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आगे डेवोन कॉनवे टेस्ट क्रिकेट में क्या करेंगे कोई नहीं जानता पर लॉर्ड्स में पहले इंग्लैंड – न्यूजीलैंड टेस्ट में जो हुआ – उसके लिए उन्हें क्रिकेट में हमेशा चर्चा मिलेगी। सनसनीखेज पारी खेलने के बाद, खब्बू कॉनवे 347 गेंद पर 200 रन बनाकर रन आउट हुए – 22 चौके और एक छक्का।

आज ये मालूम है कि न्यूजीलैंड को कॉनवे के तौर पर एक तैयार टेलेंट मिली – वे क्रिकेट सीखे दक्षिण अफ्रीका के सिस्टम में पर खेल रहे हैं न्यूजीलैंड के लिए। स्पष्ट है जो मेहनत उन पर दक्षिण अफ्रीका में की गई, जो पैसा खर्च किया गया – उसका पूरा पूरा फायदा न्यूजीलैंड को मिल गया। न्यूजीलैंड का जितना फायदा – दक्षिण अफ्रीका का उतना नुक्सान। क्या ये सही है? मजे की बात ये है कि वे ऐसे पहले क्रिकेटर नहीं जिसने क्रिकेट सीखी दक्षिण अफ्रीका में और खेले किसी दूसरी टीम के लिए। आज दक्षिण अफ्रीका एक बेहतर टीम बनाने के लिए जूझ रहा है और उनके अच्छी टेलेंट वाले क्रिकेटर दूसरी टीमों के लिए खेल रहे हैं।

कॉनवे अगस्त 2017 में दक्षिण अफ्रीका से न्यूजीलैंड चले गए थे और घरेलू क्रिकेट में वेलिंगटन के लिए खेलने लगे। ICC के नियमों के कारण, इंटरनेशनल टीम बदलने के लिए तीन साल तक इंतजार करना पड़ा। इस दौर में दिखा दिया था कि वे कैसे क्रिकेटर हैं – 2018/19 और 2019/20 सीज़न में प्लंकेट शील्ड (फर्स्ट क्लास), फोर्ड ट्रॉफी (लिस्ट-ए) और सुपर स्मैश (टी 20) में जो बल्लेबाज़ी की उसे देखकर बस उनके न्यूजीलैंड के लिए क्वालीफाई करने का ही इंतज़ार हो रहा था। इस दौरान अगर वे दक्षिण अफ्रीका में होते तो जरूर इंटरनेशनल क्रिकेट खेल गए होते।

तो फिर वे न्यूजीलैंड क्यों आए ? इसी से जुड़ा दूसरा सवाल ये है कि आखिरकार दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेटर अपनी जमीन छोड़कर बाहर क्यों भागते हैं ? केप्लर वेसल्स आस्ट्रेलिया गए या केविन पीटरसन इंग्लैंड आए तो यही कहा गया कि इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने के बेहतर मौके की तलाश में वहां से निकले। उसके बाद कई क्रिकेटरों ने ‘कोलपैक’ का फायदा उठाया और उनके लिए दक्षिण अफ्रीका से यूके आना बड़ा आसान हो गया – जहां अपना फायदा दिखा, वे वहीं के हो गए। नतीजा – दक्षिण अफ्रीका एक के बाद एक बेहतर क्रिकेटर खोता रहा। सिस्टम का गलत फायदा उठाया जाता रहा और नुक्सान दक्षिण अफ्रीक का हुआ – उनका सिस्टम जिन क्रिकेटरों को तैयार कर रहा था, वे खेल दूसरी टीमों के लिए रहे थे। यही कॉनवे ने किया। वेस्टइंडीज क्रिकेट ऐसे ही खोखली हुई , अब दक्षिण अफ्रीका के साथ वही हो रहा है।

उनके मामले में कुछ ख़ास बातें देखिए :

  • 2017 में जोहान्सबर्ग से न्यूजीलैंड आए थे तो इस पक्के इरादे के साथ कि अब वापस नहीं जाना है। कुछ ही हफ्तों के अंदर वेलिंगटन के लिए खेल रहे थे।
  • न्यूजीलैंड क्रिकेट को उन्हें ‘बांधने ‘ की ऐसी जल्दबाज़ी थी कि तीन साल का क्वालिफिकेशन दौर पूरा होने से तीन महीने पहले उन्हें सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट दे दिया था।
  • टेस्ट टीम में लेने की इतनी जल्दी थी कि उस टॉम ब्लंडेल को टीम से निकाल दिया जिनका टेस्ट क्रिकेट में औसत 40 के करीब है।

