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 डब्ल्यूटीसी (वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप) फाइनल की चर्चा में सबसे बड़ा सवाल है कि न्यूट्रल ग्राउंड पिच पर कैसा खेलेंगी दोनों टीम? इस डब्ल्यूटीसी में घरेलू पिच का फायदा उठाने के मुद्दे की सबसे ज्यादा चर्चा हुई है और ये कहना गलत नहीं होगा कि शायद खिलाड़ियों के बेहतर प्रदर्शन से भी ज्यादा जरूरी हो गया कि ऐसी पिच बनाओ जो मेजबान के लिए, पॉइंट्स इकट्ठे करने में मदद करे।

 संयोग से इंग्लैंड में खेल रहे हैं तो बैज़बॉल का मुद्दा भी ख़ास है। थोड़े से दिनों में इसकी बॉडीलाइन और डीआरएस से भी ज्यादा चर्चा हुई है। इस की सबसे बड़ी खासियत रही कि इंग्लैंड के अटैक को 20 विकेट लेने के लिए अतिरिक्त समय दिया। फायदा उठाया उनकी बेहतर गेंदबाजी ने। क्या डब्ल्यूटीसी फाइनल में भी इसे देखेंगे? इस पॉलिसी में खेल के लगभग हर सैशन में लगभग 40 ज्यादा रन बनाए गए। इसके साथ, औसतन हर 48 गेंद पर इंग्लैंड का एक विकेट गिरा- अन्य 11 टेस्ट टीम का हर 56 गेंद में (1 जून, 2022 से बेजबॉल युग शुरू मानें तो)। इंग्लैंड ने प्रति विकेट 38.4 रन बनाए- अन्य टीमों ने 30.7 रन।

इस पॉलिसी को भारत या ऑस्ट्रेलिया में से कोई अपनाएगा- इसकी उम्मीद कम है। बाकी सभी 11 टेस्ट टीम ने डब्ल्यूटीसी फाइनल के लिए रेस में, बेहतर क्रिकेट को नहीं, सिर्फ उन पॉइंट्स को देखा जो जीतने से मिलते ताकि फाइनल के लिए क्वालीफाई कर सकें। आज के टेस्ट क्रिकेट प्रेमी शायद विश्वास भी नहीं कर पाएंगे कि एक समय तेंदुलकर (15,921), द्रविड़ (13,288), लक्ष्मण (8781), वीरेंद्र सहवाग (8586) और गांगुली (7212) जैसे एक साथ भारत की टीम में थे। विराट कोहली के टेस्ट 100 के इंतजार के अतिरिक्त पिछले कुछ सालों में बल्लेबाजी के किस रिकॉर्ड की चिंता की गई? बात साफ़ है- डब्ल्यूटीसी की शुरूआत के बाद से दो साल के राउंड में पॉइंट सबसे ख़ास हो गए क्योंकि फाइनल में खेलना है तो पॉइंट्स चाहिए।

इस राउंड की आख़िरी दो टेस्ट सीरीज देख लीजिए- भारत में भारत-ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में न्यूजीलैंड-श्रीलंका। दोनों में हर दिन सिर्फ डब्ल्यूटीसी के फाइनलिस्ट की पहचान के लिए नतीजे की बात हुई- कैसी क्रिकेट खेल रहे हैं, इसकी नहीं।

आखिर में भारत ने द ओवल, लंदन में ऑस्ट्रेलिया से खेलने का हक हासिल किया लेकिन एक समय तो ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका टीम ने भारत की स्कीम को लगभग खराब कर ही दिया था। विलियमसन ने टेस्ट में दोहरा शतक जड़ा और भारत क्वालीफाई कर गया। विराट कोहली ने भी वह शतक लगाया जिसका इंतजार था- लेकिन सीरीज के उस चौथे टेस्ट में, जिसके पहले 3 टेस्ट ने भारत और ऑस्ट्रेलिया के कई मशहूर बल्लेबाजों की प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया था। स्टीव स्मिथ (30 टेस्ट 100), इंग्लैंड के जो रूट (29), कोहली (28) और विलियमसन (28) जैसे आज भी एक साथ टेस्ट खेल रहे हैं पर इनके बाद क्या होगा? ये भी डब्ल्यूटीसी की देन नहीं हैं- उससे पहले से खेल रहे हैं।

