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जबकि टी20 वर्ल्ड कप 2024 शुरू होने में कुछ ही दिन बचे हैं और बाजार की बात करें तो आईसीसी का पूरा ध्यान नए स्पांसर जोड़ने पर है- ऐसे में आईसीसी को एक झटका लगा और एमआरएफ ने एक लंबी पार्टनरशिप के बाद, आईसीसी को बाय-बाय कह दिया है। वे 8 साल से आईसीसी के साथ थे- अगर आप आईसीसी के पोर्टल पर टीम और प्लेयर रैंकिंग देखते थे तो जरूर एमआरएफ का नाम नोट किया होगा। वे रैंकिंग के स्पांसर थे। गड़बड़ ये है कि एमआरएफ ने आईसीसी से उस समय पार्टनरशिप खत्म की जब वे नए स्पांसर को एमआरएफ के साथ अपनी लंबी पार्टनरशिप की मिसाल दे रहे थे।

इसी के साथ-साथ मीडिया में ये बात भी सामने आ गई कि न सिर्फ एमआरएफ, और कुछ पुराने स्पांसर भी इंटरनेशनल क्रिकेट के मौजूदा मैनेजमेंट से नाखुश हैं और आईसीसी के साथ अपनी पार्टनरशिप को नए सिरे से वैल्यू कर रहे हैं। रिपोर्ट ये है कि इस लाइन पर, डीपी वर्ल्ड और अरामको को छोड़कर, बाक़ी सभी स्पांसर चिंता में हैं और या तो अपनी इनवेस्टमेंट पर रिटर्न का पता लगा रहे हैं अन्यथा कॉन्ट्रैक्ट से बाहर निकलने का रास्ता तलाश रहे हैं।

ये तो एक बिजनेस है और स्पांसर का हक़ है कि अपनी इनवेस्टमेंट पर रिटर्न के बारे में सोचें। ऐसे संकेत हैं कि टी20 वर्ल्ड कप को अमेरिका में खेलने से न सिर्फ ब्रॉडकास्टर नाखुश हैं- ज्यादातर स्पांसर भी। उन्हें लगता है कि इस रीजन में टी20 वर्ल्ड कप खेलने से उन्हें कोई फायदा नहीं मिलने वाला। ठीक है की टीम इंडिया के ग्रुप मैच तो रात 8 बजे से हैं पर ज्यादातर मैच तो अलग-अलग समय पर हैं। ढेरों मैच सुबह 5/6 बजे से हैं और इतनी सुबह कितने लोग मैच देखेंगे? 

इसके अतिरिक्त आईसीसी के बहुत ही सुस्त बिल्ड-अप से भी इस टी20 वर्ल्ड कप को वह चर्चा नहीं मिल रही जिसकी जरूरत थी। भारत में ही, आईपीएल के चलते कितने लोग इस टी20 वर्ल्ड कप की चर्चा में रुचि ले रहे हैं? इसका एक और सबूत ये है कि जिस अमेरिकी बाजार में एंट्री के लिए इस वर्ल्ड कप को वहां ले गए- वहां से वर्ल्ड कप शुरू होने से 15 दिन पहले तक आईसीसी को एक भी नया स्पांसर नहीं मिला। उस पर एमआरएफ ने बाय-बाय कह दिया। इसीलिए आईसीसी ने अपनी तरफ से कोई स्टेटमेंट नहीं दी।

जानकार आईसीसी में एक बेहतर/मजबूत मार्केटिंग और स्पांसर टीम की कमी, खराब इवेंट शेड्यूलिंग और स्पांसर के साथ कम्युनिकेशन की कमी की बात कर रहे हैं- स्पांसर से चैक लेने के अतिरिक्त आईसीसी ने उनसे कोई संपर्क नहीं रखा। ऐसे में स्पांसर ये समझ नहीं पा रहे कि आईसीसी की क्रिकेट स्कीम में उनकी क्या जगह है? आईसीसी ने मार्केटिंग के मुद्दे पर भी उनका नजरिया जानने में कोई रुचि नहीं ली। 

अकेले भारतीय बाजार के मीडिया अधिकार की हाल की बिक्री से आईसीसी के ग्लोबल रेवेन्यू में 90% हिस्सा आ रहा है और इसी बाजार की जरूरतों को आईसीसी नजरअंदाज कर रही है। उन्हें महत्व मिल रहा है जो न तो क्रिकेट में मायने रखते हैं, न पैसा लाते हैं और न ही जमीनी स्तर पर क्रिकेट के डेवलपमेंट में मदद करते हैं। इसलिए बौखलाहट बढ़ रही है। बाजार के सूत्र कहते हैं कि कोका कोला जैसे पुराने स्पांसर भी आईसीसी के साथ पार्टनरशिप पर फिर से नजर डाल रहे हैं- अपनी रिटर्न का हिसाब लगा रहे हैं। टायर निर्माता एमआरएफ का टी20 वर्ल्ड कप से ठीक दो हफ्ते पहले, अपनी 8 साल पुरानी पार्टनरशिप को आगे न बढ़ाना इसीलिए ख़ास है। रैंकिंग के नए स्पांसर की अभी कोई घोषणा नहीं हुई है- शायद टी20 वर्ल्ड कप के बाद ही इस बारे में कोई फैसला होगा।

