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इंग्लैंड को 2025 के आखिर में अगली एशेज के लिए ऑस्ट्रेलिया टूर पर जाना है और क्या आप विश्वास करेंगे कि इंग्लैंड ने एशेज जीतने की तैयारी शुरू कर दी है। रिकॉर्ड ये है कि 2010-11 एशेज में 3-1 की जीत के बाद से इंग्लैंड को ऑस्ट्रेलिया में जीत नहीं मिली है और ऐसे में वे अब जीत का फॉर्मूला ढूंढ रहे हैं और इसके लिए आईहॉक (iHawk) टेक्नोलॉजी इस्तेमाल कर रहे हैं। ये सब पढ़ने में अजीब जरूर लगेगा पर सच है।

इसके लिए एक ख़ास कैमरा इस्तेमाल हो रहा है जिसका एक साल का खर्चा 5 लाख पौंड (लगभग 5.28 करोड़ रुपये) है और ये उस एशेज टूर के लिए सही टीम चुनने में मदद करेगा। इस प्रोजेक्ट में परफॉर्मेंस एनालिसिस के हेड स्टैफोर्ड मरे हैं जो लॉफबोरो में बोफिन्स (जहां टेक्नोलॉजी रिसर्च होती है) में डेटा के विशाल पूल के इस्तेमाल और कोच ब्रेंडन मैकुलम और कप्तान बेन स्टोक्स जैसे क्रिकेट जानकार के इनपुट को मिलाकर, उस टेस्ट टीम की फोटोफिट तैयार कर रहे हैं जो ऑस्ट्रेलिया के हालात में जीते। जब इस रिसर्च से ये पता चल गया कि वहीं जीतने के लिए कैसे खिलाड़ियों की जरूरत है तो उन इंग्लिश खिलाड़ियों को ढूंढेंगे जो इस जरूरी सांचे में सबसे ज्यादा फिट होते हैं।

इंग्लैंड ऐसा पहले भी कर चुका है। पिछले साल के भारत के टेस्ट टूर के लिए काउंटी चैंपियनशिप में 67 की गेंदबाजी औसत वाले शोएब बशीर को इसी तरह से चुना था- अन्यथा ये औसत और रिकॉर्ड देखकर उन्हें कौन चुनता? रिसर्च ने बताया कि ऊंचे रिलीज़ पॉइंट वाला स्पिनर भारत में सफल रहेगा तो ये बात साइंटिस्ट ने ईसीबी को बताई और तब ऐसा स्पिनर ढूंढने का काम शुरू हुआ। आखिर में एमिरेट्स में लगे एक ट्रेनिंग कैंप में बशीर में इसी क्वालिटी को देखा और चुन लिया। 

इस सिस्टम आईहॉक के लिए डेटा मिलता है गेंदबाज के सिरे पर खड़े अंपायर की छाती पर लगे कैमरे से- ये घरेलू क्रिकेट में हर गेंद के रास्ते के ग्राफ,तेजी, वेरिएशन और बाउंस को रिकॉर्ड करता है। इसलिए इंग्लैंड में अब टीम चुनने की नई पॉलिसी ये नहीं है कि एक खिलाड़ी ने क्या किया है- ये देखेंगे कि वह क्या कर सकता है? एक और उदाहरण- यदि बोफिन्स ने सुझाव दिया कि एक 6 फुट 6 इंच से लंबा गेंदबाज चाहिए, दूसरा ऐसा जो पूरे दिन 87 मील प्रति घंटे की तेजी से गेंद फेंके और तीसरा ऐसा खब्बू जो लगातार एक ख़ास डिग्री से भी ज्यादा गेंद स्विंग कराए तो बेहतर रिकॉर्ड वाले गेंदबाज चुनने के बजाय काउंटी क्रिकेट से ऐसे गेंदबाज ढूंढे जाएंगे। इसलिए जरूरी नहीं कि जो इस साल वेस्टइंडीज, श्रीलंका, पाकिस्तान और न्यूजीलैंड के विरुद्ध टेस्ट खेलेंगे, वही रन चार्ट या विकेट चार्ट पर रिकॉर्ड की बदौलत ऑस्ट्रेलिया जाएंगे।