इंग्लिश में एक मशहूर कहावत है ‘A taste of your own medicine’ यानि कि जिसकी दवा , उसी को पिला देना। न्यूजीलैंड वालों ने इंग्लैंड के साथ यही किया – जिस सिस्टम का फायदा इंग्लैंड वाले कई साल से खुले आम उठा रहे थे, उसी को इंग्लैंड पर लागू कर दिया। जब ब्रिस्बेन टेस्ट में केप्लर वेसल्स ने 163 रन बनाए थे तो इंग्लैंड की तरफ से कहा गया – एक हो चुके ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका को हराना आसान नहीं। यही अब कॉनवे के केस पर लागू होता है। सच और हैरान करने वाला है :

  • कॉनवे न्यूजीलैंड की इस टीम में, दक्षिणी अफ्रीका में पैदा हुए चार खिलाड़ियों में से एक हैं – अन्य तीन : विकेटकीपर बीजे वाटलिंग; खब्बू पेसर नील वैगनर और कॉलिन डी ग्रैंडहोम, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका के बजाय जिम्बाब्वे में अपना करियर शुरू किया। ये चारों अगर दक्षिण अफ्रीका में होते तो क्या उनकी टीम को फायदा नहीं होता ?
  • कॉनवे ने अपने टेस्ट करियर की जो अजीब शुरूआत की – उस पर तो किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। पहली गेंद खेलने से पहले – नॉन-स्ट्राइकर सिरे पर तीन ओवर खड़े रहे।
  • टेस्ट डेब्यू पर सेंचुरी बनाने वाले 12 दक्षिण अफ्रीकियों में से सिर्फ 6 ने दक्षिण अफ्रीका के लिए ये रिकॉर्ड बनाया। बचे 6 में से 4 ने इंग्लैंड (एंड्रयू स्ट्रॉस, जोनाथन ट्रॉट, मैट प्रायर और कीटन जेनिंग्स) के लिए ये रिकॉर्ड बनाया जबकि अन्य दो ऑस्ट्रेलिया के लिए वेसल्स और न्यूजीलैंड के लिए कॉनवे हैं।
  • मार्च 2017 में ही तो 26 साल के डेवोन कॉनवे ने गटांग के लिए अपना पहला फर्स्ट क्लास 200 का स्कोर बनाया था। यह दक्षिण अफ्रीका के घरेलू क्रिकेटर के रूप में कॉनवे की आखिरी पारी थी। उस साल अगस्त में दक्षिण अफ्रीका छोड़ दिया।

गड़बड़ कहाँ हुई ? कॉनवे क्रिकेट साउथ अफ्रीका के टूर्नामेंट में ढेरों रन बना रहे थे जबकि फ्रैंचाइज़ी क्रिकेट में जूझ रहे थे। लायंस के लिए सिर्फ 12 मैच खेले – 21.29 औसत और सिर्फ एक अर्धशतक। इसके अतिरिक्त टीम के अंदर और बाहर होने का सिलसिला लगातार चलता रहा। यहां तक कि बैटिंग का नंबर भी तय नहीं था – टी 20 में ओपनर, वन डे में नंबर 5 और चार दिवसीय मैचों में कुछ तय नहीं। बस ये लगा कि ऐसे करियर आगे कैसे बढ़ेगा ? नया रास्ता लेना था। कोलपैक सबसे अच्छा विकल्प लग रहा था, लेकिन न्यूजीलैंड को चुना क्योंकि उनके सबसे अच्छे दोस्त, साथी दक्षिण अफ्रीका के घरेलू खिलाड़ी मैल्कम नोफल और माइकल रिपन वहीं थे।

अपनी संपत्ति, कार और वह सब कुछ बेच दिया जो साथ नहीं जा सकता था। जबकि कॉनवे इस समय जहां हैं, उससे खुश हैं, कहीं न कहीं ये भी सच है कि दक्षिण अफ्रीका ने अपने एक और क्रिकेटर की टेलेंट को सही समय पर नहीं पहचाना – अब वे अपने नुकसान का हिसाब लगाएं। ये लिस्ट कब रुकेगी ?

  • चरनपाल सिंह सोबती

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