ग्राउंड पर क्रिकेट की भीड़ के बीच मुरली विजय के इंटरनेशनल क्रिकेट से रिटायर होने को कोई ख़ास चर्चा नहीं मिली। संयोग से, ये यह ठीक वैसा ही था जैसे उनका क्रिकेट करियर। उसे भी, वे कहते हैं, कोई ख़ास चर्चा नहीं मिली। खेल कहां रहे थे जो रिटायर हुए- शायद भारत से बाहर खेलने के लिए एनओसी न लेना पड़े- इसलिए इसकी जरूरत थी। खुद ही कहा- ‘एक क्रिकेटर के तौर पर मेरे सफर का अगला कदम और मैं अपने जीवन के इस नए चेप्टर का इंतजार कर रहा हूं।’
सात साल के इंटरनेशनल करियर में 61 टेस्ट, 17 वनडे और 9 टी20 मैच पर इस मन में दबी कसक का जिक्र कर दिया कि खेलने के पूरे मौके नहीं मिले। किसी हद तक ये सच भी है। टेस्ट टीम में एक ख़ास और भरोसे वाला नाम थे- तब भी उन पर कभी पूरा विश्वास नहीं दिखाया गया। आखिरी टेस्ट दिसंबर 2018 में पर्थ में था। आईपीएल में 106 मैच- 2 शतक सहित 2619 रन बनाए जिनमे 13 फिफ्टी- चेन्नई सुपर किंग्स, दिल्ली डेयरडेविल्स और किंग्स इलेवन पंजाब के लिए।
पिछले 15 साल में भारत में मौजूद सबसे बेहतर टेस्ट ओपनर में से एक थे और 2013-2015 के बीच मुश्किल हालात में भी टीम के सबसे भरोसे के बल्लेबाज थे। कई जानकार उन्हें रोहित शर्मा और गौतम गंभीर से भी बेहतर मानते हैं और ऐसी तारीफ़ ही विजय की निराशा है- जिन वीरेंद्र सहवाग के पार्टनर थे वे चमक गए और रोहित एवं गंभीर भी पर वे खुद ख़ास पहचान नहीं पा सके।
दिसंबर 2018 पर्थ आख़िरी टेस्ट था। 2015 के बाद कोई वनडे या टी20 मैच नहीं और आईपीएल करियर भी सितंबर 2020 में ख़त्म हो गया था। किसी में उसके बाद नहीं बुलाए गए। कुछ ही दिन पहले ही तो एक पॉडकास्ट में, डब्ल्यूवी रमन से बात करते हुए कहा था कि बीसीसीआई की नजर में, एक क्रिकेटर 30 साल की उम्र तक पहुंचने पर 80 साल के बराबर है यानि कि कोई मौका नहीं और सब रास्ते बंद। उनका गुस्सा ये है कि बेहतर प्रदर्शन की क्षमता के बावजूद पूरा मौका ही नहीं दिया गया।
मुरली विजय के इस गुस्से पर मिला-जुला रिएक्शन है। एक सोच ये कि विजय को जो भी मौके दिए- उन का पूरा फायदा नहीं उठाया। 61 टेस्ट में 38.39 औसत, 3982 रन, 12 शतक और 15 फिफ्टी कोई खराब रिकॉर्ड नहीं है। सहवाग के बिलकुल सही पार्टनर थे क्योंकि उन्हीं की भरोसे वाली मौजूदगी की बदौलत सहवाग दूसरे सिरे पर खुल कर बैटिंग कर पाए। तब भी उनकी सोच है- ‘जितने मौके सहवाग को दिए, मुझे नहीं।’
इसकी कई वजह हैं। नई टैलेंट की मौजूदगी के अतिरिक्त और भी कई बातें हैं जो उनके खिलाफ गईं। मसलन कोविड-19 के प्रकोप में भी वैक्सीन से इंकार कर दिया। बायो बबल से नफरत थी। खिलाड़ी कोविड से बचाव में सहयोग न करे तो उसकी मदद कौन करेगा? यहां तक कि आईपीएल 2020 में चेन्नई सुपर किंग्स के लिए खेलने के बाद कोविड प्रोटोकॉल मानने से इंकार कर दिया। यही बात तमिलनाडु टीम में थी- बिलकुल अलग से हो गए थे और एसोसिएशन को तो ये भी नहीं मालूम था कि वे हैं कहां? खेलना तो दूर की बात है। किसी ट्रेनिंग या फिटनेस पर कोई खबर नहीं थी- फॉर्म की तो बात ही नहीं हुई।
तो इस तरह रास्ते तो विजय ने खुद बंद किए। इसी से उनके पुराने ग़ुस्से के किस्से भी चर्चा में आने लगे। हर जगह सब से अलग और झगड़े- ये पहचान थी। इसीलिए ही तो ज्यादा पढ़ नहीं पाए- 12 तक की पढ़ाई में 8 स्कूल बदल लिए थे। संयोग से वे किसी दूसरे क्रिकेटर का घर तोड़ने के भी जिम्मेदार माने गए- साथ-साथ टूर करते हुए, उसकी पत्नी को ही छीन लिया।
इन सब विवाद ने उनकी क्रिकेट को बैक फुट पर कर दिया पर जो खेले, उसे रिकॉर्ड से हटाया नहीं जा सकता। ब्रिस्बेन में 144, ट्रेंट ब्रिज में 145, लॉर्ड्स में 95, एडिलेड में 99 और किंग्समीड में 97 बड़े ख़ास प्रदर्शन हैं। टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध 4, इंग्लैंड के विरुद्ध 3, श्रीलंका और बांग्लादेश के विरुद्ध 2 और अफगानिस्तान के विरुद्ध 1 शतक लगाया।
अभी पिछले दिनों का एक क़िस्सा देखिए। भारत-ऑस्ट्रेलिया नागपुर टेस्ट के दूसरे दिन टेलीविजन पर टेस्ट क्रिकेट में भारत के बल्लेबाज के कनवर्शन रेट का रिकॉर्ड स्क्रीन पर दिखाया तो मुरली विजय, जो कमेंटेटर बॉक्स में ही थे, के सामने संजय मांजरेकर ने उनका नाम टॉप पर देख कर हैरानी जाहिर कर दी- मोहम्मद अजहरुद्दीन, पॉली उमरीगर, रोहित शर्मा और विराट कोहली से भी ऊपर। इस पर ही विजय भड़क उठे।
बचपन से विद्रोही- सवालों के जवाब खोजने के लिए घर छोड़ दिया, फुटपाथ और पार्क में सोए, स्नूकर पार्लरों में हसलर बन गए पर मेहनत की तभी तो नाम कमाया। स्कूल में ‘बैड बॉय’ कहे जाने पर स्कूल बदलने पड़े। एक इंटरव्यू में कहा था- ‘यदि आप जंगली कुत्ते को खुले में रखते हैं, तो वह अपनी आजादी की तलाश में दौड़ेगा। मैं ऐसा ही था।’ इसलिए अगर वे क्रिकेट में नाराज हैं तो हैरानी की कोई बात नहीं।
- चरनपाल सिंह सोबती