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आम सोच ये है कि आईपीएल में खेलने वाले क्रिकेटरों के कॉन्ट्रैक्ट हैरान कर रहे हैं और क्रिकेटरों पर करोड़ों रुपये लुटाए जा रहे हैं। विश्वास कीजिए- क्रिकेट की दुनिया में चर्चा कुछ अलग है। प्लेयर्स एसोसिएशन का कहना है कि आईपीएल क्रिकेटरों को उनका सही हक भी नहीं मिल रहा और उन्हें कुल कमाई के हिसाब से भुगतान किया जाना चाहिए।

ग्लोबल क्रिकेटरों की एसोसिएशन का कहना है कि और दूसरे बड़े खेलों की तुलना में क्रिकेटरों को कुल कमाई का बहुत कम हिस्सा दिया जाता है। आम परंपरा ये है कि कुल कमाई का लगभग आधा हिस्सा तो खिलाड़ियों की फीस है ही- प्रीमियर लीग में तो कुल कमाई का 71 प्रतिशत खिलाड़ियों में बांटा जाता है। इसकी तुलना में आईपीएल में खिलाड़ियों को टीम की कमाई का महज 18 फीसदी हिस्सा ही मिलता है। 

इसी पर एफआईसीए (फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल क्रिकेटर्स एसोसिएशन- फिका) के सीईओ टॉम मोफात ने आईपीएल और डब्ल्यूपीएल में खिलाड़ियों को कमाई के हिस्से के हिसाब से भुगतान का मुद्दा उठाया है। ये किसी से छिपा नहीं कि खिलाड़ी आईपीएल में खेलना पसंद करते हैं पर तुलना करें तो कुल कमाई में से उनका हिस्सा और दूसरी कई खेल लीग से काफी पीछे है।

आईपीएल की बदौलत, बीसीसीआई ने क्रिकेट में एक क्रांति की शुरुआत की और आम तौर पर अभी तक क्रिकेटरों की तरफ से ‘कम फीस’ जैसी कोई बात नहीं की गई- ये नई सोच फिका की देन है। वे भी चाहते हैं कि आईपीएल और डब्ल्यूपीएल को और कामयाबी मिले पर साथ-साथ इस कामयाबी में क्रिकेटरों के योगदान के लिए सही और कमाई के प्रतिशत हिस्से में भुगतान मिले।

आईपीएल सैलरी बढ़ाने की मांग ऐसे समय में आई है जब ग्लोबल क्रिकेट टेलेंट के लिए बाजार में जबरदस्त मुकाबला है- दक्षिण अफ्रीका और यूएई में आकर्षक नई लीग और जुलाई में यूएसए की मेजर लीग क्रिकेट से ये और बढ़ गया है। अगर ऐसा है तो सिर्फ आईपीएल ही क्यों- अन्य लीग भी तो कमाई में से हिस्सा क्रिकेटरों में बांटें? क्या द हंड्रेड या बिग बैश में ऐसा हो रहा है?

फिका को देखें तो इस समय इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड और वेस्टइंडीज समेत 12 टेस्ट सदस्य देशों में से 7 के क्रिकेटर इस में हैं। दूसरी ओर, न तो भारत का कोई क्रिकेटर इसका सदस्य है और न ही भारत में क्रिकेटरों की एसोसिएशन ऐसे मामले में एक्टिव है। जो खुद बीसीसीआई के पैसे पर चल रही हो, वह बीसीसीआई के सामने आईपीएल कमाई के एक बड़े हिस्से की मांग कैसे उठाएगी? उस पर आईपीएल में खेलने वाले ज्यादातर खिलाड़ी भारतीय- जब वे हिस्से जैसी कोई बात नहीं कर रहे तो विदेशी क्रिकेटरों की मांग का बीसीसीआई पर कितना असर होगा ये अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। जिसे ठीक लगता है खेलो अन्यथा नीलामी के लिए रजिस्ट्रेशन ही मत करवाओ। ये भी कि क्या वे आईपीएल से जो ले गए या ले रहे हैं- उसकी वसूली करा रहे हैं? बेन स्टोक्स, जोफ्रा आर्चर, जोस बटलर और हैरी ब्रूक जैसों से पूछ लीजिए। ये नई मांग में ,आईपीएल सीजन में लगभग 50 करोड़ रुपये  के क्रिकेटर बन जाएंगे।

