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अंडर 19 वर्ल्ड कप जीत के बारे में बहुत कुछ लिखा जा रहा है। खिलाड़ी हर तारीफ के हकदार हैं। आखिरकार 5 बार टाइटल जीत चुकी है टीम इंडिया। इस बार की बात करते हैं- 
–  क्या ये जीत खिलाड़ियों की टेलेंट का नतीजा है?-  क्या ये उस सिस्टम की जीत है जिसमें इस टीम को तैयार किया गया?
भारत ने अंडर 19 वर्ल्ड कप टाइटल इससे पहले भी जीते हैं और हर टीम अपने समय में बेहतर खेली- तभी तो चैंपियन बने। तब भी कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। 
क्या आपने नोट किया कि भारतीय उपमहाद्वीप की कम से कम एक टीम पिछले 10 अंडर 19 वर्ल्ड कप फाइनल में जरूर खेली है। 2004 के बाद से हर वर्ल्ड कप में भारत/ पाकिस्तान फाइनल खेले हैं। इस रिकॉर्ड के पीछे कोई बात तो है। जब सीनियर क्रिकेट में पहुँचते हैं तो ऐसा प्रभुत्व नजर नहीं आता- क्यों?

क्या यश ढुल की टीम की जीत की बात में, ये फैक्टर नज़रअंदाज़ किए जा सकते हैं :
–  27 सितंबर तक जूनियर सेलेक्टर पैनल ही नहीं था।
–  तैयारी के लिए सिर्फ तीन महीने मिले ।
–  इसी तैयारी के बीच कोचिंग स्टाफ की अदला-बदली हो गई- ऐसी बात तैयारी की सारी लय बिगाड़ देती है।-  तैयारी के दौरान, कोलकाता में जो ट्रायंगुलर खेला उसमें बांग्लादेश से हार गए थे (अन्य टीम : इंडिया ए, इंडिया बी)।
–  वर्ल्ड कप के दौरान टीम कोविड की चपेट में आ गई।-  ये खिलाड़ी एक पूरा सीजन नहीं खेले और उस पर पिछले चार महीने से बबल लाइफ गुजार रहे थे- सीनियर टीम के क्रिकेटर रोज शिकायत कर रहे हैं कि बबल लाइफ में वे टूट रहे हैं। इन में से कुछ तो उम्र में 19 से बहुत छोटे हैं।  –  खिलाड़ी  महीनों से घर से दूर, इतने सारे प्रतिबंध, बायो बबल, पढ़ाई छूट गई- ये सब आसान नहीं था। 
–  फिर भी, चैंपियन बने- पूरे टूर्नामेंट में कोई मैच नहीं हारे।
अब कुछ और फैक्टर नोट कीजिए :
 –  एनसीए में टीम के लिए कैंप लगा- इस 10- दिन के कैंप की देखरेख खुद चीफ वीवीएस लक्ष्मण (जो खुद इस रोल के लिए नए थे) ने की।  –  हेड कोच हृषिकेश कनितकर के सामने ऐसी पारिवारिक मुश्किलें आईं कि उन्हें घर लौट जाना चाहिए था- वे नहीं गए और टीम के साथ रहे। –  टीम को कोविड ने घेरा तो रिपोर्ट बताती हैं- लक्ष्मण ने खुद खिलाड़ियों की ऐसे देखभाल की, जैसे अपने बच्चे हों।-  कोचिंग कैंप में नीचे के क्रम के खिलाड़ियों को बैटिंग प्रक्टिस कराने पर ख़ास जोर था- ये पॉलिसी बड़े काम आई।  –  मौजूद टेलेंट पूल को देखते हुए ये राहुल द्रविड़ (तब एनसीए चीफ) का सुझाव था कि चैलेंजर ट्रॉफी में 6 टीम खिलाओ ताकि टीम चुनने से पहले ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ियों को देख सकें।-  ट्रायंगुलर हारे तब भी फायदा हुआ क्योंकि अपनी कमजोरियों को जानने और खामियों को दूर करने में मदद मिली। वह टूर्नामेंट आंखें खोलने वाला था। –  एनसीए में कैंप के दौरान ही हृषिकेश कनितकर और साईराज बहुतले कोचिंग स्टाफ में आए थे। –  लक्ष्मण एनसीए में आए तो उन्होंने अंडर 19 वर्ल्ड कप को एक प्रोजेक्ट की तरह देखा और पूरा ध्यान इस पर लगा दिया। –  एस शरथ की सेलेक्शन कमेटी (अन्य सदस्य : पथिक पटेल, रानदेब बोस, किशन मोहन और हरविंदर सिंह सोढ़ी) ने टीम चुनते हुए हर भूमिका के लिये दो-दो खिलाड़ियों को मार्क किया।  
इस कमेटी के मास्टर स्ट्रोक :   दिनेश बाना जो हरियाणा के नंबर 1 विकेटकीपर नहीं थे- टीम इंडिया का नंबर 1 विकेटकीपर बना दिया। क्या देखा? वीनू मांकड़ चैंपियन हरियाणा के लिए नंबर 6 और 7 पर कीमती  कैमियो खेल रहे थे- 30 गेंद में 60, 40 गेंद पर 70 रन और एक शानदार टीम मैन। यही तो चाहिए था। इसीलिए चैलेंजर सीरीज में विकेटकीपिंग ग्लव्स दे दिए- 120 गेंद में 170 रन और टीम को फिनिशर भी मिल गया।  निशांत सिंधु, उम्र सिर्फ 17 साल पर गज़ब का टेलेंट- टाइटल जीत के लिए हरियाणा की कप्तानी की थी। बैटऔर गेंद से अहम योगदान दिया। कप्तान के लिए पहली पसंद वे थे। तब लगा कि दो भूमिका निभाने वाले पर और बोझ क्यों डालें? जब यश कोविंड के कारण नहीं खेले तो यही निशांत काम आए।  *  कप्तान के लिए अगला नाम रशीद का था पर बना दिया यश ढुल को। कप्तान यश ढुल ने टीम ने टीम को बांधे रखा। वे खिलाड़ियों के साथ घुलमिल जाते हैं- यही खूबी देखी और दिल्ली में बहुत सारे मैच खेलने का अनुभव भी साथ था। रशीद- सबसे अच्छे बल्लेबाज लेकिन यश कम्युनिकेशन और खेल को भांपने में अच्छे। ऐसा कप्तान चाहिए था जो टीम की देखभाल कर सके। 

सीनियर टीम इंडिया का कोच बनने से पहले राहुल द्रविड़ भारत के तीन अंडर-19 वर्ल्ड कप अभियान के इंचार्ज थे- 2018 में जीते और दो बार (2016, 2020) फाइनल खेले। द्रविड़ ने टिप्स दीं और लक्ष्मण ने उस सिलसिले को आगे बढ़ाया। सिस्टम बना और खिलाड़ियों ने उसे अपनाकर मेहनत की- नतीजा सामने है।  

  • चरनपाल सिंह सोबती

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