fbpx

100 साल जीने वाले, भारतीय फर्स्ट क्लास क्रिकेटर की लिस्ट में एक नाम और जुड़ गया है- रुस्तम सोराबजी कूपर का (उनसे पहले : प्रो. डीबी देवधर, रघुनाथ चांदोरकर एवं वसंत रायजी)। ऐसा लिखते हुए ये स्पष्ट करना जरूरी है कि ये लिस्ट सिर्फ उन खिलाड़ियों से बनी है जिनकी जन्म और मृत्यु का डेटा उपलब्ध है। आज के दौर में जिस तरह से तारीख और घटनाओं को रिकॉर्ड किया जाता, पहले ऐसा नहीं था- कई जगह रुस्तम सोराबजी कूपर का जन्मदिन 15 दिसंबर 1921 लिखा है पर उनकी बेटी ने 14 दिसंबर 1922 को सही बताया है।

ये भी सच है कि पुराने खिलाड़ियों के जिक्र में भी आम तौर पर, रुस्तम का नाम नहीं आता- इसकी वजह का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं। अब तो इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने वाले भी भुलाए जा रहे हैं- रुस्तम तो सिर्फ फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेले। फिर भी बहुत कुछ ऐसा है उनके बारे में जो आज के क्रिकेट प्रेमियों को जानना चाहिए।

रुस्तम कूपर दाएं हाथ के बल्लेबाज थे। पारसी, बॉम्बे और मिडलसेक्स के लिए खेले वे- सबसे ख़ास बात ये कि काउंटी क्रिकेट खेलने वाले पहले भारतीय थे वे। रणजी, दलीप या पटौदी, उनसे इस मामले में अलग थे। 1945 में होल्कर के विरुद्ध रणजी फाइनल में शतक लगाया। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स गए पढ़ने के लिए और बाद में बेरिस्टर बने- लिंकंस बॉर में शामिल हुए। इस परिचय की एक-एक लाइन ख़ास है।

और एक रिकॉर्ड- मुंबई में जन्मे रुस्तम, 16 जून, 2020 को इंग्लिश काउंटी क्लब मिडिलसेक्स के लिए खेलने वाले सबसे बड़ी उम्र के जीवित फर्स्ट क्लास क्रिकेटर बन गए थे- तब  97 साल 183 दिन की उम्र थी और जेम्स गिलमैन का रिकॉर्ड तोड़ा- उनका 97 साल 182 दिन की उम्र में देहांत हो गया था।

रुस्तम कूपर मई 1949 में फेनर में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के विरुद्ध मिडिलसेक्स के लिए पहला फर्स्ट क्लास मैच खेले और उनके 36 रन थे टीम के 402-4 के स्कोर में। उनका आख़िरी फर्स्ट क्लास रिकॉर्ड, 52.39 की बल्लेबाजी औसत दिखाता है- इसमें मिडलसेक्स के लिए, 8 मैचों में, औसत सिर्फ 19.63 था और 54 टॉप स्कोर। ये रिकॉर्ड उनकी सही टेलेंट नहीं दिखाता। जब वे मिडिलसेक्स के लिए उपलब्ध थे तो साथ-साथ हॉर्नसे के लिए क्लब क्रिकेट (मिडिलसेक्स सेकेंड इलेवन के लिए भी) खेले। यहां ज्यादा मशहूरी हासिल की। उस समय डेनिस कॉम्पटन, जेजे वार और बिल एड्रिच जैसे खिलाड़ी थे मिडिलसेक्स की टीम में।

क्लब के लिए, उनके रिकॉर्ड को तो कई जगह ‘ब्रैडमैनस्क्यू’ भी लिखा है। 1946 में डेब्यू सीज़न में 114.2 की औसत से 571 रन, 1950 में रिचमंड के विरुद्ध 135* टॉप स्कोर और क्लब के लिए 19 शतक (उनमें से 18 में आउट नहीं हुए !) – 1948,1952 और 1953 में हॉर्नसे के लिए समर में 1,000 से ज्यादा रन बनाए। 1953, जो क्लब के लिए आखिरी सीजन था, उसमें 19 पारियों में 139.62 के औसत से 1,117 रन बनाए।

ये भी एक स्टोरी है कि उन्हें क्रिकेट खेलने के लिए इंग्लैंड कौन ले गया? महान बल्लेबाज डेनिस कॉम्पटन ने रुस्तम को भारत में खेलते देखा तो मिडिलसेक्स को उनके बारे में बताया था।रूसी के नाम से लोकप्रिय, रुस्तम सही किताबी स्टाइल के क्रिकेटर थे- आईपीएल स्टाइल के नहीं। तब भी भारत की घरेलू क्रिकेट में खूब नाम कमाया और सीके नायडू की होल्कर टीम के विरुद्ध रणजी ट्रॉफी में 100 को तो खूब याद किया जाता है।

ये सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए कि अगर इतना अच्छा खेल रहे थे तो उन्हें भारत के लिए टेस्ट खेलने का मौका क्यों नहीं मिला- इसका कहीं कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिलता। यहां तक कि 1952 के इंग्लैंड टूर के लिए भी उन्हें नहीं चुना- उस सीजन में भारत के बल्लेबाज इंग्लैंड टूर में स्विंग के सामने जूझते ही रहे थे। शायद, उनका भारत में न होना इसकी सबसे बड़ी वजह था। वे क्रिकेट के साथ बैरिस्टर बने, वहीं एक इंग्लिश महिला से शादी की और भारत लौटे। भारत लौटने के बाद उन्होंने किसी भी भूमिका में यहां, क्रिकेट से जुड़ने की कोई कोशिश नहीं की और इसीलिए उनका जिक्र कम हो गया। शायद उनका ध्यान कोर्ट में ज्यादा था।    

एक और रिकॉर्ड- रुस्तम अब अकेले ऐसे जीवित भारतीय हैं, जो देश की आजादी से पहले के टूर्नामेंट पेंटांगुलर्स में खेले। इसमें कम्युनल टीम खेलती थीं और वे पारसियों (1941-42 से 1944-45) के लिए खेले। ये भी कह सकते हैं कि वे अकेले ऐसे जीवित भारतीय हैं जो इस पेंटांगुलर्स और रणजी ट्रॉफी दोनों में खेले।

कुल 22 फर्स्ट क्लास मैच जिसमें सबसे चर्चित मैच 4-8 मार्च, 1945 को ब्रेबॉर्न स्टेडियम में बॉम्बे और होल्कर के बीच था। तब होल्कर टीम में डेनिस कॉम्पटन भी थे, जिन्होंने दोहरा शतक (249*) बनाया। रुस्तम ने  52 और 104 रन बनाए और विजय मर्चेंट ने 8 घंटे से ज्यादा में 278 रन बनाए। बॉम्बे ने बड़े स्कोर वाला ये मैच 374 रन से जीता था। इस फर्स्ट क्लास सीज़न (1944-45) में 91.83 औसत से दो शतक और पांच अर्द्धशतक के साथ 551 रन बनाए थे- ये भारत में रुस्तम कूपर का आखिरी सीजन साबित हुआ।

चरनपाल सिंह सोबती  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *