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सुरेंद्र खन्ना, कीर्ति आजाद, मनिंदर सिंह, सुनील वाल्सन, विवेक राजदान, निखिल चोपड़ा, अजय जडेजा, गुरशरण सिंह, मुरली कार्तिक, गगन खोड़ा, राहुल सांघवी ,विजय मेहरा (यूएई) तथा और कई जो रणजी ट्रॉफी में दूसरे स्टेट के लिए खेले- इन सभी में एक समानता है। कौन सी- कभी न कभी, दिल्ली में गुरचरण सिंह से कोचिंग ली। भले ही, इन में से किसी के भी साथ उनका नाम वैसे नहीं जुड़ा जैसे सचिन तेंदुलकर के साथ रमाकांत अचरेकर, कपिल देव के साथ देश प्रेम आजाद या विराट कोहली के साथ राज कुमार शर्मा का पर उन्होंने क्रिकेटरों की पीढ़ियों को ट्रेन किया, उनके दर्जनों ट्रेनी रणजी ट्रॉफी/टीम इंडिया के लिए खेले और यहां तक कि वे भारत से बाहर भी एक कोच के तौर पर मशहूर हुए।

इस समय उम्र 87+ साल, द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित (उनसे पहले सिर्फ देश प्रेम आजाद ही ऐसे क्रिकेट कोच थे जिन्हें द्रोणाचार्य अवार्ड मिला था) और अब भारत सरकार ने पद्म श्री से सम्मानित किया है। इस साल गणतंत्र दिवस के मौके पर जिन्हें सम्मानित किया गया- उस लिस्ट में उनका भी नाम है। इस अवार्ड तक पहुंचने का श्रेय वे अपने ट्रेनी और कोचिंग एकेडमी के ग्राउंड स्टाफ की मेहनत को देते हैं। किसी भी क्रिकेटर के, टीम इंडिया खेलने पर, खुद को उसका कोच बता कर, तारीफ़ हासिल करने वाले कई हैं- गुरचरण सिंह जैसा शायद ही कोई होगा जो ये कहते हैं कि खिलाड़ी की कामयाबी पर सारा श्रेय कोच छीन ले- ये सही नहीं। इसीलिए वे क्रिकेट के लिए, अपनी निस्वार्थ सेवा के लिए, भारत सरकार से पद्म श्री के बड़े सम्मान के सही हकदार हैं- सारा जीवन ईमानदारी से क्रिकेट की सेवा में लगा दिया।

खुद क्रिकेट खेले। 1935 में पश्चिम पाकिस्तान में जन्म, 1947 में परिवार के साथ भारत आ गए और पार्टीशन की तबाही को बड़े नजदीक से देखा। दाएं हाथ के बल्लेबाज और ऑफ ब्रेक गेंदबाज- सदर्न पंजाब और रेलवे के लिए फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेले (37 मैच में 1198 रन और 44 विकेट)। सदर्न पंजाब के लिए,रणजी ट्रॉफी में रेलवे के विरुद्ध शतक ने उनकी जिंदगी बदल दी। रेलवे टीम में शामिल हो गए- और तब लाला अमरनाथ, दत्तू फड़कर, बीबी निंबालकर, नारी कांट्रेक्टर, बुधी कुंदरन और वसंत रंजन जैसे खिलाड़ी रेलवे टीम में थे।

बहरहाल, जो मशहूरी उन्हें कोच के तौर पर मिली वह अद्भुत है। जहां भी मौका मिला कोचिंग दी- दिल्ली का एयर फ़ोर्स बाल भारती पब्लिक स्कूल (जहां उनके ट्रेनी में मनिंदर सिंह और गुरशरण सिंह भी थे), नेशनल स्टेडियम (1969 में एनआईएस में आए और 1995 तक ड्यूटी पर रहे) ,बीसीसीआई की ग्वालियर पेस एकेडमी में डायरेक्टर, कपिल देव की टीम इंडिया के साथ भी रहे 2 साल तक, 1985 में मालदीव के चीफ कोच और या फिर उनकी मौजूदा एकेडमी जिसे अरवाचिन भारती स्कूल, विवेक विहार में द्रोणाचार्य क्रिकेट एकेडमी नाम से चलाते हैं।