एनबीए, एनएफएल और मेजर लीग बेसबॉल, तीन सबसे बड़ी अमेरिकी खेल लीग हैं -इनमें खिलाड़ी का हिस्सा लीग की कमाई का कम से कम 48 प्रतिशत। डेलॉइट के अनुसार, 2020-21 में प्रीमियर लीग में, क्लबों ने अपनी कमाई का 71 प्रतिशत खिलाड़ियों की सेलेरी पर खर्च किया। आईपीएल में, लीग की कमाई का कम से कम आधा क्रिकेटरों पर खर्चने जैसा कोई नियम नहीं।

एक अनुमान ये है कि 2023 से, 10 फ़्रैंचाइजी में से हर एक को 480 करोड़ रुपये सेंट्रल पूल से मिलेंगे। गेट मनी, स्पांसरशिप और कमर्शियल बिक्री के 50 करोड़ (मुंबई इंडियंस का अनुमान 100 करोड़ रुपये) भी जोड़ दें तो रकम और ज्यादा हो जाएगी। इस समय टीमें, अपनी कमाई से, आधे हिस्से की बात छोड़िए, 20 प्रतिशत हिस्सा भी नहीं दे रहीं।  इस साल, प्रत्येक आईपीएल फ्रेंचाइजी के लिए सैलरी कैप 95 करोड़ रुपये ही तो था। अगले सीजन में यह सीमा थोड़ी बढ़ कर 100 करोड़ रुपये हो भी गई तो भी इस अनुपात में कोई ख़ास फर्क नहीं आने वाला।

क्रिकेटर आज पहले से कहीं ज्यादा कमा रहे हैं पर जो चर्चा चल रही है- उसमें इसे भी कम कह रहे हैं। गड़बड़ ये है कि कई तो कई करोड़ ले जाते हैं और ढेरों घरेलू खिलाड़ियों को आईपीएल में खेलने के लिए सिर्फ 20 लाख रुपये या इसके आस-पास मिलते हैं। अब धीरे-धीरे वे विदेशी बोर्ड भी आवाज उठा रहे हैं जो टेलेंट तैयार करते हैं पर खिलाड़ी अपने बोर्ड का सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट न ले तो उन्हें तो कॉन्ट्रैक्ट फीस का 10 प्रतिशत भी नहीं मिलता। मौजूदा सिस्टम में भी, अगर खिलाड़ियों की कॉन्ट्रैक्ट फीस बढ़ी तो उनका हिस्सा अपने-आप बढ़ जाएगा।  उन्हें अपनी टेलेंट को खोने का कुछ तो मिलेगा। 

ऐसा नहीं कि आईपीएल टीम मालिक, खिलाड़ियों को ज्यादा पैसा दे नहीं सकते पर आईपीएल सैलरी कैप उन्हें ऐसा करने से रोकता है। बीसीसीआई की सोच ये है कि अंबानी ग्रुप जैसे (जिनकी फिक्स संपति 150 बिलियन पौंड से भी ज्यादा) अपने पैसे की बदौलत सब अच्छे खिलाड़ी न ले जाएं।  

इसलिए, सच ये है कि आईपीएल की क्रिकेट और व्यावसायिक अपील बढ़ने के बावजूद, खिलाड़ियों के प्रतिशत हिस्से में किसी ख़ास बढ़ोतरी की न तो उम्मीद है और न ही खिलाड़ी इसके लिए प्रोटेस्ट करेंगे।  

चरनपाल सिंह सोबती

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