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इन दिनों आईपीएल का इम्पैक्ट प्लेयर लॉ खूब चर्चा में है- दो अलग-अलग वजह से। पूरी क्रिकेट की दुनिया देख रही है कि कैसे 20 ओवर में 200 रन बनना एक ‘आम बात’ होता जा रहा है और दूसरा ये कि इन बड़े स्कोर की वजह में सबसे ख़ास के पीछे, और किसी का नहीं, खुद बीसीसीआई का नाम है।

जो बीसीसीआई के काम के तरीके को जानते हैं- उन्हें मालूम है कि बीसीसीआई को ये पसंद नहीं कि कोई कॉन्ट्रैक्ट वाला खिलाड़ी और कप्तान तो बिलकुल भी नहीं, उनकी किसी पॉलिसी पर खुलेआम बोले। वे तो कॉन्ट्रैक्ट वाले कमेंटेटर को भी नहीं बोलने देते तो खिलाड़ी क्या हैं? इसके बावजूद 18 अप्रैल को रोहित शर्मा ने दो अलग-अलग मुद्दों पर अपनी स्टेटमेंट से बीसीसीआई को मुश्किल में डाल दिया। मीडिया रिपोर्ट थी- वे राहुल द्रविड़ और अजित अगरकर से मिले टी20 वर्ल्ड कप के लिए भारतीय टीम की संरचना पर बातचीत के लिए पर रोहित ने इसे ‘फर्जी खबर’ कह दिया। बीसीसीआई की अपनी मीडिया रिलीज में इस मुलाकात का जिक्र है।

इसके बाद रोहित शर्मा आईपीएल के ‘इम्पैक्ट प्लेयर’ लॉ पर बोले- उन्हें लगता है कि वाशिंगटन सुंदर और शिवम दुबे जैसे क्रिकेटरों को ‘यही लॉ’ अपनी गेंदबाजी की टेलेंट नहीं दिखाने दे रहा। नतीजा- टीम इंडिया को ऑलराउंडर मिलने में दिक्कत हो रही है। कहां तो बीसीसीआई इम्पैक्ट प्लेयर लॉ को घरेलू क्रिकेट में आजमाने (2022-23 सैयद मुश्ताक अली टी20 टूर्नामेंट) के बाद 2023 में आईपीएल में लाई और खूब तारीफ़ बटोरी पर अब और कोई नहीं, टीम इंडिया का टी20 कप्तान इस लॉ के नुक्सान गिना रहा है। बीसीसीआई में कई चेहरे गुस्से से लाल हो गए पर कुछ कर नहीं पाए क्योंकि इससे बात और बिगड़ती।

सब जानते हैं कि हार्दिक को छोड़कर, भारत के पास टी20 वर्ल्ड कप के लिए कोई सही सीम बॉलिंग ऑलराउंडर नहीं- नोट कीजिए फिनिशर के रोल में दुबे के नाम की चर्चा है, ऑलराउंडर के तौर पर नहीं। रोहित साफ़ कहते हैं कि ‘इम्पैक्ट प्लेयर’ लॉ ऑलराउंडर सामने लाने के रास्ते में एक बड़ी रूकावट है। असल में ये लॉ हर टीम को, मैच की जरूरत के हिसाब से , पारी के दौरान एक खिलाड़ी- बल्लेबाज/गेंदबाज को सब्स्टीट्यूट करने का मौका देता है। इससे दुबे जैसे खिलाड़ी को चेन्नई सुपर किंग्स ने पावर-हिटर में इस्तेमाल किया। जिन दुबे को कागज़ पर भले ही ऑलराउंडर गिन कर टी20 वर्ल्ड कप टीम का दावेदार बना दें- उन्होंने वास्तव में सीजन के इस समय तक खेले 8 मैच में 311 रन तो बनाए पर एक भी ओवर नहीं फेंका। वह कहां से ऑलराउंडर रह गया है? आईपीएल उसे बेकार कर रहा है।