क्रिकेट में ये नई शुरुआत है पर ग्रेट ब्रिटेन और न्यूजीलैंड ओलंपिक टीम इसी तरह चुनी थीं- उस प्रोजेक्ट के हेड भी यही मरे थे। ये तो कंप्यूटर की मदद से हो रहा है पर आधार वही है जो बज बॉल में मैकुलम और स्टोक्स किया- तभी तो ज़क क्रॉली जैसे खिलाड़ी को स्पोर्ट किया क्योंकि उनकी पॉलिसी ने माना कि वह मैच विनर है- भले ही लगातार अच्छा न खेलता हो। इसलिए सिर्फ औसत और पारंपरिक रिकॉर्ड नहीं देखा- खिलाड़ी के ‘प्रभाव’ को मापा। मरे के अनुसार आईहॉक एक गेम चेंजर है- इंग्लैंड इसके इस्तेमाल वाला पहला क्रिकेट देश है और इस तरह की इससे बेहतर और कोई टेक्नोलॉजी नहीं। इस समय अंपायर पर गो प्रो कैमरे लगाए हैं जो तेजी, स्विंग, सीम मूवमेंट और रिलीज रिकॉर्ड कर रहे हैं। जब इंग्लैंड ने बशीर को चुना था तो ये स्टेटमेंट आई थी कि उसे सेलेक्टर्स ने नहीं, कैमरे ने चुना। 20 साल की उम्र में सिर्फ 6 फर्स्ट क्लास मैच में 67 की औसत से 10 विकेट लेने वाला टेस्ट टूर टीम में आ गया।

लेस्टर टाइगर्स रग्बी टीम इसी तरह से तह चुन रहे हैं। इंग्लैंड महिला टीम चुनने में इसी की मदद ले रहे हैं और कोच जॉन लुईस ने माना है कि पिछले साल एशेज के दौरान कई बार इससे फर्क पड़ा। यहां तक कि कंप्यूटर पर दूसरे देश की टीम के साथ, अपनी नकली टीम बनाकर मैच करा दिया तो पता चल गया कि टीमें एक-दूसरे के विरुद्ध कैसे खेलेंगी? जब लुईस डब्ल्यूपीएल के लिए भारत आए तो उन्होंने यूपी वारियर्स टीम चुनने में इसी टेक्नोलॉजी से संकेत लिए। इन दिनों जो इंग्लैंड महिला टीम पाकिस्तान से खेल रही है उसे चुनने के लिए भी इसी सिस्टम की मदद ली है। अभी पूरी टीम इससे नहीं चुनते पर ये टीम चुनने का हिस्सा है। इससे ये समझने में मदद मिल रही है कि आगे क्या हो सकता है?

एशेज में जब इंग्लैंड जूझ रहा था तो इस सिस्टम ने जिस गेंदबाज की जरूरत बताई वह ऑफ स्पिनर चार्ली डीन थी। उसे सीरीज के टी20 राउंड के एक मैच के बाद टीम में लाए और हीथर नाइट की टीम अगले वे दोनों मैच जीत गई जिनमें वह खेली। तीसरे में भी डीन ने ऑस्ट्रेलियाई कप्तान और ओपनर एलिसा हीली को एलबीडब्ल्यू किया था।

महिला टीम के लिए लुईस का अगला प्रोजेक्ट बांग्लादेश में टी20 वर्ल्ड कप है जिसे इंग्लैंड ने 2009 के बाद से नहीं जीता है। उपलब्ध खिलाड़ियों के बड़े पूल से वे इसी की मदद से टीम चुनेंगे। तो ये है क्रिकेट में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई AI) की एंट्री। जब वे भारत में यूपी वारियर्स के लिए काम कर रहे थे तो लंदन से पीएसआई के सॉफ्टवेयर को लाए थे और अब इसका उपयोग इंग्लैंड टीम में कर रहे हैं। 

  • चरनपाल सिंह सोबती

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