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तो इनिंग ख़त्म हो गई दादा की बीसीसीआई में। कैसी इनिंग खेल गए वे? आप पढ़ ही चुके हैं कि किस तरह से सौरव गांगुली बोल्ड हुए बीसीसीआई की पिच पर और बैंकिंग की भाषा में उन्हें एकदम ‘एनपीए (नॉन परफार्मिंग एसेट)’ घोषित कर दिया। क्रिकेट अपना हिसाब करेगा और समय तय करेगा कि दादा ने इस भूमिका में भारतीय क्रिकेट के लिए क्या किया? सौरव गांगुली एकदम हिट लिस्ट में आए और उनके तीन साल के दौर की कमियां गिना दीं पर ये क्यों भुला दिया जाता है कि वे बोर्ड में सर्वे-सर्वा नहीं थे। हर फैसला एक टीम के तौर पर लिया- उस नाते तो सेक्रेटरी जय शाह भी फेल हुए पर उनकी हस्ती और भी बढ़ गई और नई टीम ‘ उनकी मर्जी ‘ से बनी। 
गांगुली-शाह टीम ने बीसीसीआई का मोर्चा, लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों के बाद अक्टूबर 2019 में संभाला और कैसा रहा ये पहला टर्म? बेलेंस शीट क्या कहती है?

सबसे पहले पॉजिटिव :

  • घरेलू खिलाड़ियों के मुआवजे के ढांचे को बदला- सालों से किसी ने इसकी सुध नहीं ली थी।
  • आईपीएल अधिकारों की बिक्री और नया रोडमैप।
  • 2023 से महिला आईपीएल।
  • पुराने क्रिकेटरों की पेंशन में बढ़ोतरी।
  • कोविड में भी क्रिकेट की कोशिश। कोविड जैसी भयंकर महामारी में भी बीसीसीआई को एक्टिव रखा- सिर्फ आईपीएल का आयोजन नहीं किया, जहां तक संभव हुआ घरेलू क्रिकेट को भी आगे बढ़ाया।
  • बीसीसीआई के संविधान से कूलिंग ऑफ की शर्त में संशोधन और अन्य कुछ बदलाव की इजाजत सुप्रीम कोर्ट से- इस का जिक्र बीसीसीआई के इतिहास में हमेशा होगा। सुप्रीम कोर्ट के इसी आदेश ने गांगुली और शाह के 2025 तक बीसीसीआई में बने रहने का रास्ता बनाया पर इसका फायदा सिर्फ जय शाह को मिल रहा है।
  • सौरव गांगुली की अपनी जिद्द से एनसीए का प्रोजेक्ट आगे बढ़ा- नेशनल एकेडमी का काम 10 से भी ज्यादा साल से अटका हुआ था। टेंडर एलएंडटी को मिला और काम चालू है।
  • बोर्ड ने जब भी किसी तरह के अधिकार बेचे/बांटे- उसमें कोई पारदर्शिता नहीं थी और सिर्फ घोषणा- वह भी अधूरी। रकम की गिनती तक नहीं बताते थे। अब हर अधिकार- चाहे बड़े या छोटे, ई-ऑक्शन से बेचे। आईपीएल मीडिया अधिकार की 50 हजार करोड़ की रिकॉर्ड कीमत के बावजूद- इनकी हर शर्त, हर कोई जानता है और  एक भी आरोप किसी भी गड़बड़ का नहीं।
  • टीम इंडिया के साथ काम के लिए राहुल द्रविड़ को लाए-  उन्हें इसके लिए राजी करना संभवतः सिर्फ सौरव गांगुली के ही बस में था।
  • धोनी को 2021 टी20 विश्व कप के लिए टीम इंडिया में मेंटोर बनने के लिए राजी किया।

किन नेगेटिव के लिए याद किया जाएगा :

