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श्रीलंका के वाइट बॉल टूर में 3 टी20 इंटरनेशनल की सीरीज में इस रिपोर्ट के लिखने तक टीम इंडिया 2-0 से आगे है। अभी टी20 वर्ल्ड कप में जीत की चर्चा सही मायने में चल ही रही थी और उसके बाद इन मैचों को देखें तो यूं लगता है कि उस वर्ल्ड कप जीत के बाद एकदम बहुत कुछ बदल गया। सबसे ख़ास है सूर्यकुमार यादव का कप्तान बनना। वर्ल्ड कप के बाद रोहित शर्मा के रिटायर होने पर किसी और को तो कप्तान बनना ही था पर लगभग 34 साल की उम्र में सूर्यकुमार यादव कप्तान बनने के दावेदार की लिस्ट में बहुत फेवरिट न होने के बावजूद कप्तान बने। इन दो मैच की जीत के बाद, सेलेक्टर्स और उनकी इस सोच को सही ठहराने वाले जरूर पीठ थपथपा रहे होंगे।  

इन जीत के बावजूद इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि कप्तान के तौर पर वे एक ‘सरप्राइज’ हैं। अगर किसी को ‘स्टॉप गैप’ कप्तान बनाना था तो भी भविष्य को देखते हुए अन्य दावेदार थे। उनके रिकॉर्ड को नजरअंदाज नहीं कर सकते और शायद इसी को सेलेक्टर्स ने सबसे ज्यादा भाव दिया- आईसीसी टी20 रैंकिंग में नंबर 2 बल्लेबाज, इस फॉर्मेट में इससे पहले भी 7 बार टीम इंडिया के कप्तान (5 जीत, 2 हार) पर ‘लांग टर्म’ कप्तान की जरूरत में उनके इस ‘बड़ी’ उम्र में इस फॉर्मेट में कप्तान बनने के आसार बहुत ज्यादा नहीं थे। मजे की बात ये कि जिन सूर्यकुमार यादव को टीम इंडिया का टी20 कप्तान बनाया- उन्हें उनकी आईपीएल टीम ने कप्तान नहीं बनाया। आईपीएल टीम के कप्तान टीम में हैं पर ‘कप्तान’ नहीं बनाए गए।

इस तरह अजीत अगरकर की कमेटी ने ही कप्तान बनाने के ऐसे फैसले में (जिसमें फेवरिट पीछे रह गए तथा कोई और बाजी मार गया) हैरान किया पर ये भी सच है कि क्रिकेट में ऐसे हैरान करने वाले फैसलों की कई मिसाल हैं। ज्यादा पीछे न जाएं तो हाल के सालों में और भी कई ऐसे फैसले लेने के लिए मशहूर रही हैं सेलेक्शन कमेटी।

टिम पेन (ऑस्ट्रेलिया) के कप्तान बनने को कौन भूल सकता है? जब 2018 में न्यूलैंड्स में सैंडपेपर गेट बॉल-टैम्परिंग मामले के बाद, ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट डगमगा रही थी तो क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने सभी बड़े नाम एक तरफ कर दिए और टिम पेन को टेस्ट कप्तान बनाकर धमाका किया। तब तक सिर्फ 12 टेस्ट मैच खेले थे पेन ने और वे भी लगातार नहीं। तब उस्मान ख्वाजा, शॉन मार्श और नाथन लियोन जैसे सीनियर कप्तानी के दावेदार की लिस्ट में फेवरिट थे पर पेन बाजी मार गए। वैसे ये प्रयोग ख़राब नहीं रहा- 3 साल में 23 टेस्ट में कप्तान जिसमें 18 साल में पहली बार इंग्लैंड में (2019 में) एशेज पर अधिकार ख़ास है और टीम को संकट के दौर से बाहर निकाला।

