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यशपाल शर्मा के निधन पर उन्हें आम तौर पर उस बल्लेबाज के तौर पर याद किया गया जो 1983 वर्ल्ड कप में कपिल देव की टीम के ‘मैन इन क्राइसिस’ थे – पहले ग्रुप मैच में पिछले चैंपियन वेस्टइंडीज के विरुद्ध 89 और कुल 34.28 औसत से 240 रन। वैसे भी उनकी वन डे क्रिकेट की ही ज्यादा बात हुई।

अपने इंटरनेशनल करियर में, यशपाल ने 37 टेस्ट भी खेले जिसमें 1606 रन बनाए। यशपाल को याद करते हुए इसमें एक टेस्ट का ख़ास तौर पर जिक्र जरूरी है-1982 में चेपॉक में भारत- इंग्लैंड सीरीज का पांचवां टेस्ट। सबसे पहले संक्षेप में इस टेस्ट का रिकॉर्ड : इंग्लैंड (कप्तान :कीथ फ्लेचर) ने टॉस जीतकर भारत को पहले बैटिंग के लिए कहा और कप्तान सुनील गावस्कर ने 481- 4 (विश्वनाथ 222, यशपाल 140, वेंगसरकर रिटायर हर्ट 71) पर पारी समाप्त घोषित की। इंग्लैंड 381(ग्राहम गूच 127) और भारत ने दूसरी पारी में टेस्ट ड्रा होने तक 160- 3 (प्रनब रॉय 60*) बनाए थे। भारत सीरीज में 1- 0 से आगे था और अपनी आदत के मुताबिक़ गावस्कर इस लीड को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते थे।

पिच में थोड़ा बाउंस था- सुनील गावस्कर और प्रनब रॉय जल्दी आउट हो गए। प्रनब ने पहली पारी में अपने 6 रन के लिए 53 गेंद खेलीं और 81 मिनट बल्लेबाजी की। दूसरे छोर पर गावस्कर ने 78 गेंद में 25 रन बनाए। यहीं से पता लग गया था कि इस टेस्ट में क्या होने वाला है? तब भी वेंगसरकर ने अपने 71 रन के लिए सिर्फ 97 गेंद लीं, जिसमें 12 चौके थे – 73.19 का स्ट्राइक रेट। दिलीप वेंगसरकर को बॉब विलिस का बाउंसर लगा और जब वह रिटायर्ड हर्ट हुए तो स्कोर 150-2 पर था (तब तक पार्टनरशिप में 99 रन)। यहां यशपाल आए। इसीलिए विश्वनाथ और यशपाल की पार्टनरशिप को 150 से गिनते हैं। उसके बाद तो रन बनते गए – पहले धीमे और फिर कुछ तेज। विश्वनाथ ने अपने टच स्ट्रोक प्ले के साथ 374 गेंद में 222 रन (31 चौके) बनाए और यशपाल ने 298 गेंदों में 140 रन (18 चौकों और 2 छक्के)। इनकी पार्टनरशिप 497 मिनट चली यानि कि साढ़े दस घंटे से ज्यादा और वह भी विलिस, इयान बॉथम और डेरेक अंडरवुड के गेंदबाजी के आक्रमण पर।

भारत का स्कोर पहले दिन 178- 2 (विश्वनाथ 64, यशपाल 5) था। एक दिन बाद दोनों क्रमशः 181 और 102 पर वापस लौटे- दिन के खेल में 217 रन जोड़े थे। एक पूरे दिन के खेल में नॉट आउट रहने को रिकॉर्ड कोई मजाक नहीं था।असल में ये टेस्ट कई और बातों के लिए भी यादगार बना।

  • यशपाल शर्मा और गुंडप्पा विश्वनाथ ने 316 की शानदार पार्टनरशिप की (उस समय तीसरे विकेट के लिए भारतीय रिकॉर्ड)।
  • जब टेस्ट का स्कोर कार्ड देखें तो तीसरे विकेट के लिए 415 रन (51 से 466) की पार्टनरशिप दिखाई देगी- अगर 415 रन को ही गिनते तो ये टेस्ट रिकॉर्ड होता। उस समय इस मसले पर बड़ी बहस हुई थी। कुल मिलाकर 612 मिनट के बाद कोई विकेट गिरा।
  • विश्वनाथ और यशपाल दोनों ने टेस्ट क्रिकेट में अपना सबसे बड़ा स्कोर दर्ज किया। विश्वनाथ ने अपनी 14 वीं और आख़िरी सेंचुरी (पहली डबल) बनाई- ये सभी जिन टेस्ट में बनीं उनमें से कोई भी भारत हारा नहीं।
  • भारत ने अगर 152 ओवर खर्च कर दिए 481 रन के लिए तो इंग्लैंड ने भी वैसा ही जवाब दिया – 155.5 ओवर में 153 कम रन बनाए, जिसमें क्रिस तवारे ने 332 मिनट में 35 रन बनाए।ऐसी बैटिंग वाले टेस्ट में भी तीसरे दिन विश्वनाथ और यशपाल ने पहले घंटे में 58 रन जोड़े – वह भी तब जबकि इंग्लैंड ने इस एक घंटे में सिर्फ 9.2 ओवर फेंके।
  • भारत ने टेस्ट में दो डेब्यू करने वालों को मैदान में उतारा। एक अमृतसर में जन्मे मिडिल आर्डर बल्लेबाज अशोक मल्होत्रा और दूसरे पंकज रॉय के बेटे प्रनब रॉय जो दाएं हाथ के ओपनर थे।

इंग्लैंड वाले आज तक फ्लेचर के टॉस जीतकर फील्डिंग को चुनने के फैसले को ‘ब्लंडर’ गिनते हैं क्योंकि बॉथम को बुखार की हालत में टेस्ट खिलाया था और पिच में ऐसा कुछ नहीं था कि वे उसका फायदा उठा लेते। भारत में इससे पहले सिर्फ दो कप्तान ने टॉस जीतकर भारत को पहले बैटिंग के लिए बुलाया था – बिल लॉरी ने 1969 -70 में कोलकाता में और कालीचरन ने 1978-79 में मुंबई में। बाद में पता चला कि कहीं से फ्लेचर को यह मालूम हो गया था कि गावस्कर ने पिच के बारे में कोई निर्देश दिए हैं और उन्हें समझने की गलती में वे चकमा खा गए।

यशपाल के लिए ये सेंचुरी बड़ी कीमती थी- खराब फार्म के कारण टीम से निकाले जाने के बाद टीम में लौटे थे। पिछली 15 पारियों में सिर्फ एक 50 बनाया था- इन सभी 15 पारी में आउट हुए थे। संयोग यह कि यशपाल की यह सेंचुरी चर्चा में विश्वनाथ और बाद में ग्राहम गूच (181 गेंद में 127 रन) की पारी से दब कर रह गई। तीसरे विकेट के लिए यशपाल और विश्वनाथ का रिकॉर्ड 22 साल तक बना रहा- वीरेंद्र सहवाग और सचिन तेंदुलकर ने 2004 में मुल्तान में 336 रन की पार्टनरशिप के साथ इसे पार किया। यशपाल 37 टेस्ट, 1606 रन, 2 सेंचुरी के रिकॉर्ड के साथ रिटायर हुए।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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