एमआरएफ यानि कि मद्रास रबर फैक्ट्री क्रिकेट के सबसे पुराने स्पांसर में से एक हैं और ख़ास तौर पर भारत में क्रिकेट बढ़ाने में इस कंपनी का पैसा बड़े काम आया है। भारत की क्रिकेट में इस कंपनी का सबसे बड़ा योगदान एमआरएफ पेस फॉउंडेशन है। आज भारत में विश्व स्तर के तेज गेंदबाज सामने आ रहे हैं- एक समय था जब एक बेहतर तेज गेंदबाज के लिखे तरसते थे। तब इसी पेस फाउंडेशन ने तेज गेंदबाज तैयार करने के लिए 1987 में, चेन्नई में एमआरएफ पेस फाउंडेशन शुरू की। वे क्रिकेट में पहले बड़े ब्रैंड थे- खुद बैट नहीं बनाते थे पर सचिन तेंदुलकर, स्टीव वॉ, ब्रायन लारा, विराट कोहली और एबी डिविलियर्स जैसे सुपरस्टार के साथ बैट का कॉन्ट्रैक्ट किया और इनके बैट पर एमआरएफ का लोगो लगा। 2016 में पहली बार आईसीसी के ग्लोबल पार्टनर बने।

1987 में, एमआरएफ के मैनेजिंग डायरेक्टर रवि माम्मेन वह पहले व्यक्ति थे जिसने ये सोचा कि कब तक भारत सिर्फ स्पिन-गेंदबाजी के सहारे इंटरनेशनल क्रिकेट खेलता रहेगा? जो बीसीसीआई को सोचना चाहिए था, उन्होंने न सिर्फ सोचा- उस पर पैसा लगाया और पेस फाउंडेशन शुरू की। कोच का जो पहला बैच लिया उनमें से एक टीए शेखर थे- मद्रास के एक लंबे और मजबूत तेज गेंदबाज, 2 टेस्ट और 4 वनडे खेले और 1985 में आखिरी मैच खेले थे। वे 20 साल से ज्यादा इस प्रोजेक्ट में रहे और कई तेज गेंदबाज तैयार करने में उनका योगदान है।

डेनिस लिली उस समय तेज गेंदबाजी में बड़ा नाम थे- जो लिली भारत में खेलने से कतराते रहे, एमआरएफ ने उन्हें भी एक्सपर्ट कोच के तौर पर बुला लिया। इस पेस फाउंडेशन ने जवागल श्रीनाथ, वेंकटेश प्रसाद, विवेक राजदान, सुब्रतो बनर्जी, इरफान पठान, जहीर खान, मुनाफ पटेल और आशीष विंस्टन जैदी सहित ढेरों तेज गेंदबाज तैयार किए। आज न सिर्फ भारत से, दूसरे देशों से भी युवा तेज गेंदबाज यहां ट्रेनिंग के लिए आ रहे हैं- उनके बोर्ड स्पांसर करते हैं।

लिली कई साल फाउंडेशन में आते रहे- बस चेन्नई आते थे और यहीं से लौट जाते थे। अब एक्सपर्ट कोच ग्लेन मैकग्रा हैं। इस साल मार्च में तो भारतीय क्रिकेट में तेज गेंदबाजी टेलेंट को निखारने के प्रोजेक्ट में इस पेस फाउंडेशन ने देश भर में ‘ऐस ऑफ पेस’ ट्रायल आयोजित किए- कोलकाता, मुंबई, दिल्ली और चेन्नई में और 1000 से ज्यादा युवा तेज गेंदबाजों को शार्ट लिस्ट किया। आखिर में जसकरन सिंह (20 साल, राजस्थान – श्रीगंगानगर से), मोहम्मद इज़हार (20 साल, बिहार-बीरपुर से) और मोहम्मद सरफराज (20 साल, रांची- झारखंड से) को मुफ्त ट्रेनिंग के लिए चुना।

जब टी20 वर्ल्ड कप की बात चल रही है तो बता दें कि भारत का सबसे बड़ा मूवी ऑपरेटर PVR-INOX, फिल्मों की मंदी के बीच, दर्शकों की संख्या बढ़ाने के लिए टी20 वर्ल्ड कप के कुछ ख़ास मैचों की स्क्रीनिंग करेगा। कंपनी ने 2023 वर्ल्ड कप में भी बड़े मैचों की इसी तरह से स्क्रीनिंग की थी- इसमें भारत-ऑस्ट्रेलिया फाइनल भी शामिल था।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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