भारत की टीम इंग्लैंड में है 2021 में सीरीज को जहां अधूरा छोड़ा था, उससे आगे खेलने। तब से बहुत कुछ बदल चुका है। टीम इंडिया अगर सीरीज जीतने की चुनौती के साथ खेल ही रही है तो विराट कोहली, जो 2021 में कप्तान थे- अपनी एक टॉप बल्लेबाज के तौर पर पहचान की चुनौती के सामने खेल रहे हैं। संयोग से, हाल के सालों में, टेस्ट क्रिकेट में, फैब 4 में जिन चार बल्लेबाज का लगातार जिक्र करते आ रहे हैं- उनमें से दो एजबेस्टन टेस्ट में आमने-सामने हैं। अब तक तो चिंता कर रहे थे, इंटरनेशनल क्रिकेट में विराट कोहली के अगले 100 की- रुट की मौजूदा, गजब की फार्म को देखकर सबसे बड़ा प्रश्न चिन्ह विराट कोहली की एक टॉप बल्लेबाज के तौर पर फैब 4 में मौजूदगी पर लग गया है। क्या एजबेस्टन में कुछ बदलेगा?
इन सब सालों में जब भी फैब 4 की बहस हुई तो जानकार, मौजूदा फार्म के आधार पर, फैब 4 के चारों बल्लेबाज जो रूट, विराट कोहली, स्टीव स्मिथ और केन विलियमसन का नाम लिखने का क्रम बदलते रहे। आम तौर पर, भावुकता में, भारत के क्रिकेट पंडित इनमें से भी विराट कोहली को नंबर 1 साबित करने में लगे रहे।
नई तरह से सोचने और लिखने की जरूरत शायद आ गई है। 2014 में, न्यूजीलैंड के मार्टिन क्रो ने अपने एक कॉलम में पहली बार जो रूट, विराट कोहली, स्टीव स्मिथ और केन विलियमसन का ‘टेस्ट क्रिकेट के युवा फैब फोर’ के तौर पर जिक्र किया था। तब, टेस्ट मैचों में सिर्फ रूट की औसत 41 से ऊपर थी। बाकी तीनों को तो तब टॉप बल्लेबाज भी नहीं गिनते थे। इसलिए क्रो की पारखी नजर की तारीफ होनी चाहिए। उन्होंने ये भी लिखा था- ‘चारों अपने-अपने देशों की कप्तानी करेंगे। कुछ सालों में टॉप पर पहुंच जाएंगे और असली लड़ाई शुरू होगी दुनिया में नंबर 1 बल्लेबाज की। मेरी समझ ये है कि चारों कभी न कभी नंबर 1 टेस्ट बल्लेबाज जरूर बनेंगे।’
क्रो की बात एकदम सच निकली। मौजूदा नजारा देखें तो इस लिस्ट की शेल्फ लाइफ देखने की जरूरत महसूस हो रही है। इंग्लैंड के जो रूट बहुत आगे आ गए हैं विराट कोहली, स्टीव स्मिथ और केन विलियमसन से। जो रूट ने पिछली इंग्लैंड-न्यूजीलैंड सीरीज के दोनों टेस्ट में, मैच जीतने वाले शतक बनाए- न सिर्फ 10,000 टेस्ट रन बनाने वाले सिर्फ 14वें क्रिकेटर बने, 27 शतक बनाकर भी टॉप 20 में नाम है। जो रुट अब ‘फैब 4’ के बाकी तीनों मेंबर से ‘बहुत आगे’ हैं- इस साल अप्रैल में कप्तानी छोड़ने का फैसला उनके लिए बोनस साबित हुआ।
2021 की शुरुआत पर विराट कोहली, स्टीव स्मिथ और केन विलियमसन क्रमशः 27, 26 और 24 टेस्ट शतक पर थे, जबकि रूट सिर्फ 17 पर। तब से- रूट 10 शतक बनाकर 27 पर जबकि कोहली, स्मिथ और विलियमसन ने मिलकर भी एक भी शतक नहीं बनाया। और क्या सबूत चाहिए? अकेले अपने दम पर रुट ने इंग्लैंड की बल्लेबाजी को जिस तरह खींचा वैसे विराट कोहली, स्मिथ या विलियमसन अकेले ‘अपनी टीम की बल्लेबाजी’ नहीं कहलाए।
2021 के शुरू से रुट अकेले बल्लेबाज जिसने 2000 से ज्यादा रन बनाए- 22 टेस्ट में 2371 रन। उन्हें इंग्लैंड के ज्यादा टेस्ट खेलने का फायदा भी मिला। उनके बाद : करुणारत्ने (1216), लिट्टन दास (1152), ऋषभ पंत (1077) और ब्रैथवेट (1016) जबकि स्मिथ ने 10 टेस्ट में 773, कोहली ने 14 टेस्ट में 725 और विलियमसन ने 5 टेस्ट में 412 रन बनाए।
फैब 4 के मेंबर बदलने की बात करें तो, 2021 के शुरु से रिकॉर्ड के आधार पर बाबर आज़म (11 टेस्ट में 806), डी कॉनवे (9 टेस्ट में 881), लाबुशेन (10 टेस्ट में 802) और उस्मान ख्वाजा (5 टेस्ट में 751) इस क्लब में शामिल होने के बेहतर हकदार हैं। उम्र देखें तो बाबर और कॉनवे से बेहतर दावेदार कोई नहीं।
अब जबकि एजबेस्टन टेस्ट सामने है तो भारत के नजरिए से असली सवाल विराट कोहली का है। 100 क्या, अब तो ज्यादा रन भी नहीं बन रहे। 31 साल की उम्र से पहले 69 इंटरनेशनल शतक बना लिए थे पर अब आख़िरी शतक बने 30 से ज्यादा महीने हो चुके हैं। कप्तानी छोड़ने का भी फायदा नहीं मिला। आईपीएल में कोहली के हालिया संघर्ष से यही पता चलता है कि ‘वापसी’ इतनी आसान नहीं है।
आईपीएल के दौरान रवि शास्त्री ने कहा था- वे ‘ओवरकुक’ हैं और ब्रेक की जरूरत है। आईपीएल के बाद वह भी मिल गया। जो एक सलाह किसी ने नहीं दी, वह ये थी कि आईपीएल और एजबेस्टन टेस्ट के बीच कोहली इंग्लैंड में क्रिकेट खेलें। 2014 के खराब रिकॉर्ड को सुधारने की तैयारी में कोहली ने 2018 की सीरीज से पहले, इंग्लैंड में काउंटी चैंपियनशिप में खेलने का फैसला किया था (भले ही बाद में ख़राब फिटनेस के कारण खेले नहीं)- इस बार भी तो ऐसा ही कर सकते थे।
विलियमसन और स्मिथ खराब फिटनेस से जूझ रहे हैं। दोनों को अपनी-अपनी टीम में भी टक्कर मिल रही है। इसलिए इस समय मुकाबला है कोहली और रुट का। रूट और कोहली दोनों ने कप्तानी छोड़ दी और अब समय सिर्फ बल्लेबाजी पर ध्यान देने का है। बहरहाल इतना तय है कि मौजूदा फैब 4 युग का आख़िरी राउंड शुरू हो चुका है।
– चरनपाल सिंह सोबती