आप आईपीएल में व्यस्त थे और इस बीच क्रिकेट में एक ऐसी बात हुई जो भविष्य में क्रिकेट में क्या होने वाला है उसका साफ़ इशारा है? इसके बावजूद कहीं भी उसका जिक्र नहीं। दिल्ली हाई कोर्ट ने रेरियो बनाम स्ट्राइकर केस में जो फैसला सुनाया वह वेब 3 दुनिया में एथलीट के व्यक्तित्व अधिकारों (personality rights) का है- ये अधिकार किसके हैं? इस केस में आख़िरी फैसला फैंटसी स्पोर्ट्स इंडस्ट्री के काम के तरीके को बदल सकता है।
स्ट्राइकर पर केस किया, क्रिकेट एनएफटी प्लेटफॉर्म रेरियो ने और कोर्ट ने रेरियो की उस पिटीशन को खारिज कर दिया, जिसमें मांग की थी कि स्ट्राइकर को अपनी सर्विस देने से फ़ौरन रोकने के लिए अंतरिम आदेश दें। आख़िरी फैसला आने में सालों लग सकते हैं इसलिए जैसा चल रहा है- तब तक उस पर कोई रोक नहीं।
क्या है ये मामला? रेरियो, एक ऐसा प्लेटफार्म है जो क्रिकेट प्रेमियों को ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी के जरिए, क्रिकेटरों के डिजिटल कार्ड खरीदने, बेचने और उनकी ट्रेडिंग का मौका देता है- ये कार्ड उन क्रिकेटरों के हैं जिनके अधिकार, पैसा देकर, लाइसेंस के साथ उन्होंने खरीदे। इसके बाद स्ट्राइकर (एक एनएफटी-आधारित फेंटेसी क्रिकेट प्लेटफॉर्म) ने भी लगभग ऐसे ही डिजिटल कार्ड बेचना शुरू कर दिया पर सबसे बड़ा फर्क ये था कि इन कार्ड पर क्रिकेटर की फोटो न लगा कर, क्रिकेटरों के कैरिकेचर लगा दिए। इनमें वे क्रिकेटर भी थे- जिनका लाइसेंस रेरियो ने पैसा दे कर खरीदा। रेरियो ने इसीलिए, अपनी पिटीशन में 5 क्रिकेटर (हर्षल पटेल, अर्शदीप सिंह, शिवम मावी, उमरान मलिक और मोहम्मद सिराज) को भी वादी बनाया था। अब कुछ फैक्ट नोट कीजिए :
- रेरियो ने डिजिटल कार्ड लाइसेंसिंग पर अकेले पिछले साल में 148 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए। उन्हीं क्रिकेटरों के कैरिकेचर के साथ, स्ट्राइकर ने बिना पैसा खर्चे डिजिटल कार्ड बना लिए।
- स्ट्राइकर ने कहा कि उनके कार्ड फर्क हैं- ये सिर्फ ऑनलाइन फेंटेसी गेम खेलने के लिए हैं, किसी ट्रेडिंग के लिए नहीं। किसी कार्ड पर, किसी की फोटो नहीं जो खुद इस बात का सबूत है कि कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं हुआ।
- स्ट्राइकर का दावा है कि फेंटेसी गेम्स में क्रिकेटरों के नाम, फोटो और क्रिकेट रिकॉर्ड किसी एक के कैसे हो सकते हैं- ये तो कई पोर्टल पर मुफ्त उपलब्ध हैं। भारत में किसी लॉ में इन पर किसी का कंट्रोल नहीं।
इस तरह की और भी ढेरों दलील दी गईं और उनके जवाब आए। कोर्ट ने पिटीशन खारिज करते हुए, अपने ढेरों पेज के फैसले में जो ख़ास बात कही- व्यंग्य, पैरोडी, आर्ट और समाचार के लिए सेलिब्रिटी के नाम और पिक्चर का उपयोग करने की इजाजत है बशर्ते प्रचार के अधिकार का उल्लंघन न करें
फेंटेसी स्पोर्ट्स प्लेटफॉर्म का खिलाड़ियों के नाम, इमेज और अन्य सार्वजनिक जानकारी का उपयोग भी इस सेक्शन के तहत है, भले ही यह व्यावसायिक लाभ के लिए उपयोग किया जा रहा हो। अब अगर ये बात सही है तो एनएफटी प्लेटफार्म खिलाड़ियों के साथ विशेष कॉन्ट्रैक्ट के लिए उन्हें पैसा क्यों दें? एक और मजेदार बात- इस केस में अन्य प्रतिवादी, मोबाइल प्रीमियर लीग, ने स्ट्राइकर का साथ दिया।
ये फेंटेसी गेम कैसे खेलते हैं- ये एक अलग विषय है। बस इतना समझ लीजिए कि एनएफटी-आधारित फेंटेसी प्लेटफॉर्म के लिए आपको व्यक्तिगत खिलाड़ी का कार्ड खरीदने की जरूरत है। गेम में 5 खिलाड़ी की जरूरत है तो 5 कार्ड खरीदने होंगे
आईपीएल के लिए रेरियो पर एक खिलाड़ी के कार्ड की कीमत 1 डॉलर से 299 डॉलर के बीच थी। जो कार्ड खरीद लिया- उसे आप आगे खुद भी, किसी भी कीमत पर बेच सकते हैं।
यदि कार्ड वाले इस मामले को और आसानी से समझना है तो अपने बचपन में लौटना होगा। पॉकेट मनी से बबल गम खरीदते थे- सिर्फ इसलिए नहीं कि बबल गम पसंद है। इसलिए भी कि उसके साथ एक क्रिकेट कार्ड मिलता था। बिग फन, बिग बाबोल और सेंटर फ्रेश ने ऐसे खूब कार्ड बेचे- कार्ड पर क्रिकेटर के रिकॉर्ड और फोटो भी होते थे। बच्चे आपस में इन कार्ड को बेचते थे। ये लॉटरी थी- सचिन तेंदुलकर या वसीम अकरम जैसों का कार्ड मिल गया तो मजा आ गया क्योंकि ऐसे क्रिकेटर की तो हर ‘टीम’ को जरूरत है।
अब इन कार्ड को डिजिटल बना दिया- इन का ऑनलाइन कारोबार सैकड़ों और हजारों डॉलर में हो रहा है। आईसीसी भी इसी तरह से बल्लेबाज के शॉट, गेंदबाज के कैच या मैच के किसी खास लम्हे की वीडियो बेच रही है- उसे सिर्फ वह देख सकता है जिसने खरीदा है। मसलन आईसीसी टी20 वर्ल्ड कप में हारिस रऊफ की गेंद पर विराट कोहली का 6- अब, आप जब चाहें उस शॉट को ऑनलाइन देख सकते हैं और इस वीडियो को न सिर्फ खरीद सकते हैं, इसे आगे बेच भी सकते हैं। आईसीसी ने क्रिक्टोस नाम से अपनी ऑफिशियल डिजिटल कलेक्शन रेंज बना दी है।
आप क्या समझ रहे थे कि क्रिकेट सिर्फ रन बनाने या विकेट लेने का खेल है?
- चरनपाल सिंह सोबती