जब 1980 दशक और 1990 दशक की शुरुआत में वेस्टइंडीज अपने तेज गेंदबाजों की बैटरी के साथ विरोधियों को टिकने नहीं देते तो पिचें बहुत उम्दा नहीं थीं। इसीलिए कई टेस्ट, सामने ऑस्ट्रेलिया/इंग्लैंड/भारत हों तो भी 3/4 दिन में ही खत्म हो जाते थे। ऑस्ट्रेलिया ने भी, मिच जॉनसन, ब्रेट ली और ग्लेन मैकग्राथ के साथ वेस्टइंडीज को छोड़कर अन्य दूसरी टीम के विरुद्ध तेज और असमान बाउंस वाली पिचें तैयार कीं और कामयाब रहे।

1990 दशक में सेटेलाइट टेलीविजन का युग आया। टीवी चैनल ब्रॉडकास्टर, काफी पैसा दे रहे थे पर बदले में टेस्ट बहुत जल्दी खत्म हो रहे थे और उन्हें अपने पैसे की वसूली का पूरा समय नहीं मिल रहा था। तब पिचों को आसान बनाने लगे- बल्लेबाजों के लिए। कभी-कभी ही कुछ ख़ास हुआ जैसे कि भारत, 1997 में बारबाडोस में वेस्टइंडीज के विरुद्ध 120 रन के मामूली लक्ष्य के सामने भी तरस खाने वाले 81 रन पर सिमट गया।

भारतीय टीम में  दिग्गज थे- वीवीएस लक्ष्मण, नवजोत सिद्धू, राहुल द्रविड़, तेंदुलकर, मोहम्मद अजहरुद्दीन, सौरव गांगुली लेकिन ये मशहूर लाइन-अप फ्रेंकलिन रोज़, के सामने भी न टिक पाई- वहां कर्टली एम्ब्रोस, इयान बिशप और पिच की मदद भी थी। तब भी, आम तौर पर, ऑस्ट्रेलिया, वेस्ट इंडीज, इंग्लैंड और भारतीय उपमहाद्वीप में पिचों को आसान और बल्लेबाजों के लिए ही बना रहे थे।

उस दौर में सिर्फ भारत नहीं, लगभग हर टीम में  ऐसे बल्लेबाज थे जिन्होंने ढेरों रन बनाए- ऑस्ट्रेलिया में रिकी पोंटिंग (13,378 टेस्ट रन), स्टीव वॉ (10,927), मैथ्यू हेडन, एडम गिलक्रिस्ट ; दक्षिण अफ्रीका में जैक कैलिस (13,289), हाशिम अमला (9282), ग्रीम स्मिथ (9625); वेस्टइंडीज में ब्रायन लारा (11,953), शिवनारायण चंद्रपॉल (11,867); श्रीलंका के कुमार संगकारा (12,400) और महेला जयवर्धने (11,814) ; इंग्लैंड के एलिस्टेयर कुक (12,472) और पाकिस्तान से इंजमाम उल हक (8830) और मोहम्मद यूनुस (7,530) जैसे। यह बल्लेबाजों के लिए ‘गोल्डन’ दौर था।  तेंदुलकर (15,921), द्रविड़ (13,288), लक्ष्मण (8781), वीरेंद्र सहवाग (8586) और गांगुली (7212) इसी दौर में खेले।

