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क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने अफगानिस्तान के विरुद्ध वनडे इंटरनेशनल मैचों की सीरीज को रद्द कर दिया। मार्च 2023 में यूएई में आईसीसी सुपर लीग की 3 मैचों की इस सीरीज को न खेलने की वजह- तालिबान के शासन वाले अफगानिस्तान  में महिलाओं के अधिकारों में गिरावट पर चिंता। सीरीज रद्द करने से पहले ऑस्ट्रेलियाई सरकार के साथ बातचीत की थी यानि कि इस फैसले को राजनीतिक मंजूरी मिली।

सीरीज ऑस्ट्रेलिया ने रद्द की- इसलिए लीग के उनके 30 पॉइंट गए पर इससे कोई नुकसान नहीं होने वाला क्योंकि इस साल अक्टूबर के भारत में 50 ओवर वर्ल्ड कप के लिए वे पहले ही सीधे क्वालीफाई कर चुके हैं।  

तालिबान के किस नए फैसले ने ट्रिगर का काम किया- महिलाओं और लड़कियों की पढ़ाई और नौकरी पर ही नहीं, उनके पार्क और जिम जाने पर भी नए प्रतिबंध की घोषणा। बयान में कहा गया- क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया, अफगानिस्तान सहित दुनिया भर में महिलाओं और पुरुषों के लिए खेल को बढ़ावा देने के लिए वचनबद्ध है और वहां महिलाओं और लड़कियों के लिए आगे बेहतर स्थिति की उम्मीद में वे अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड के साथ सम्बंध जारी रखेंगे।

तालिबान ने 2021 के बीच में इस एशियाई देश पर फिर से नियंत्रण हासिल कर लिया था और तब से खेलों में महिला भागीदारी पर उनकी सख्ती/प्रतिबंध की ही चर्चा हो रही है। यहां तक कि टीन-एज लड़कियों के सेकंडरी स्कूल और महिलाओं के यूनिवर्सिटी जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया। इससे पूरी दुनिया में गुस्से को देखा गया। और देखिए :

  • महिलाएं वहां किसी भी तरह की मदद देने वाले सेक्टर में काम नहीं कर सकतीं।
  • कई सरकारी नौकरियों से भी बाहर।
  • किसी पुरुष रिश्तेदार के साथ के बिना सफर/घूमना मना है।
  • घर के बाहर बुर्का जरूरी है।

अब सवाल ये है कि इस सब को क्रिकेट से क्यों जोड़ें? इसीलिए अफगानिस्तान और ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेटरों और क्रिकेट बोर्ड के बीच एक राजनीतिक विवाद छिड़ गया

अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड (एसीबी) ने ऑस्ट्रेलिया के ‘दयनीय, गलत और अप्रत्याशित’ फैसले की आलोचना में कोई कंजूसी नहीं की और 450 शब्दों का एक मसालेदार बयान जारी कर दिया- इसमें महिला या महिला क्रिकेट का कहीं जिक्र नहीं था।
कप्तान राशिद खान ने सीरीज रद्द होने के फैसले के विरोध में बिग बैश लीग में खेलना बंद करने की धमकी दी है। राशिद 2017 से एडिलेड स्ट्राइकर्स के स्टार हैं। मजे की बात ये है कि पिछले महीने ही तो राशिद ने तालिबान की आलोचना सोशल मीडिया पर की थी- लेकिन इस बार उनके निशाने पर थी क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया। राशिद ने कहा- ‘मुझे अपने देश का प्रतिनिधित्व करने पर गर्व है और हमने विश्व मंच पर बहुत प्रगति की है

क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया का ये फैसला हमें बैक फुट पर लाने वाला है। अगर अफगानिस्तान के विरुद्ध खेलने से ऑस्ट्रेलिया को परेशानी है तो मैं बीबीएल में खेलकर उन्हें परेशान नहीं करना चाहता।’ इस सीज़न के बीबीएल में राशिद का खेलना, इस सब से पहले ही ख़त्म हो चुका था- वे नए एसए20 में एमआई केपटाउन की कप्तानी के लिए ऑस्ट्रेलिया से चले गए थे।

2017 में एडिलेड स्ट्राइकर्स टीम में आए थे और सब मानते हैं कि टीम के सबसे पसंदीदा खिलाड़ियों में से एक हैं। इसका एक बड़ा मजेदार सबूत- पिछले साल के टी20 विश्व कप में, ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध  अफगानिस्तान के एडिलेड मैच में दर्शकों से राशिद को भारी सपोर्ट मिला था, हालांकि उनकी पारी ने ही नेट रन रेट पर टूर्नामेंट से मेजबान ऑस्ट्रेलिया को बाहर करने में ख़ास भूमिका निभाई थी।

उनकी टीम के ही नवीन-उल-हक (सिडनी सिक्सर्स और सिडनी थंडर) एक कदम और आगे बढ़ गए- फौरन बिग बैश का बॉयकॉट कर दिया। नवीन ने  क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के फैसले को बचकाना कहा जबकि स्टार ओपनर रहमानुल्लाह गुरबाज ने ऑस्ट्रेलिया पर उन की एकमात्र खुशी छीनने’ का आरोप लगाया। एसीबी ने, खिलाड़ियों से मिले इस सपोर्ट के बाद, कहा- अब नए सिरे से सोचेंगे कि क्या अपने खिलाड़ियों को बीबीएल में खेलने की इजाजत दें? वे इस मुद्दे पर आईसीसी को भी लिखे रहे हैं। सबसे बड़ा आरोप है- खेल में राजनीति लाने का।