मुंबई इंडियंस के कप्तान हार्दिक पांड्या की खुद गेंदबाजी की कोई इच्छा नहीं थी। रिपोर्ट है कि जब सेलेक्टर्स ने उन्हें जबरदस्ती गेंदबाजी के लिए कहा तो उन्होंने अपने बाजू को तकलीफ दी। हार्दिक ने 8 में से 6 मैच में गेंदबाजी की और सिर्फ सनराइजर्स हैदराबाद और पंजाब किंग्स के विरुद्ध कोटे के 4-4 ओवर फेंके। ये है देश का टॉप सीम ऑलराउंडर।

असल में इम्पैक्ट प्लेयर लॉ से मैच का मजा तो बढ़ गया क्योंकि ढेरों रन बन रहे हैं, 4 और 6 लग रहे हैं पर क्रिकेट को 11 खिलाड़ियों के साथ खेलने वाला मामला ख़त्म हो गया- जरूरत में जब बाहर से एक खास तरह का स्पेशलिस्ट मिल रहा हो तो अपने ऑलराउंडर बेकार से हो गए। दूसरी टीम अच्छी बल्लेबाजी कर रही हैं तो एक और गेंदबाज बुला लो और अगर रन बनाने हैं तो बेहतर बल्लेबाज बुला लो। 2023 सीज़न से पहले, अगर पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम में किसी ने 100 बनाया तो आम तौर पर (75 प्रतिशत तक) मैच में जीत पक्की पर अब ‘इम्पैक्ट सब’ ने इसे घटाकर 50 प्रतिशत कर दिया है। 2008 से 2023 तक, सिर्फ दो 250+ स्कोर थे और इस साल कई 250+ बन चुके हैं और इसमें इम्पैक्ट सब का पूरा योगदान है।

रोहित शर्मा को ज़हीर खान ने बिना देरी सपोर्ट किया और ये सपोर्ट अब बढ़ता जा रहा है। यहां तक कि मौजूदा टॉप गेंदबाज जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज भी उनका ही सपोर्ट कर रहे हैं। नतीजा ये कि बीसीसीआई के सामने आईपीएल में इम्पैक्ट प्लेयर लॉ के रिव्यू को मानने के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं बचा। आईपीएल के बाद, पहले तो इस पर सभी टीम से बात होगी और फिर फैसला लेंगे। जसप्रीत बुमराह ने साफ़ कहा- इम्पैक्ट प्लेयर से बल्लेबाजी लाइन-अप बहुत मजबूत हो रही है और इसका उलटा असर ये कि जो गेंदबाज है भी- वह भी ‘आधा गेंदबाज’ रह जाता है। भारत के लिए लिमिटेड ओवर क्रिकेट में ऑलराउंडर हमेशा शार्ट सप्लाई में रहे हैं और उस पर ये लॉ खुद इन्हें डेवलप करने के रास्ते में रूकावट बन रहा है।

देखिए बिग बैश लीग में क्या हुआ? वहां भी इम्पैक्ट सब को ‘एक्स-फैक्टर’ के तौर पर लाए- सब्स्टीट्यूट की लिस्ट के दो खिलाड़ियों में से किसी एक को 10 ओवर के बाद गेम में ला सकते थे- शर्त ये कि जिसे हटा रहे हैं उसने तब तक बल्लेबाजी न की हो/एक ओवर से ज्यादा गेंदबाजी न की हो। टीमों के फीडबैक पर, 2022-23 बीबीएल सीज़न से ये सिस्टम खत्म कर दिया। आईसीसी ने भी 2005 में वनडे में ‘सुपर सब’ का एक्सपेरिमेंट किया जो फेल रहा और एक साल के भीतर इसे डिब्बे में बंद कर दिया। इन ऑब्जर्वेशन के बावजूद, बीसीसीआई ने इसी को पकड़ लिया।

असल में, ऐसा लगता है कि जो हो रहा है वह बीसीसीआई ने न सोचा था। उदाहरण के लिए केकेआर के विरुद्ध जॉस बटलर पूरी तरह फिट नहीं थे। ऐसी हालत में टीम उन्हें प्लेइंग इलेवन में ही न लेती पर वे बल्लेबाजी के लिए टीम में आ गए और बाकी काम इम्पैक्ट सब ने कर दिया।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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