  • घरेलू क्रिकेट का स्तर गिरा।
  • राहुल जौहरी के टर्म से पहले बीसीसीआई से इस्तीफे पर नए सीईओ को लाने की जगह, आईपीएल से हेमांग अमीन को ले आए- इसकी इजाजत नहीं थी।
  • सेलेक्शन कमेटी मजाक बनी- जिसे चाहे चुनते रहो, कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं ये बताने के लिए कि किसे और क्यों चुना या नहीं चुना?
  • टीमों को चुनने के लिए टीम इंडिया चयन समिति की बैठकों में हिस्सा लेकर बीसीसीआई अध्यक्ष के तौर पर अपने अधिकार का दुरुपयोग। यह बीसीसीआई के संविधान और ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष’ चयन प्रक्रिया की धारणा के उलट था। हां, ये सब मानते हैं कि किसी टीम के चुनने में कोई जबरदस्ती नहीं की लेकिन उनकी मौजूदगी को ‘डराने वाला’ माना गया।बीसीसीआई के संविधान के अनुसार, अध्यक्ष को चयन समिति की बैठकों में भाग लेने की अनुमति नहीं है।
  • जिस ब्रैंड का बीसीसीआई से कॉन्ट्रैक्ट था उसके प्रतिद्वंदी ब्रैंड (ऑनलाइन गेमिंग ऐप My11Circle) को गांगुली प्रमोट करते रहे- ऐसा इससे पहले किसी बोर्ड अध्यक्ष ने नहीं किया। गांगुली के ऐसा करने से हर किसी को गेमिंग को प्रमोट करने का रास्ता मिल गया- जो गलत था।
  • गांगुली और विराट कोहली के बीच फिजूल का विवाद। सबसे सफल कप्तानों में से एक होने के बावजूद, कोहली को वनडे कप्तानी से हटा दिया गया और फिर उन्होंने टेस्ट कप्तान को छोड़ दिया। मामला इतना आगे बढ़ गया कि गांगुली को, कोहली ने ‘झूठा’ कहा।
  • बंगाल के विकेटकीपर रिद्धिमान साहा ने कहा- गांगुली ने उन्हें टेस्ट टीम में जगह का आश्वासन दिया गया था। सवाल यह है कि क्या गांगुली ने चयन के मामलों में सीधे दखल देकर अपनी बात कही।
  • गांगुली की बीसीसीआई और आईसीसी के पिछले चीफ शशांक मनोहर से नजदीकी जो बोर्ड के भीतर किसी भी गुट को रास नहीं आ रही थी। ज्यादा पहले की बात नहीं जब शशांक पर भी बीसीसीआई के लगभग सभी अधिकारियों ने अपने फायदे के लिए बीसीसीआई के हितों से ‘समझौता’ करने का आरोप लगाया था।

वह भारत के पूर्व कप्तान हैं। अभी भी, अपने आप में, एक बहुत बड़ा ब्रैंड- एंडोर्समेंट, विज्ञापनों में फीचर, आईपीएल फ्रेंचाइजी का हिस्सा और कमेंटेटर के तौर पर वापसी के विकल्प उनके सामने हैं। नाता न टूटे शायद इसीलिए वह बीसीसीआई अध्यक्ष की कुर्सी के बावजूद विज्ञापन कर रहे थे। लोगों ने उंगलियां उठाईं पर अब उसकी कोई वजह नहीं बची। अब ये तय है कि सुप्रीम कोर्ट या लोढ़ा कमेटी चाहे जो करते रहें, बीसीसीआई मैनेजमेंट नेताओं के हाथ में ही रहेगी और गांगुली/ पटेल/बिन्नी जैसे क्रिकेटर तो महज मोहरे हैं।

गांगुली अच्छी तरह से जानते थे कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के समर्थन के बिना, उनके लिए बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष बनना लगभग असंभव था। वे इस बात को आखिर तक भूले नहीं। गांगुली ने कहा- ‘जीवन अपने आप में विश्वास के बारे में है। हर किसी का इम्तिहान होता है।कभी पास तो कभी फेल भी लेकिन जो स्थिर है वह है खुद पर विश्वास।’
चरनपाल सिंह सोबती 

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