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ये तो किसी से छिपा नहीं कि देश में घरेलू क्रिकेट का महत्व लगातार कम हो रहा है। बड़े क्रिकेटर अब इसमें खेलते नहीं इसलिए अपील कम और जब टीम इंडिया खेल रही हो तब तो तुलना में ये और भी पीछे रह जाती है। यही हुआ और देश में बदलते क्रिकेट प्रभुत्व के एक और ख़ास सबूत पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। 
मौजूदा क्रिकेट सीजन पर कोविड का प्रकोप शुरू होने से पहले, खेली दो में से एक ट्रॉफी-  विजय हजारे ट्रॉफी में इतिहास बना। फाइनल में आमने-सामने तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश।  हर सोच तमिलनाडु को विजेता मानने पर थी। तब भी हिमाचल ने अपना पहला बड़ा घरेलू खिताब- विजय हजारे ट्रॉफी जीत लिया। तमिलनाडु के 315 रन के लक्ष्य के जवाब में स्कोर 299- 4 था (47.3 ओवर) तो खराब रोशनी से खेल रुका और  हिमाचल टीम को विजेता घोषित किया गया- वीजेडी  सिस्टम से 11 रन से। मैच के हीरो- शुभम अरोड़ा 136 (131 गेंद; 13×4,1×6)।   सवाई मानसिंह स्टेडियम में, जब हिमाचल के कप्तान ऋषि धवन ने टॉस जीतकर दिनेश कार्तिक की तमिलनाडु को बल्लेबाजी के लिए कहा था तो वहीं टीम का आत्म विश्वास सामने था।   दिनेश कार्तिक (103 गेंद में 116; 8×4, 7×6) ने बाबा इंद्रजीत के साथ पांचवें विकेट के लिए 202 रन जोड़े और तमिलनाडु को अच्छे स्कोर तक पहुंचाया- 314 रन। पंकज जसवाल (4/59) और ऋषि धवन (3/62) कामयाब गेंदबाज थे।

 हिमाचल के ओपनर प्रशांत चोपड़ा (26 गेंद में 21 रन, 2×4) और शुभम अरोड़ा ने अपनी टीम को अच्छी शुरुआत दी। युवा शुभम अरोड़ा का पहला लिस्ट ए शतक और अमित कुमार (79 गेंद में 74; 6×4) के साथ मैच जीतने वाली साझेदारी में चौथे विकेट के लिए 148 रन।
हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन ने टाइटल जीत कर लौटी टीम को धर्मशाला में धर्मशाला इंटरनेशनल  क्रिकेट स्टेडियम में सम्मानित किया और 1 करोड़ रुपये के इनाम की घोषणा की तो स्टेडियम की हर ईंट जुटाए इंफ़्रास्ट्रकचर का सही फायदा उठाने की गवाही दे रही थी। मुंबई और दिल्ली जैसी बड़ी टीमें अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं और हिमाचल प्रदेश, जिनके पास क्रिकेट कल्चर के नाम पर कुछ नहीं था- घरेलू क्रिकेट में प्रभुत्व के ग्राफ की दिशा बदल रहे हैं।  
हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन ने जो पहला और सबसे अच्छा काम किया वह था 2005 में धर्मशाला में अपना पहला इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम बनाना। वे इस सोच पर काम कर रहे थे कि बेहतर इंफ़्रास्ट्रकचर से राज्य में क्रिकेट प्रतिभा को खेलने के लिए प्रेरित करेंगे। आज हिमाचल के भीतरी इलाकों के खिलाड़ी राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय और आईपीएल स्तर पर पहुंच रहे हैं।हिमाचल के लिए यह घरेलू क्रिकेट में किसी भी तरह का पहला खिताब है- एक ऐसी टीम के लिए बड़ी उपलब्धि जिसने 1985-86 में रणजी ट्रॉफी में खेलना शुरू किया और 2011-12 में प्लेट लीग में खेला।
इस पहाड़ी स्टेट का भारत की आबादी में हिस्सा सिर्फ 0.5 प्रतिशत और इंटरनेशनल अनुभव वाली बड़ी टीमों के उलट, ऋषि धवन हिमाचल प्रदेश के एकमात्र क्रिकेटर जो भारत के लिए खेले हैं। सामने फाइनल में तमिलनाडु- विजय हजारे ट्रॉफी के 20 सीजन में 5 खिताब जीतने वाली टीम। सिर्फ एक महीने पहले, सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी जीतने का रिकॉर्ड उनके साथ था।  तब भी हिमाचल ने इस बात को याद रखा कि वे  रणजी ट्रॉफी में दो बार तमिलनाडु को हरा चुके हैं और साथ में उस हार का बदला लेने का जोश जो तमिलनाडु ने पिछले सीजन में सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी के क्वार्टर फाइनल में दी थी।  

