fbpx

रणजी ट्रॉफी का नया सीजन शुरू हो गया है और जो नई शुरुआत हो रही हैं उनमें से एक ख़ास ये कि पहली बार, महिला अंपायर ड्यूटी पर दिखाई देंगी इन रणजी ट्रॉफी मैचों में। बीसीसीआई का उन्हें पुरुषों की क्रिकेट में भी मौका देने का फैसला तारीफ़ की बात है।

शुरुआत कर रही हैं जननी नारायणन, गायत्री वेणुगोपालन और वृंदा राठी। इन तीनों का नाम लगातार चर्चा में है और राठी एवं नारायणन ने इस साल, अंडर-23 बॉयज सीके नायडू ट्रॉफी मैचों में भी अंपायरिंग की। अब बहरहाल इससे भी बड़ी छलांग- घरेलू सीनियर पुरुष क्रिकेट में ड्यूटी। गायत्री, जननी और वृंदा- तीनों ही बीसीसीआई पैनल में रजिस्टर्ड अंपायरों में शामिल हैं।

बीसीसीआई ने माना है कि पुरुष खिलाड़ियों से निपटना इस महिला तिकड़ी के लिए बड़ी चुनौती होगी- रणजी ट्रॉफी बहुत अलग है लड़कों की ग्रेड क्रिकेट से और अंपायर के किसी भी फैसले पर गुस्सा भड़क सकता है। दूसरी तरफ, इसे टालने के लिए अंपायर बहुत नरम नहीं हो सकते- अन्यथा खिलाड़ी उन्हें डरा देंगे। इसलिए सख्त होना पड़ेगा और लॉ सही तरह से लागू करना सबसे जरूरी है। बहरहाल अब तक इन तीनों का रिकॉर्ड अच्छा है- इसलिए आगे भी इन्हें अच्छा प्रदर्शन करना चाहिए। इस रिपोर्ट के लिखने तक भारत-ऑस्ट्रेलिया वूमन टी20 सीरीज के जो पहले तीन मैच खेले जा चुके हैं, उन में फील्ड अंपायर की ड्यूटी इन तीन के ही हिस्से में आई है। तीनों का छोटा परिचय :

वृंदा राठी : मुंबई के मैदानों में स्कोरर थीं। न्यूजीलैंड की इंटरनेशनल अंपायर कैथी क्रॉस से एक मुलाकात ने उन्हें अंपायर की ड्यूटी में पिच पर आने के लिए प्रेरित किया। राठी, 32 साल की हैं- मीडियम पेस गेंदबाज और मुंबई यूनिवर्सिटी के लिए खेलीं। खेलने का करियर आगे नहीं बढ़ा तो मुंबई में स्थानीय मैचों में स्कोरर बन गईं। 2010 में, स्कोरर के लिए बीसीसीआई का इम्तिहान पास किया और 2013 में, महिला वर्ल्ड कप के लिए ऑफिशियल बीसीसीआई स्कोरर थीं और उसी दौरान न्यूजीलैंड की अंपायर  से मुलाक़ात हुई थी। अब मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन और बीसीसीआई के अंपायरिंग इम्तिहान को पास कर चुकी हैं।

जननी नारायणन : चेन्नई में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थीं। कॉर्पोरेट नौकरी थी पर चाह थी तमिलनाडु क्रिकेट एसोसिएशन (टीएनसीए) में अंपायर बनने की। 36 साल की हैं। कभी भी, कोई ख़ास क्रिकेट नहीं खेला लेकिन इससे जुड़ी रहीं और इसीलिए बारीकियां जानती थीं। जब उन्होंने एप्लाई किया (2009 और 2012 में) तो टीएनसीए में सब हैरान थे। ऐसी कोई पॉलिसी नहीं थी – इसलिए मौका नहीं मिला। 2015 में, एसोसिएशन ने गाइड लाइन बदलीं और तब उन्हें मौका दिया। 2018 में, बीसीसीआई का लेवल 2 अंपायरिंग इम्तिहान पास किया और अब इस नई ड्यूटी और कॉर्पोरेट आईटी नौकरी में से एक को चुनने का वक्त आ गया था।

गायत्री वेणुगोपालन : कंधे की चोट ने गायत्री के पेशेवर क्रिकेटर बनने के सपने को चकनाचूर कर दिया पर क्रिकेट को नहीं छोड़ा। बीसीसीआई के अंपायरिंग इम्तिहान को पास किया।  दिल्ली की हैं- उम्र 43 साल। उन्होंने भी इस ड्यूटी के लिए, अपना कॉर्पोरेट करियर छोड़ दिया। 2019 में अंपायर के पैनल में आ गईं।

राठी, नारायणन और वेणुगोपालन शुरुआत करेंगी रणजी टूर्नामेंट के दूसरे राउंड से क्योंकि वे भारत-ऑस्ट्रेलिया महिला टी20 इंटरनेशनल सीरीज में अंपायरिंग ड्यूटी पर हैं। पिछले कुछ सालों में, कई राज्य क्रिकेट एसोसिएशन ने पुरुषों के मैचों में अंपायरिंग के लिए महिलाओं को ड्यूटी की चर्चा तो की पर बात जूनियर क्रिकेट से आगे नहीं बढ़ रही थी- कभी सीनियर टूर्नामेंट में ऑन-फील्ड अंपायर की ड्यूटी नहीं दी। इस सीजन में रिकॉर्ड बदल रहा है। सिर्फ गायत्री ने इससे पहले रणजी ट्रॉफी में रिजर्व (चौथे) अंपायर के तौर पर काम किया है।

बीसीसीआई को अभी भी बहुत कुछ करना है। ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में पुरुष क्रिकेट में महिला अंपायर बहुत पहले से ही अंपायरिंग कर रही हैं। बीसीसीआई के पास रजिस्टर्ड 150 अंपायरों में सिर्फ तीन महिलाएं हैं। उनके लिए मौके की कमी नहीं क्योंकि अब भारत में घरेलू और इंटरनेशनल महिला मैचों की गिनती लगातार बढ़ रही है।

बीसीसीआई का नया नजरिया है- पुरुषों की क्रिकेट में, ज्यादा महिला अंपायरों को बढ़ावा देना। उनकी तो कोशिश है कि भविष्य में और महिलाएं इम्तिहान दें। अब तक, ये तो मान ही लिया था कि क्रिकेट ग्राउंड पर सबसे मुश्किल ड्यूटी दो ऑन-फील्ड अंपायर करते हैं और ये भी कि पुरुष अंपायर ही ऐसा कर सकते हैं- दर्शकों, कैमरों, पत्रकारों और आर्मचेयर विशेषज्ञों की गलतियां पकड़ने वाली नजर सीधी उन पर, सोशल मीडिया पर हैरान कर देने वाला दबाव, पांच दिनों में, खेल के हर घंटे के हर मिनट में पूरी एकाग्रता की जरूरत और उस पर महिला होने की अपनी चुनौती।

अपनी किताब ‘फाइंडिंग द गैप्स’ में साइमन टॉफेल (सबसे सम्मानित अंपायर में से एक, 5 बार ‘आईसीसी अंपायर ऑफ द ईयर’) ने लिखा- ‘हम डर और इच्छा से ऊंचे दर्जे के प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित होते हैं।’ ये महिला अंपायर उसी को सही साबित कर रही हैं। इरादा पक्का हो तो कुछ भी मुश्किल नहीं। उनके सामने पहले की कई कामयाब अंपायर की मिसाल मौजूद है।  

  • चरनपाल सिंह सोबती

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *