जब क्रिकेट के कानून पहली बार एमसीसी ने औपचारिक तौर पर लिखे तो उनकी भाषा में साफ़ इस बात की झलक थी कि ये पुरुष क्रिकेट के लिए हैं। 2017 के पिछले एमसीसी कोड में भाषा को कुछ सुधारा गया और इस तरह से लिखा कि पता लगे कि पुरुष और महिला क्रिकेट दोनों की बात हो रही है। ऐसा नहीं है कि इस बदलाव से पहले महिलाएं क्रिकेट नहीं खेल रही थीं- ये साफ़ लिखा था कि महिला क्रिकेट पर भी एमसीसी कोड लागू है। अब एमसीसी ने एक कदम और आगे बढ़ाया है- सिर्फ भाषा से लिंग भेद (जेंडर बायस) ख़त्म करने के बाद, उस ख़ास शब्द को ही बदल रहे हैं जिससे ये संकेत मिलता है कि एमसीसी के ये कानून सिर्फ पुरुष क्रिकेट की बात करते हैं।
पहले तो सोचा ये जा रहा था कि ‘batsman’ के साथ ‘batswoman’ लिखें पर अब इस फर्क को ख़त्म ही कर रहे हैं और दोनों के लिए सिर्फ ‘batter’ लिखेंगे। ये पुरुष और महिला दोनों क्रिकेटर पर लागू होने वाला शब्द है। जो नया कानून कोड तैयार किया जा रहा है- उसमें यही बैटर शब्द प्रयोग होगा। बॉलर या फील्डर लिखने से, ये संकेत नहीं मिलता कि सिर्फ पुरुष क्रिकेटर की बात हो रही है-इसलिए इन्हें नहीं बदल रहे।
एमसीसी की सोच यही है कि ये बदलाव इस भावना को मजबूत करने के लिए लागू कर रहे हैं कि क्रिकेट ‘सभी के लिए’ है। एमसीसी को लंबे समय से परंपरा निभाने वाले क्लब के तौर पर पहचाना गया लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं है। लगभग सभी बड़ी परंपराएं टूट चुकी हैं। अब ज्यादातर दिखावे वाली परंपराएं बची है जैसे कि ड्रेस कोड।
महिलाओं के लिए सभी प्रतिबंध अब सिर्फ इतिहास की बात हैं- महिलाएं सदस्य बन रही हैं (1998 से), लांग रूम में जाती हैं, लॉर्ड्स में क्रिकेट खेलती हैं। यहां तक कि क्लेयर कॉनर 234 साल के इतिहास में एमसीसी की पहली महिला अध्यक्ष बनने वाली हैं (कुमार संगकारा की जगह) कुछ ही दिन बाद। पिछले महीने ही क्लब ने फैसला लिया कि इंग्लैंड की मशहूर महिला क्रिकेट हस्ती रशेल हेहो फ्लिंट का नाम लॉर्ड्स में एक गेट पर लिखेंगे- पहली बार किसी महिला क्रिकेटर को ये सम्मान मिलेगा। अब ऐतिहासिक कदम की घोषणा की और औपचारिक रूप से क्रिकेट के कानून में बैटर को ले आए। अब बैटर के साथ ये जानना जरूरी होगा कि मैच पुरुष क्रिकेट का है या महिला क्रिकेट का?