दिल्ली में क्रिकेट कोचिंग के ढांचे की एक पहचान है उनका नाम और सुबह नेशनल स्टेडियम में हर मौसम में, गुच्ची सर के नाम से मशहूर, गुरचरण सिंह का कोचिंग देने का जुनून किसी से छिपा नहीं था। डिसिप्लिन और कड़ी मेहनत भी सिखाई और आज तक उसी सिद्धांत पर चल रहे हैं- मौसम चाहे जैसा हो, कोच को ट्रेनी के आने से पहले मौजूद रहना चाहिए और उससे पहले ग्राउंड भी ट्रेनिंग के लिए तैयार हो। वे इसीलिए ग्राउंड स्टाफ को हमेशा शुक्रिया कहते हैं, जो क्रिकेट के लिए उनके जुनून में शामिल रहा। उम्र बढ़ गई पर वे नहीं बदले।

उम्र भले ही 87+ पर क्रिकेट से रिटायर होने या ब्रेक के जिक्र के लिए भी तैयार नहीं। हो सकता है, अपने कई मौजूदा ट्रेनी से भी फिट नजर आएं। हमेशा क्रिकेट के शुक्रगुजार- ‘आज जो भी हूं, क्रिकेट की वजह से हूं। इसने मुझे पहचान दिलाई, गजब के लोगों से मिलवाया, विनम्र होना सिखाया- जब तक शरीर इजाजत देगा- ये मिशन जारी रहेगा। एक भी ऐसी मिसाल नहीं कि किसी युवा क्रिकेटर को आईपीएल कॉन्ट्रैक्ट दिलाने में मदद की हो पर ऐसी कई हैं जब अपने ट्रेनी को नौकरी दिलाने के लिए- उनके साथ गए, अपनी बाइक पर ले गए और नौकरी देने वाली कंपनी को भी भरोसा दिलाया ट्रेनी की टेलेंट और मेहनत का। उनकी हमेशा से पॉलिसी है- क्रिकेट के साथ नौकरी जरूरी है क्योंकि ये भटकने से रोकती है। उन्हें खुद, नौकरी की सख्त जरूरत थी- इसीलिए वे इस जरूरत को समझते हैं।

कई स्टोरी हैं उनके नाम के साथ जुड़ी हुई- 1984 के दिल्ली दंगों में उनके ट्रेनी खिलाड़ियों ने हिंसक भीड़ से बचाया, कई साल पहले छोटे बेटे के एक्सीडेंट के बाद का डिप्रेशन, ट्रेनिंग के लिए दिल्ली के बड़े राजनेताओं/हस्तियों के प्रभाव में न आना- इस सब के लिए साहस की जरूरत होती है। एक समय था जब दिल्ली में सांसद क्रिकेट बोर्ड/क्रिकेट एसोसिएशन में आने की चाह के साथ-साथ खेलते भी थे। उस दौर में भागवत झा आज़ाद, माधव राव सिंधिया और सुरेंद्र सिंह जैसे लगातार नेशनल स्टेडियम के नेट्स पर आते थे और किसी ट्रेनी की तरह ही वहां खेलते थे। जब वे नेशनल स्टेडियम क्रिकेट सेंटर (NSCC) में थे तो युवा क्रिकेट ट्रेनी को एक्सपोजर के लिए इंग्लैंड क्रिकेट टूर पर भी ले जाते थे।

80 के दशक की शुरुआत में, नेशनल स्टेडियम में एक ही ग्राउंड में क्रिकेट के साथ-साथ बास्केटबॉल, वॉलीबॉल या जिम्नास्ट के ट्रेनी भी मौजूद रहते थे। उनकी कोशिशों से ही वह ग्राउंड क्रिकेट को मिला- इसे बेहतरीन आउटफील्ड और पिच के लिए बड़ी तारीफ़ मिली। इसीलिए 1987 में भारतीय टीम का रिलायंस विश्व कप कैंप यहीं चला था। 1996 में, वेस्टइंडीज और श्रीलंका की विश्व कप टीमों ने इसी ग्राउंड में प्रैक्टिस की।

पद्म श्री अवार्ड की घोषणा के बाद भी वे सुबह अर्वाचीन भारती भवन स्कूल में एकेडमी में मौजूद थे- यही इस गुरु का क्रिकेट सफर है। उनकी बायोग्राफी का टाइटल ‘पिचिंग इट स्ट्रेट’ है।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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