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18 अक्टूबर 2022 का दिन बीसीसीआई के इतिहास में एक ख़ास दिन के तौर पर दर्ज रहेगा- सौरव गांगुली का अध्यक्ष के तौर पर टर्म जिस तरह खत्म हुआ उसके लिए। 1983 विश्व कप विजेता स्टार रोजर बिन्नी उनकी जगह आए- जब भी उनके आने का जिक्र होगा तो साथ में ये भी जिक्र होगा कि सौरव गांगुली को किस तरह बोल्ड कर वे अध्यक्ष बने।  

सौरव गांगुली उस बाउंसर को खेल नहीं पाए जो बोर्ड और देश की राजनीति ने मिलकर उन पर फेंका। अध्यक्ष होने के नाते और जब कि सुप्रीम कोर्ट से भी इजाजत मिल गई तो वे अपने दूसरे टर्म को बड़ा आसान समझ रहे थे पर उन्हें अंधेरे में रखा गया और सीधा आदेश था- 17 अक्टूबर तक ऑफिस खाली कर दो। बोर्ड के इतिहास में ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि  किसी मौजूदा अध्यक्ष के पांव के नीचे से जमीन निकाल ली पर सौरव के साथ ऐसा होगा- इसकी उम्मीद नहीं थी। यहां तक कि उन्हें आईसीसी में भेजने के लिए, समर्थन देने से भी इंकार कर दिया। आईपीएल चेयरमैन की लॉलीपॉप उन के लिए डिमोशन थी।
ये सब हुआ कैसे? सब जानते हैं सौरव अक्टूबर 2019 में बीजेपी के समर्थन से बोर्ड अध्यक्ष बने थे। कोलकाता की अखबारें कहती हैं कि पिछले बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी का साथ न देने की कीमत चुकाई है अब। क्या उन्हें बीसीसीआई में अध्यक्ष की कुर्सी के बदले बीजेपी की लाइन पर चलने के लिए कहा गया था- जो वे नहीं माने? 
बीसीसीआई के चुनावों में राजनीतिक दखलंदाजी के ढेरों किस्से हैं और उन्हीं में एक और किस्सा जुड़ गया। मजे की बात थे कि जिस ऑफिस में वे टॉप पर थे उसी ऑफिस में उन्हें पता नहीं चला की क्या खिचड़ी पक रही है? बोर्ड में ये बड़ी पुरानी परंपरा है कि एजीएम से पहले ही तय कर लो कि क्या होना है ताकि कोई तमाशा न हो। अब आप टाइम लाइन देखिए :

  • भारत में क्रिकेट को चलाने के लिए जिम्मेदार लोगों (जिनमे से कुछ फ्रंट पर न होकर भी किंग मेकर हैं) की दो मीटिंग हुईं- एक दिल्ली में (6 अक्टूबर को रात 11 बजे) और एक मुंबई में। केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर, उनके भाई और बीसीसीआई ट्रेजरर अरुण धूमल, एन श्रीनिवासन, कांग्रेस के राजीव शुक्ला, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, सौरव गांगुली, आईपीएल अध्यक्ष बृजेश पटेल, बीसीसीआई के पूर्व सचिव निरंजन शाह और सचिव जय शाह सहित कई दिग्गज इनमें मौजूद थे। दिल्ली की मीटिंग में ही सौरव गांगुली की इनिंग्स खत्म करने का फैसला हो चुका था।
  • बदलाव का संकेत उससे पहले ही आ चुका था- कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन ने एजीएम के लिए अपना प्रतिनिधि बदल लिया और अध्यक्ष रोजर बिन्नी को नॉमिनेट कर दिया (पिछली एजीएम में केएससीए सचिव संतोष मेनन उनके प्रतिनिधि थे)। इस बदलाव को साउथ जोन की क्रिकेट की सबसे प्रभावशाली हस्ती (बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन) के साथ, ‘दिल्ली’ का समर्थन हासिल था।
  • एक और नया समीकरण ये है कि अब अनुराग ठाकुर और श्रीनिवासन, पुरानी कड़वाहट भूल कर एक ही लाइन पर चल रहें हैं (मौजूदा खेल मंत्री 2015 में श्रीनिवासन के समर्थन वाले संजय पटेल को एक वोट से हराकर बोर्ड में सचिव बन गए थे और तब से गड़बड़ चली आ रही थी)
  • 2019 में श्रीनिवासन को दूसरा बड़ा झटका लगा- वे बृजेश पटेल को अध्यक्ष  बनाना चाहते थे पर बन गए सौरव गांगुली। श्रीनिवासन इस शर्मिंदगी को कभी नहीं भूले।
  • श्रीनिवासन ने अपने नए बाउंसर से पिछले सब हिसाब बराबर कर दिए। दलील ये दी कि बोर्ड में किसी अध्यक्ष ने लगातार दो टर्म काम नहीं किया।
  • सबसे बड़ी गड़बड़ ये कि श्रीनिवासन ने सौरव पर ‘नॉन परफॉर्मेंस’ का आरोप लगाया। तमिलनाडु के सीमेंट किंग और आईपीएल टीम चेन्नई सुपर किंग्स के मालिक यहीं नहीं रुके। वे किसी भी कीमत पर गांगुली के समर्थन के लिए तैयार नहीं थे। गांगुली पर यहां तक आरोप लगाया कि जिस ब्रैंड का बीसीसीआई से कॉन्ट्रैक्ट था उसके प्रतिद्वंदी ब्रैंड (ऑनलाइन गेमिंग ऐप My11Circle) को गांगुली प्रमोट करते रहे- ऐसा इससे पहले किसी बोर्ड अध्यक्ष ने नहीं किया। गांगुली के ऐसा करने से हर किसी को गेमिंग को प्रमोट करने का रास्ता मिल गया- जो गलत था। इस तरह बोर्ड और दिल्ली की राजनीति दोनों में ही सौरव गांगुली को झटका लगा।

कम से कम सौरव गांगुली को इस बात पर गर्व रहेगा कि वे किसी राजनीतिक पार्टी की कठपुतली नहीं बने। इस साल 29 सितंबर को अहमदाबाद में नेशनल गेम्स के उद्घाटन समारोह में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में बड़े गर्व से कहा था देश में खेल संघ अब राजनीतिक परिवार नहीं चला रहे। इस बात के कुछ ही दिन के अंदर देख लीजिए क्या हुआ?

चरनपाल सिंह सोबती 

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