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भारतीय क्रिकेट के इतिहास के पन्ने पलटने पर कई कम परिचित पर ऐसे नाम सामने आएंगे जिनका योगदान बड़ा ख़ास है। नए दौर में उन्हें सब भूल गए। महिला क्रिकेट में ऐसा ही एक नाम महेंद्र कुमार शर्मा का था। एक नाम और- प्रकाश पोद्दार का है। वे कौन थे- बीसीसीआई के टैलेंट स्पॉटर और उन्होंने ही बीसीसीआई को सबसे पहले एमएस धोनी की टेलेंट के बारे में न सिर्फ बताया था- यह भी सिफारिश की कि इस टेलेंट के विकास पर ख़ास ध्यान दिया जाए और फायदा भारतीय क्रिकेट का होगा। वे कितने सही थे। इन्हीं प्रकाश पोद्दार का हैदराबाद में 82 साल की उम्र में निधन हो गया पिछली 29 दिसंबर को।

धोनी की टेलेंट को पहचान कर सही राह पर डालना ही उनका सबसे बड़ा परिचय बन गया। उनका दूसरा और सही परिचय ये है कि बंगाल और राजस्थान तथा ईस्ट और सेंट्रल जोनल के लिए खेले। 1960 के दशक में बेहतरीन बल्लेबाज गिने गए। रिकॉर्ड- 74 फर्स्ट क्लास मैच में 3868 रन 38.29 औसत से 11 शतक के साथ। इसमें से 39 मैच बंगाल के लिए थे- पंकज रॉय की कप्तानी में डेब्यू पर (1960 में असम के विरुद्ध) 141 रन बनाए थे। जनवरी 1964 में, बोर्ड प्रेसीडेंट इलेवन के लिए जॉन प्राइस, जेफ जोन्स, बैरी नाइट, जॉन मोर्टिमोर और डोनाल्ड विल्सन के अटैक वाली माइक स्मिथ की एमसीसी के विरुद्ध जो 100* बनाए उन्हें बड़ी चर्चा मिली थी। इसी बदौलत, इंग्लैंड के विरुद्ध, घरेलू सीरीज के लिए टेस्ट टीम तो आ गए पर आख़िरी 11 में नहीं आ पाए। टीम के खिलाड़ी बदलते रहे पर वे सभी 5 टेस्ट में नंबर 12 ही बने रहे। इस तरह टेस्ट टीम के इतना नजदीक पहुंच कर भी टेस्ट नहीं खेला। दो रणजी फाइनल खेले- दोनों राजस्थान के लिए उन तीन साल में जब वे उन के साथ थे।1970-71 रणजी ट्रॉफी में 70.25 औसत से 562 रन के साथ सीजन में सबसे ज्यादा रन की लिस्ट में नंबर 3 थे- इसमें  विदर्भ के विरुद्ध क्वार्टर फाइनल में 199 का एक स्कोर भी था। कुछ मैचों में बंगाल की कप्तानी की और 1976/77 सीज़न के बाद रिटायर हुए।

इंडिया कलर्स में श्रीलंका (तब सीलोन) के विरुद्ध खेले पर तब श्रीलंका टेस्ट टीम नहीं था- इसलिए प्रकाश पोद्दार के रिकॉर्ड में अनऑफिशियल ‘टेस्ट’ ही है। क्रिकेट में जो हासिल किया वह भी कम नहीं था क्योंकि उनके पिता उनके क्रिकेट खेलने को कतई पसंद नहीं करते थे। यहां तक कह दिया कि क्रिकेट खेलना है तो घर छोड़ना होगा। विश्वास कीजिए- उन्होंने घर और पिता की संपत्ति को छोड़कर क्रिकेट खेलना जारी रखा और एक कामयाब व्यवसायी बन गए!

धोनी के जिक्र में किस्सा ये है कि उनके लिए टर्निंग पॉइंट 1997 था। केंद्रीय विद्यालय, हिनू के विरुद्ध रांची इंटर-स्कूल टूर्नामेंट फाइनल में धोनी (213*) और उनके कप्तान शब्बीर हुसैन (146) ने मिलकर पिछले साल की, डीएवी की हार का बदला लिया। इस बैटिंग को देखकर,सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) ने दोनों को स्टाइपेंड पर टीम में शामिल कर लिया- धोनी तब 11 वीं में पढ़ते थे। सीसीएल एक मजबूत टीम थी और उनके लिए खेलना ही बड़ी बात थी। वे युवा खिलाड़ी को मासिक वजीफा देते थे 2,000 रुपये का लेकिन धोनी को 200 रुपये ज्यादा दिए क्योंकि वे मैच विनर थे। डबल सेंचुरी ने धोनी को रांची डिस्ट्रिक्ट टीम में जगह दिलाई

जब प्रकाश पोद्दार, टीआरडीडब्ल्यू स्कीम के लिए जमशेदपुर में एक अंडर-19 मैच देख रहे थे कीनन स्टेडियम से सटे एक ग्राउंड में तो धोनी के छक्कों से ग्राउंड के बाहर गिरती गेंद देखकर पोद्दार हैरान रह गए। सीधे खबर दी स्कीम के इंचार्ज दिलीप वेंगसरकर को। गाइड लाइन ये थी कि अंडर 19 खिलाड़ी इस स्कीम में नहीं आ सकता था पर धोनी की टेलेंट पर, पोद्दार की सिफारिश पर विश्वास कर, वेंगसरकर अड़ गए और जगमोहन डालमिया को रियायत देनी ही पड़ी। इस एक्सपोजर ने उनकी क्रिकेट को निखार दिया और भारत के क्रिकेट इतिहास की किताब में नया पेज जोड़ दिया।

प्रकाश, क्रिकेट करियर के बाद, बोर्ड के लिए टेलेंट रिसोर्स डेवलपमेंट ऑफिसर (TRDO) बने थे और धोनी जैसी टेलेंट को ढूंढने के बावजूद सिर्फ एक साल टीआरडीओ रहे। बंगाल में सब उन्हें लुलु-दा कहते थे। हमेशा बड़े गर्व से कहते थे- मैं गंभीरता से क्रिकेट खेलने वाला शायद पहला मारवाड़ी हूं। उनके हिसाब से तब मारवाड़ी इसलिए क्रिकेट नहीं खेलते थे क्योंकि इससे कोई पैसा नहीं मिलता था। उन्हें भरोसा था कि क्रिकेट में आगे जरूर पैसा आएगा और मारवाड़ी खेलेंगे भी ! वे कितने सही थे।  

  • चरनपाल सिंह सोबती

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