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रणजी ट्रॉफी जीतने के लिए मध्य प्रदेश का लंबा इंतजार आखिरकार खत्म और मुंबई को फाइनल में 6 विकट से हरा कर जीत गए। मौजूदा राज्य के तौर पर उनका पहला खिताब और ख़ास तौर पर मुंबई जैसी टीम को हराना तो और भी बड़ी बात है। अगर रिकॉर्ड देखें तो मध्य प्रदेश ने आखिरी बार 67 साल पहले रणजी ट्रॉफी जीती थी- तब वे होल्कर थे। होल्कर की घरेलू क्रिकेट में अलग पहचान थी और 4 बार रणजी ट्रॉफी जीती।

अगर राज्य की मौजूदा संरचना को ही आधार मानें तो कम से कम एक बार रणजी ट्रॉफी जीतने वाली 20वीं टीम बने वे। अब तक 8 टीमों ने एक बार खिताब जीता है जबकि बाकी 12 टीम ने एक से ज्यादा खिताब जीते। आख़िरी 5 विजेता : गुजरात, विदर्भ (2) सौराष्ट्र और मध्य प्रदेश। कहां है मुंबई का नाम?

1998-99 के फाइनल में बेंगलुरु में मध्य प्रदेश को हारते हुए देखना दिल तोड़ने वाला था। 24 साल बाद, किस्मत ने कोच पंडित को उसी स्टेडियम में फिर से मौका दिया। संयोग से जो चंद्रकांत पंडित कप्तान थे 1998-99 में, इस बार कोच के तौर पर टीम के साथ थे। खिलाड़ी तो इस कामयाबी के लिए तारीफ के हकदार हैं ही- एसोसिएशन और टीम मैनेजमेंट भी तारीफ़ की हकदार है। ये एक मिली-जुली कोशिश का नतीजा है।

सरफराज खान (45) ने 122.75 औसत से 982 रन बनाए- जिसमें चार 100 शामिल हैं। बहरहाल, उन्हें इस बात की निराशा रहेगी कि उनकी ये कोशिश भी मुंबई के लिए रणजी ट्रॉफी न जीत सकी। रणजी ट्रॉफी के फाइनल में मुंबई की लगातार दूसरी हार- 2017 में इंदौर में गुजरात से फाइनल हार गए थे।

मध्य प्रदेश की यह कामयाबी, एक बार फिर शायद इस बात का संकेत है कि क्रिकेट अब मुंबई के पारंपिक शिवाजी पार्क, आजाद मैदान या क्रॉस मैदान, दिल्ली के फिरोज शाह कोटला या बेंगलुरु या कोलकाता के आधुनिक स्टेडियम से निकल कर देश के कम चर्चित हिस्सों में मेहनत का सबूत है। अगर क्रिकेट के नजरिए से देखें तो भारतीय क्रिकेट की बेहतरी इसी में है।

क्रिकेट में जिस टीम के साथ मुंबई नाम जुड़ा हो उसकी छवि ही अलग बन जाती है। कभी वे अपराजित थे- आज नहीं। संयोग से, 2022 ही वह साल है जब मुंबई इंडियंस (भले ही वे मुंबई के सही प्रतिनिधि नहीं हैं) ने अपना सबसे खराब आईपीएल सीजन खेला और अब मुंबई की रणजी ट्रॉफी फाइनल में हार।

कुछ तो ख़ास बात होगी कि मध्य प्रदेश को एक मैच जीतने वाली टीम में बदला। सही स्कीम और अनुशासन- ये कोच चंद्रकांत पंडित की फिलॉसफी है। उनके लिए इस बार की रणजी ट्रॉफी जीत तुक्का नहीं है- इसी तरह अचानक ही विदर्भ के साथ लगातार खिताब जीते थे। संयोग से इस बार सामने थी उनकी अपनी ‘घरेलू’ टीम मुंबई जिसके 2015-16 में, अपने आख़िरी खिताब के समय वे कोच थे। चंद्रकांत पंडित ने जो मुंबई क्रिकेट में सीखा- उसे मुंबई को हराने में लगा दिया।

अगर कोच के तौर पर ‘तरीके’ की बात करें तो पंडित अपनी कड़ी मेहनत वाली शैली और नतीजा लाने वाली स्कीम बनाने के लिए मशहूर हैं। मध्य प्रदेश टीम के ड्रेसिंग रूम से ये खबर लीक होने में ज्यादा देर नहीं लगी कि रणजी ट्रॉफी के इस सफर में टीम को, एक रात 1.30 बजे नींद से जगाकर, स्टेडियम पहुंचने का आदेश दिया था- तब 2 बजे से सुबह 5 बजे तक प्रैक्टिस चली। लक्ष्य एक ही था- खिलाड़ियों को उनके कम्फर्ट जोन से बाहर निकालना। कर्नाटक के विरुद्ध रणजी सेमीफाइनल के दौरान, उन्होंने विदर्भ के खिलाड़ियों के फोन छीन लिए थे। वे इस बात से चिंतित थे कि अगर खिलाड़ी देर रात तक फोन पर रहेंगे तो क्रिकेट से ध्यान खो देंगे। कानून तोड़ने पर खिलाड़ी को थप्पड़ मारने का किसा खूब चर्चा में है पर इसकी कभी पुष्टि नहीं हुई।

विदर्भ और अब मध्य प्रदेश की सफलता में इस बात का जिक्र जरूरी है कि इन दोनों टीम की क्रिकेट एसोसिएशन ने पंडित को अपने ढंग से टीम तैयार करने की पूरी छूट दी- नतीजा सामने है। एक मुद्दा, यहां ध्यान देने वाला है- अगर वे इतने अच्छे कोच हैं तो क्यों आईपीएल की कोई टीम उन्हें कॉन्ट्रैक्ट नहीं देती और बड़ी कीमत वाले कॉन्ट्रैक्ट के लिए विदेशी ही ज्यादातर टीम की पहली पसंद हैं। ये बीसीसीआई की जिम्मेदारी है कि वे अपने योग्य कोच को सम्मान दिलाएं।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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