शुभम अरोड़ा अगर अब आईपीएल कॉन्ट्रेक्ट की उम्मीद लगा रहे हैं तो ये 26 दिसंबर 2021 के दिन मिली जीत का नतीज़ा है ये। वे अगर हिमाचल के लिए खेल रहे हैं तो ये एसोसिएशन की स्कीम का नतीजा है- वे हिमाचल में जन्मे पर खेलने की हसरत थी दिल्ली में। दिल्ली ने मौका नहीं दिया तो वे हिमाचल लौटे। शुरू में उधार के खिलाड़ियों के साथ टीम बनाई, धीरे धीरे उन्हें वापस बुलाया जो हिमाचल से जुड़े हैं पर हैं दूसरे राज्य में और साथ साथ अपने राज्य में टेलेंट का विकास। ऋषि धवन ने 76 की औसत और 127 स्ट्राइक रेट से 458 रन बनाए, 23 की औसत से 17 विकेट लिए- दोनों में दूसरे नंबर पर रहे। 
इसी तरह कोच अनुज दास को वापस लाए। वे हिमाचल प्रदेश के क्रिकेटर रहे हैं- 1999 में प्रथम श्रेणी मैच और दो लिस्ट ए मैच खेले। उसके बाद कोच बन गए और हिमाचल के अतिरिक्त, त्रिपुरा के भी कोच रहे। एचपीसीए अध्यक्ष और बीसीसीआई ट्रेजरर अरुण धूमल ने दास को हिमाचल लौटने के लिए कहा था। 
ख़ास ये कि मार्च 2021 में, धवन ने भी क्रिकेट बोर्ड  का लेवल 2 कोचिंग कोर्स किया। जो सीखा, उसे अपनी क्रिकेट पर भी प्रयोग किया। जब दास खेलते थे तो सपना था कि टर्फ पिचों पर प्रेक्टिस करें- इस समय हिमाचल में आठ ग्राउंड में टर्फ पिच हैं। खिलाड़ियों को अब अच्छी सुविधाओं की तलाश में दूर नहीं जाना पड़ता। विकास का ये सिलसिला अनुराग ठाकुर (2017 तक एचपीसीए अध्यक्ष) ने शुरू किया- वे सिर्फ दो टर्फ विकेट (ऊना और मंडी) से राज्य को इंटरनेशनल दर्ज़े के स्टेडियम तक ले गए।  
हिमाचल में अभी भी अपनी लीग नहीं, न ही क्लब-क्रिकेट है- इसलिए 2011-12 से एक्सचेंज मैचों में हिस्सा ले रहे हैं। कर्नाटक के साथ नियमित खेलते हैं- केएससीए ट्रॉफी और जेपी अत्रे ट्रॉफी जैसे टूर्नामेंट में हिस्सा लेते हैं। इस साल भी सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी से पहले, बंगाल गए और उनके विरुद्ध पांच अभ्यास मैच खेले।
 26 लोग- 20 खिलाड़ी और 6 सपोर्ट स्टाफ, हिमाचल क्रिकेट को इस मुकाम तक ले आए हैं कि दूसरे राज्य की क्रिकेट के लिए प्रेरणा बनें। अपने लिए और बड़ी चुनौती- अब रणजी ट्रॉफी में ऐसी ही जीत हासिल करनी हैं। इरादा सही हो उसे पूरा करना मुश्किल नहीं- देश में क्रिकेट प्रभुत्व का ग्राफ बदल रहा है।  

  • चरनपाल  सिंह सोबती

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