लगभग ऐसा ही एडेन मार्कराम को कप्तान बनाकर दक्षिण अफ्रीका ने किया। ये भी 2018 का किस्सा है और मार्कराम को तब स्टैंड-इन वनडे कप्तान बनाया (2018 में भारत के विरुद्ध वनडे सीरीज के बीच में फाफ डु प्लेसिस के चोटिल होने पर) जब वे सिर्फ 2 वनडे खेले थे- यहां तक कि कुल मिलाकर 7 इंटरनेशनल मैच खेले थे। तब टीम में क्विंटन डी कॉक, हाशिम अमला, डेविड मिलर, जेपी डुमिनी और कैगिसो रबाडा जैसे सीनियर भी थे पर वे बाजी मार गए। उस सीरीज की नाकामयाबी ने वास्तव में उनका नुकसान किया पर वे वापस लौटे। एक बार नाकामयाब कप्तान का लेबल लगने के बाद वापसी आसान नहीं होती।

एमएस धोनी को कप्तान बनाना भी ऐसा ही था। सेलेक्टर्स ने 2007 में टी20 क्रिकेट में एमएस धोनी को वर्ल्ड कप टीम का कप्तान बना कर चौंका दिया। जब ये तय हो गया कि सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली जैसे सीनियर उपलब्ध नहीं तो सेलेक्टर्स ने एकदम ही यू टर्न लिया और फेवरिट युवराज सिंह को ही नहीं, वीरेंद्र सहवाग और हरभजन सिंह जैसे सीनियर को भी बैकफुट पर कर दिया। इसके बाद जो हुआ- उस इतिहास को सब जानते हैं। उस युवा टीम ने धोनी को न सिर्फ कामयाब, एक सुलझे कप्तान की जो छवि दिलाई- उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 

अब देखिए गुलबदीन नैब (अफगानिस्तान) के साथ 2019 वर्ल्ड कप शुरू होने में लगभग एक महीना पहले क्या हुआ? कुछ दिन बचे थे टूर्नामेंट में और अफगानिस्तान टीम जिन असगर अफगान के साथ तैयार हो रही थी वर्ल्ड कप में खेलने के लिए- उन्हें हटा दिया और गुलबदीन नैब नए कप्तान बने। गुलबदीन नियमित वनडे खेल रहे थे पर इस मुकाम पर जो 2015 से लगातार सभी फॉर्मेट में कप्तान हो, न सिर्फ उसे हटाकर कर, इस पोस्ट के लिए मोहम्मद शहजाद, मोहम्मद नबी, रहमत शाह और दौलत ज़ादरान के अनुभव को नजरअंदाज कर, सभी को हैरान कर दिया। ये फैसला टीम पर बड़ा भारी पड़ा।

एक और बड़ी अच्छी मिसाल जेसन होल्डर (वेस्टइंडीज) हैं। 2015 में जब वे टेस्ट कप्तान बनाए गए दिनेश रामदीन की जगह तो सच ये है कि टेस्ट टीम में उनकी जगह तक पक्की नहीं थी। सिर्फ 8 टेस्ट खेले थे जिसमें बैट (इंग्लैंड के विरुद्ध 100 भी) और गेंद (16 विकेट) से अच्छा प्रदर्शन था पर सेलेक्टर्स ने इस बात को भाव दिया कि वे तब वनडे कप्तान थे। टेस्ट कप्तानी मिल गई सिर्फ 23 साल की उम्र में और क्रेग ब्रेथवेट, रामदीन, मार्लन सैमुअल्स, डैरेन ब्रावो, केमर रोश और जेरोम टेलर जैसे सीनियर वाली टीम के कप्तान बन गए। ये प्रयोग ख़राब नहीं रहा और 2019 में अपनी पिचों पर इंग्लैंड को 2-1 से हराया जबकि सबसे ख़ास ये कि संकट में टीम को जोड़े रहे। मौजूदा दौर में वेस्टइंडीज टीम की कप्तानी आसान चुनौती नहीं।

भारतीय क्रिकेट में भी धोनी से पहले अजीत वाडेकर और अजहरुद्दीन का टेस्ट कप्तान बनना जितना हैरानी वाला था उतना ही पहले दोनों वर्ल्ड कप के लिए एस वेंकटराघवन को कप्तान बनाना। इसलिए ऐसे सरप्राइज तो क्रिकेट का हिस्सा हैं। 
-चरनपाल सिंह सोबती

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