA (मुंबई स्कूल स्पोर्ट्स एसोसिएशन) इंटर-स्कूल लीग में अपने स्कूल, सेंट जोसेफ (बांद्रा) के लिए हॉकी खेलती थी। क्रिकेट में सीनियर स्तर पर जाने से पहले अंडर -17 में मुंबई और महाराष्ट्र के लिए हॉकी खेली। आज बहरहाल उन्हें हॉकी के लिए नहीं, 21 वन डे और 50 टी 20 मैच में क्रमश: 394 और 1055 रन बनाने के लिए पहचाना जाता है। इसके बाद अंकल्स किचन यूनाइटेड गर्ल्स हॉकी टीम के लिए डब्ल्यूसीजी (विलिंगडन कैथोलिक जिमखाना) रिंक हॉकी टूर्नामेंट में हिस्सा लिया और हैट्रिक हासिल की- नतीजतन, उनकी टीम यूके यूनाइटेड ने अपने ओपनर में सी व्यू को 4-2 से हराया।

अभी तक जेमिमा ने ये नहीं कहा है कि वे क्रिकेट छोड़ रही हैं और आगे हॉकी ही खेलेंगी- इसलिए ऐसा कुछ भी कहना गलत होगा। पूर्व भारतीय गोलकीपर एड्रियन डिसूजा, जो टीम के कोच हैं, भी जेमिमा के हॉकी टेलेंट से प्रभावित हुए और कहा- ‘यह देखकर अच्छा लगा कि इंटरनेशनल क्रिकेट में व्यस्त होने के बावजूद जेमिमा हॉकी को नहीं भूली हैं।’ हॉकी ने अगर जेमिमा की निराशा को कम किया तो ये बोनस है- उन्हें क्रिकेट टीम में अपनी जगह वापस हासिल करने के लिए जरूर इससे हौसला मिलेगा।

अब दूसरी मिसाल की चर्चा करते हैं। चोट और बीमारियां कई खिलाड़ियों के करियर को बर्बाद कर देती हैं लेकिन कुछ भाग्यशाली के लिए यह वरदान साबित होता है। यही कहानी साई राजेश भोयर की है। चूंकि ये नाम टेनिस से है- क्रिकेट के लिए नया है। सबसे पहले संक्षेप में उनकी टेनिस की चर्चा :

  • अपनी उम्र (अंडर 17) वाली केटेगरी में नेशनल स्तर की चैंपियन।
  • खराब फिटनेस के बावजूद, स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2020 में ब्रॉन्ज़ जीता।

अचानक ऐसा होने लगा कि टेनिस खेलते-खेलते थक जाती थी। शुरू में लगा कि ये फिटनेस का मामला है पर इससे फायदा नहीं हुआ। ये बीमारी थी। ये 2019 की बात है। डॉक्टरों ने दवाएं लिखीं लेकिन कोई पक्का फायदा नहीं हुआ। मार्च, 2020 में कोविड ने अपने आप आराम करा दिया। उसके बाद दिल्ली में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के कैम्प में गईं पर बीच में ही छोड़ना पड़ा। वे बेनाइन पैरॉक्सिस्मल पोजिशनल वर्टिगो (बीपीपीवी) की मरीज हैं और ऐसा माना जाता है कि इसकी दुनिया में कोई दवा नहीं। हालांकि साई अभी भी टेनिस खेलती हैं और नागपुर डिस्ट्रिक्ट हार्डकोर्ट टेनिस एसोसिएशन के कोर्ट में पर खेलने की चाह रुकी नहीं।

बीमारी की इस मजबूरी में क्रिकेट खेलने का फैसला किया और इरादा है उसमें आगे बढ़ने का। क्रिकेट ही क्यों? साई के भाई सत्यम अंडर-25 विदर्भ टीम में हरफनमौला खिलाड़ी हैं और अपने शानदार प्रदर्शन से सीनियर टीम का दरवाजा खटखटा रहे हैं। साई, सत्यम के साथ वाइट किट में शामिल होना चाहती हैं- शायद देश में पहली फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेलने वाले भाई-बहन की जोड़ी का रिकॉर्ड बन जाए।

जवाहर क्रिकेट एकेडमी में उन्हें कोचिंग देने वाले राजेश का कहना है- ‘साई गेंद को बहुत जोर से हिट करती है।’ राजेश खुद जूनियर विदर्भ और नागपुर यूनिवर्सिटी के क्रिकेटर रहे हैं।महिला क्रिकेट में करियर बनाना गलत नहीं पर ये आसान भी नहीं। दो साल का लक्ष्य रखा है। हाल ही में आयोजित एक क्रिकेट टूर्नामेंट में एक शतक, दो अर्धशतक और पांच मैचों में 200 से ज्यादा रन (231) के लिए सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का अवार्ड जीता। गीतांजलि स्पोर्टिंग क्लब के इस क्रिकेट टूर्नामेंट (टी 20) में 57.75 औसत और 150.98 स्ट्राइक रेट से रन बनाए, जिसमें 42 चौके थे। टूर्नामेंट में मोस्ट वैल्युएबल खिलाड़ी और सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज भी चुनी गई। ठीक है कि ये बहुत ऊंचे दर्जे का टूर्नामेंट नहीं था पर इस बात को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते कि इसमें विदर्भ अंडर-19 और अंडर-23 के कई खिलाड़ी खेल रहे थे।

उनकी तकलीफ ने अभी तक क्रिकेट में परेशान नहीं किया है और इरादा मजबूत है। दूसरे खेल का विकल्प गलत नहीं- चाहे खेलना किसी भी वजह से हो।

-चरनपाल सिंह सोबती

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