ऐसा पहली बार नहीं है जब क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने तालिबान के प्रभाव के कारण अफगानिस्तान के विरुद्ध मैच खेलने से इनकार किया- 2021 में, पहला टेस्ट भी  रद्द कर दिया था, जो होबार्ट में खेला जाना था। उस साल ही तो अगस्त में तालिबान के कब्जे के बाद वहां महिलाओं को बराबरी पर खेलने से रोकने का सिलसिला शुरू हुआ था। अफगानिस्तान ने ऑस्ट्रेलिया में टी20 विश्व कप में हिस्सा लिया और उनके विरुद्ध खेले भी

आईसीसी की अफगानिस्तान से शिकायत ये है कि वहां महिला क्रिकेट को खत्म कर दिया गया है- जो बिना बुर्का बाहर नहीं निकल सकतीं, वे भला खेलेंगी कैसे? इसी बात का दूसरा पहलू ये है कि इस सब से ,अफगानिस्तान में क्रिकेट को और बढ़ाने की कोशिश पर नेगेटिव प्रभाव पड़ेगा- उस प्यार को प्रभावित करेगा जो क्रिकेट के लिए अफगान राष्ट्र में जुनून जैसा है।

तो इस तरह क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया और ऑस्ट्रेलिया सरकार महिलाओं और लड़कियों के साथ तालिबान के व्यवहार के जवाब में, अफगानिस्तान के विरुद्ध क्रिकेट न खेलने को सपोर्ट कर रहे हैं। भविष्य के मैचों के बारे में, उस समय की स्थिति देख कर फैसला होगा। मुद्दा ये है कि एक तरफ तो खेलों में राजनीति का विरोध किया जाता है और दूसरी तरफ साफ़-साफ़ राजनीति की दलील पर क्रिकेट को रोक दिया है।

मैचों के बॉयकॉट को राजनीतिक हथकंडे के तौर पर  इस्तेमाल करने का एक लंबा इतिहास है। रंगभेद युग में भी यही हुआ था- दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट का इंटरनेशनल बॉयकॉट कौन भूल सकता है? इसीलिए तालिबान का विरोध करने वाले क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया की तारीफ़ कर रहे हैं और ये उम्मीद कर रहे हैं कि अन्य दूसरे देश भी उन के क्रिकेट मैचों को बॉयकॉट करेंगे। क्या तालिबान पर कोई मैच या सीरीज रद्द होने से कोई असर पड़ेगा? इस सवाल का जवाब राजनीति है और यहां क्रिकेट पर लिख रहे हैं, न कि राजनीति पर। अफगानिस्तान में जो हो रहा है उस पर क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया को किस हद तक चिंता करने का अधिकार है? भारत और पकिस्तान भी तो राजनीति की पिच के तनाव की वजह से ही आपस में क्रिकेट सीरीज नहीं खेलते

संयोग देखिए कि अभी कुछ दिन पहले ही तो मेलबर्न में भारत-  पाकिस्तान टेस्ट सीरीज की चर्चा चली थी। 2007 के बाद से, आपस में, टेस्ट तो खेला ही नहीं है। 2013 से सिर्फ 20 और 50 ओवर के विश्व कप और एशिया कप में एक-दूसरे के विरुद्ध खेले हैं। आखिरी बार अक्टूबर में टी-20 विश्व कप में खेले थे जहां 90,000 से ज्यादा दर्शक मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड में भारत को आखिरी गेंद पर रोमांचक जीत हासिल करते देखने के लिए जमा हुए थे।

मेलबर्न को उस मैच के माहौल (या गेट टिकट मनी) ने दिखाया कि दोनों के बीच टेस्ट सीरीज के लिए भी स्टेडियम भरने में कोई दिक्कत नहीं होगी और उन्हें ये भरोसा है कि भारत और पाकिस्तान न्यूट्रल ग्राउंड में आपसी टेस्ट खेलने के लिए राजी हो जाएंगे। ऑस्ट्रेलिया वाले, अपने फायदे की बात आए तो न्यूट्रल ग्राउंड की दलील पर भारत-पाकिस्तान मैच चाहते हैं पर उन्हें भी तो अपनी मार्च 2023 की अफगानिस्तान के विरुद्ध सीरीज खेलने, अफगानिस्तान थोड़े ही जाना था- सीरीज न्यूट्रल ग्राउंड में यूएई में थी। सोचने वाली बात है!

यूएई में मैच खेल कर भी तो विरोध का संदेश दिया जा सकता था। खिलाड़ी और कमेंटेटर इसमें मदद करते। क्रिकेट को राजनीति से अलग रख कर बेहतर संदेश दिया जा सकता था।  क्रिकेट अभी भी अफगान जनता में नया जीवन और चमक है। राशिद खान और मोहम्मद नबी का नाम वहां हर घर में लिया जाता है। शेन वार्न अभी भी अफगान स्पिनरों की एक पीढ़ी के लिए प्रेरणा हैं। डीन जोन्स जब 2017 में काबुल गए थे तो वहां उन्हें  रॉयल्टी जैसा स्वागत मिला था। राजनीति में क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया का गैर-जरूरी दखल अच्छे से ज्यादा, नुकसान कर रहा है। 

  • चरनपाल सिंह सोबती

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