सब मानते हैं कि 2017 से भारत की महिला क्रिकेट टीम की कामयाबी का ग्राफ बदला है और आज इसे टॉप टीम में से एक गिनते हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में सिल्वर और एशिया कप चैंपियन सबसे नई सफलता हैं। ग्राउंड के बाहर भी- न सिर्फ सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट, चार्टर्ड प्लेन पर सफर करती हैं क्रिकेटर, 5 स्टार सुविधाएं, इंटरनेशनल मैच की फीस वही जो पुरुष क्रिकेटर को मिलती है और आईपीएल अगला पड़ाव है। इस स्थिति तक पहुंचने की नींव किसने रखी थी? ये तो सब लिखते हैं कि जिस दिन से भारत में महिला क्रिकेट को बीसीसीआई ने अपने बैनर में लिया- महिला क्रिकेट में प्रगति हुई पर बीसीसीआई के बिना महिला क्रिकेट को चलाने की हिम्मत किसने की थी? बीसीसीआई को तो महिला क्रिकेट एक ‘तैयार प्रॉडक्ट’ की तरह मिली थी। बिना बीसीसीआई मदद, सालों तक इंटरनेशनल क्रिकेट खेली टीम और ये कोई मामूली बात नहीं। अगर इसे संभव बनाने के लिए किसी को धन्यवाद देना है तो वह नाम है महेंद्र कुमार शर्मा का। क्या ये हैरानी की बात नहीं कि उनका कहीं जिक्र तक नहीं होता?
बीसीसीआई से पहले, भारत में महिला क्रिकेट को चलाती थी वूमन क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (WCAI)- इसके संस्थापक सचिव थे महेंद्र कुमार शर्मा जिनका लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। सिर्फ ये परिचय ठीक नहीं- ये कहना ज्यादा ठीक होगा कि उन्होंने भारत में महिला क्रिकेट को एक स्वरूप दिया। भारत में और भारत से बाहर पहचान और मान्यता दिलाई, इंटरनेशनल मैच ही नहीं, वर्ल्ड कप तक आयोजित कर दिया। 1970 के दशक में ये शुरुआत की और अपने मिशन के लिए इतने समर्पित थे कि मैचों के लिए भीड़ जुटाने के लिए ऐसे तरीके इस्तेमाल किए जिनके बारे में आज सोच भी नहीं सकते। भारतीय क्रिकेट हमेशा उनकी मेहनत के लिए ऋणी रहेगी।
1970 के दशक की शुरुआत में, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में महिलाएं क्रिकेट खेल रही थीं- भारत में इसके लिए कोई सिस्टम नहीं था। वह लखनऊ में स्कूल और कॉलेज की लड़कियों के लिए सॉफ्टबॉल और हैंडबॉल टूर्नामेंट आयोजित करते थे। उसके बाद क्रिकेट शुरू की। पहले तो लड़कियों को लड़कों के मैच दिखाकर क्रिकेट की ओर आकर्षित किया और उसके बाद एक क्रिकेट एसोसिएशन बनाने के बारे में सोचा।
1973 में लखनऊ में वूमन क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया को रजिस्टर किया और अगले 32 साल तक यही एसोसिएशन भारत में महिला क्रिकेट चलाती रही। 2006 में जब बीसीसीआई ने महिला क्रिकेट को अपने बैनर में लिया तो महेंद्र कुमार शर्मा को पूरी तरह महिला क्रिकेट से बाहर कर दिया। इसलिए उनका नाम सिर्फ इतिहास में दर्ज रह गया और जब सम्मान मिलना चाहिए था तो उन्हें किसी ने याद नहीं किया।
उनकी मेहनत देखिए- भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने अपना पहला टेस्ट मैच 1976 में बैंगलोर में खेला। 1978 में भारत ने पहले महिला वर्ल्ड कप की मेजबानी की इधर-उधर से पैसा जुटाकर। 1997 में भी वर्ल्ड कप आयोजित किया और विश्वास कीजिए जब इंग्लैंड ने ईडन गार्डन में फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को हराकर वर्ल्ड कप जीता तो स्टेडियम में 80 हजार से ज्यादा दर्शक मौजूद थे। वे महिला क्रिकेट को उस मुकाम से बहुत आगे ले आए थे जब कई लोग, इनके मैच देखने इसलिए आते थे कि लड़कियां स्कर्ट पहन कर खेलती हैं।
वूमन क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया को भारत सरकार और इंटरनेशनल एसोसिएशन से मान्यता दिलाई- इसलिए वे ‘टीम इंडिया’ को खेलने भेज सके। महिला क्रिकेट के लिए उनका जुनून और विजन था पर पैसे नहीं थे- तब भी लगे रहे। अपनी प्रॉपर्टी बेच दी। भारत में पहली महिला नेशनल चैंपियनशिप शुरू की। वीकेंड मैच शुरू किए और जिस तरह उस जमाने में सड़कों पर सर्कस या नई फिल्म का लाउडस्पीकर पर प्रचार किया जाता था- वे क्वीन्स एंग्लो संस्कृत कॉलेज के छोटे से ग्राउंड में खेले जा रहे महिला क्रिकेट के मैचों का शोर करते थे। उसी लखनऊ में पिछले साल अटल बिहारी वाजपेयी स्टेडियम में भारत ने दूसरे टी20 इंटरनेशनल में दक्षिण अफ्रीका का मुकाबला किया तो भारी भीड़ जमा थी। कहीं न कहीं, वे इसके लिए तारीफ़ के हकदार थे। मैचों के लिए सब इंतजाम अकेले करना कोई मजाक नहीं था।
बहुत बाद में, उन्हें कम से कम क्रिकेट खेलने वालों से मदद मिली। उदहारण के लिए क्रिकेट खेली शुभांगी कुलकर्णी डब्ल्यूसीएआई की सचिव बन गईं। आज जिन डायना एडुल्जी, शांता रंगास्वामी और सुधा शाह जैसी क्रिकेटरों के बारे में पढ़ते हैं वे उस क्रिकेट स्वरुप की देन हैं जो महेंद्र कुमार शर्मा ने तैयार किया था। उम्र ने उन पर भी असर डाला। बीसीसीआई के बिल्कुल नजरअंदाज करने से निराश थे, बीमार रहने लगे पर खुश थे कि महिला क्रिकेट उस ऊंचाई पर पहुंच रही है जिसके बारे में उन्होंने सोचा था और मेहनत की। देश में महिला क्रिकेट की नींव उन्होंने रखी।
– चरनपाल सिंह सोबती