एमसीसी का कहना है कि वे ‘थर्ड मैन’, ‘नाइटवॉचमैन’ और ‘टवेल्थमैन’ जैसे शब्द नहीं बदल रहे क्योंकि ये क्रिकेट के कानून का हिस्सा नहीं हैं, और इसलिए क्लब के दायरे से बाहर हैं।
एमसीसी क्रिकेट को सभी के लिए एक खेल के रूप में मानता है और यह कदम और कुछ नहीं, आधुनिक समय में क्रिकेट के बदलते हालात को पहचानना है। इस तरह “बैटर” शब्द का उपयोग हमारी साझा क्रिकेट भाषा में विकास का प्रतीक है और इस खेल में शामिल कई लोगों द्वारा ऐसी शब्दावली को पहले ही अपनाया जा चुका है। इस बदलाव को औपचारिक रूप से मान्यता दिए जाने का यह सही समय है और तभी एमसीसी ने ऐसा किया- वे क्रिकेट के कानून बनाने और लिखने के लिए आज भी जिम्मेदार हैं।
एमसीसी कानून सब कमेटी, जो इस तरह के बदलाव को सबसे पहले मंजूरी देती है- उसमें 10 सदस्य हैं, जिनमें सिर्फ एक, डेबोरा बर्न्स, महिला है। सब कमेटी में अंपायर साइमन टॉफेल और सुंदरम रवि शामिल हैं और इसकी अध्यक्षता इंग्लैंड के पूर्व प्रथम श्रेणी क्रिकेटर एलन फोर्डम के पास है। इन बदलाव को तब एमसीसी कमेटी मंजूर करती है- कॉनर इसकी चीफ हैं।
हाल के सालों में बैटर शब्द का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है। आईसीसी ने भी इसी का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया है। इंग्लैंड में शुरू हुए द हंड्रेड टूर्नामेंट में भी इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड ने कमेंटेटरों को कहा कि बैटर का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें।
इस फैसले से एमसीसी की, ऐसा नहीं है कि किसी ने भी, आलोचना नहीं की। इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वॉन ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा : ‘मुझे तब तक इससे कोई परेशानी नहीं, जब तक ये क्रिकेट को बेहतर बनाने के लिए है।’ ऑस्ट्रेलिया के पूर्व खिलाड़ी और कोच डैरेन लेहमैन ने भी ट्वीट करते हुए इसे मंजूरी दी। तब भी क्लब के 18 हज़ार से ज्यादा सदस्य में से कई की शिकायत है कि क्लब ने उनसे राय नहीं ली। द हंड्रेड ने भी आलोचना के बाद ‘ओवर’ को ‘फाइव्स’ में और ‘विकेट’ को ‘आउट’ में बदलने का इरादा छोड़ दिया था। नई सोच ये है कि ‘नाइटवॉचमैन’ को ‘नाइटवॉचर’ और ‘थर्ड मैन’ को ‘थर्ड’ में बदल दो- इससे भी लिंग भेद हटेगा।
हाल के सालों में महिलाओं की क्रिकेट में रुचि में गजब की बढ़ोतरी हुई है- पिछले साल 86,000 लोगों ने ऑस्ट्रेलिया को टी 20 वर्ल्ड कप फाइनल में भारत को हराते देखा। इंग्लैंड में,
24000 की भीड़ ने 2017 वर्ल्ड कप फाइनल में भारत पर इंग्लैंड की जीत देखी। इंग्लैंड में इस साल 17000 से ज्यादा की भीड़ ने ओवल इनविंसिबल्स को सदर्न ब्रेव को हराते देखा।
इतिहास में क्या है ? 1934 की किताब द लैंग्वेज ऑफ क्रिकेट के अनुसार, “बल्लेबाज” का उपयोग पहली बार 1744 में हुआ था। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि, इसके अनुसार ‘बैटर’ शब्द का इस्तेमाल 1773 में ही हो गया था पर उसके बाद दशकों और सदियों तक, बल्लेबाज को जहां भी लिखा- सभी के लिए लिखा। अगर आप जोस बटलर, विराट कोहली, स्टीव स्मिथ और जो रूट जैसे हाई प्रोफाइल क्रिकेटर के इंटरव्यू सुनें तो वे अक्सर बैटर शब्द प्रयोग करते रहते हैं। हाँ, ये भी सच है कि यह शब्द महिलाओं के खेल में आम है। एमसीसी ने अब दोनों को एक कर दिया है। परंपराओं की वकालत करने वाले कहते हैं कि बल्लेबाज शब्द लिंग विशेष नहीं है- सभी बल्लेबाज हो सकते हैं। ऐसे ही ‘एशेज’ है- ये शब्द कहाँ कहता है कि ये सिर्फ पुरुष क्रिकेट के लिए है? इसीलिए बड़ी आसानी से इसे महिला क्रिकेट के साथ भी जोड़ दिया।
क्या एमसीसी के नए बदलाव से महिला क्रिकेट को कोई और फायदा मिलेगा या सिर्फ दिल की तसल्ली होगी?
- चरनपाल सिंह सोबती