अच्छी पिचों का सिलसिला डब्ल्यूटीसी के आने तक जारी रहा पर उसके बाद दो साल के राउंड में जमा पॉइंट्स प्ले-ऑफ फाइनलिस्ट के लिए सबसे ख़ास हो गए। मेजबान ने अपने मतलब के लिए पिचों में बदलाव किया। किसी भी टीम को, उसकी पिच पर हराना लगभग असंभव गया। भारत के पास रैंक टर्नर का फायदा उठाने के लिए स्पिनरों का सबसे अच्छा सेट है- रविचंद्रन अश्विन और रवींद्र जडेजा। ऑस्ट्रेलिया को क्रमशः नागपुर और दिल्ली में 91 और 113 पर आउट कर दिया और दोनों टेस्ट तीन दिनों में और बड़े अंतर से जीते। कभी-कभी पासा उल्टा भी पड़ जाता है जैसे कि इंदौर में हुआ- भारत 109 और 163 पर ढेर और तीन दिनों में हार गए।

इस तरह की पिचों पर शतक बनाना लगभग असंभव था। जब भारत को भरोसा हो गया कि एक ड्रॉ से ही काम बन जाएगा तो अहमदाबाद में एक दम सपाट पिच बना दी- ऑस्ट्रेलिया के 480 और 175-2 तथा भारत के 571 अपने आप बता देते हैं कि कैसी क्रिकेट खेले?

कुल नतीजा ये कि डब्ल्यूटीसी पॉइंट्स की मौजूदा प्रणाली, मेजबान देश के लिए है और वे उसी के लिए पिच तैयार कर रहे हैं। बड़े स्कोर और बल्लेबाजी के रिकॉर्ड गायब- बस कभी-कभी, ड्रा और बड़े स्कोर देखने को मिलते हैं। मौजूदा युग के बड़े टेस्ट बल्लेबाजों को तेंदुलकर, पोंटिंग, या कैलिस युग की तुलना में बहुत अलग पिचों पर खेलना पड़ रहा है!

ऐसा नहीं कि इसे पहले महसूस नहीं किया पर कुछ ख़ास किया नहीं। पॉइंट सिस्टम दो राउंड में दो बार बदल चुका है। सबसे पहले तय हुआ था- हर टीम 3 होम और 3 विदेश में सीरीज खेलेगी और हर रबर के बराबर 120 पॉइंट। इसका मतलब हर टेस्ट के पॉइंट बराबर नहीं- 2 टेस्ट की सीरीज में एक जीत के 60 पॉइंट लेकिन 5 टेस्ट की सीरीज में एक जीत सिर्फ 24 पॉइंट की।

जब कोविड में कई सीरीज रद्द हुईं मजबूरी में तो पॉइंट सिस्टम बदल कर पीसीटी (points won per points contested) कर दिया। इससे एक ही तालिका में , खेली सीरीज की गिनती अलग होने के बावजूद, टीमों को रैंक दे सके। यही सिस्टम मौजूदा डब्ल्यूटीसी राउंड में भी लागू था पर एक बदलाव के साथ। अब, हर टेस्ट को बराबर पॉइंट देने लगे न कि सीरीज को।

एक कमी तब भी छोड़ दी। अब टीम के लिए बाहर के टेस्ट की तुलना में अपनी पिच पर ज्यादा पॉइंट हासिल करना संभव हो गया और कुछ टीम की तो लॉटरी निकल आई। विराट कोहली ने  2019 में ही कहा था कि अपनी पिच पर जीत से हासिल पॉइंट की तुलना में विदेशी टेस्ट जीत के लिए पॉइंट दो गुने  कर दो। उनकी बात को, आईसीसी ने न सुना पर आज यही सबसे बड़ी जरूरत है।

विश्वास कीजिए कि अगर विराट कोहली वाले पॉइंट सिस्टम को 2019-21 डब्ल्यूटीसी राउंड पर लागू कर दें तो फाइनल में भारत की टीम इंग्लैंड से खेलती न कि न्यूजीलैंड से। अब भी देर नहीं हुई।  मेजबान को पिच से पॉइंट हासिल करने के लिए खेलने से रोकना होगा।

चरनपाल सिंह सोबती

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