पाकिस्तान सरकार का नया फैसला : जिन डिपार्टमेंट टीम के राष्ट्रीय खेल ढांचे में हिस्सा लेने पर पिछले पीएम इमरान खान ने प्रतिबंध लगाया था- वह हटा दिया। इमरान खान के फैसले का सबसे ज्यादा असर क्रिकेट पर दिखाई दिया था। पाकिस्तान विश्व क्रिकेट में अकेला ऐसा देश था जहां डिपार्टमेंट टीम, राष्ट्रीय क्रिकेट चैंपियनशिप- कायदे आजम ट्रॉफी में खेलती थीं। डिपार्टमेंट टीम के खेलने का मतलब है जैसे कल को भारत में रणजी ट्रॉफी में रिलायंस इंडस्ट्रीज या डीएलएफ की टीम खेलती नजर आएं।
जब पाकिस्तान बना तो वहां भी कराची और लाहौर जैसी टीम ही बनीं पर 1969 में ये ढांचा बदला और डिपार्टमेंट टीम के खेलने का सिलसिला शुरू हुआ- इसके पीछे इरादा सिर्फ यही था कि ये टीम बनाने वाले उद्योग, क्रिकेटरों को नौकरी दें, क्रिकेट पर पैसा लगाएं और पाकिस्तान में क्रिकेट को बढ़ावा मिले। इससे फायदा हुआ और क्रिकेटर डिपार्टमेंट टीम की सेलेरी की बदौलत बिना चिंता खेलने लगे। ये सिलसिला धीरे-धीरे सब खेलों में आ गया और पाकिस्तान का खेल ढांचा एक अलग मिसाल बन गया। इमरान खान खुद पीआईए (पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस) में नौकरी करते थे और उनकी टीम में खेलते थे।
इमरान ने पीएम बनते ही डिपार्टमेंट टीम के खेलों में प्रतिनिधित्व पर रोक लगा दी। नतीजा- हबीब बैंक, नेशनल बैंक, पीआईए, सुई नारदर्न गैस पाइप लाइन्स जैसे डिपार्टमेंट ने रातों- रात न सिर्फ ढेरों खिलाड़ियों को नौकरी से निकाल दिया- खेलों पर पैसा खर्चना भी बंद कर दिया। हबीब बैंक की टीम 43 साल तक पाकिस्तान के घरेलू सर्किट में खेली। क्रिकेटर तो घरेलू क्रिकेट की बेहतर हो चुकी फीस और सेंट्र्रल कॉन्ट्रैक्ट की बदौलत संभल गए पर अन्य खेलों के खिलाड़ी सड़कों पर भटक रहे हैं। इसकी सबसे अच्छी मिसाल मोहसिन खान साइकिलिस्ट हैं। सुई सदर्न गैस कंपनी (एसएसजीसी) में नौकरी थी और मैडल जीतने के दावेदारों में नाम लिया जाता था- आज पेशावर की सब्जी मंडी में घंटों ट्रक लोड करते हैं। ढेरों और भी मिसाल हैं। पाकिस्तान में ये मानने वालों की कमी नहीं कि इमरान खान जैसे क्रिकेटर के पीएम बनने के बावजूद न तो पाकिस्तान में कोई खेल क्रांति आई और न ही उन्होंने खेलों के लिए कोई फुर्सत निकाली। यहां तक कि अलग से स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री तक नहीं बनाई और खेल उस आईपीसी (Inter-provincial Coordination) के अंतर्गत रहे जिसके मिनिस्टर का खेलों से कोई नाता ही नहीं था। ‘कामयाब जवान स्पोर्ट्स ड्राइव’ को रोक दिया। इमरान की रूचि सिर्फ पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड का चीफ बनाने तक ही रही। पिछले दिनों बर्मिंघम में कॉमन वेल्थ गेम्स के दौरान एक इंटरनेशनल स्पोर्ट्स कॉन्फ्रेंस में इमरान खान का नाम लेकर ये मिसाल दी गई की महज एक खिलाड़ी ही देश की खेलों की हालत सुधर सकता है- इसकी कोई गारंटी नहीं। खैर क्रिकेट पर लौटते हैं। क्रिकेटर खेल से रिटायर होने पर भी चिंतित नहीं होते थे क्योंकि नौकरी थी।
पाकिस्तान बनने के बाद से, जितनी बार पाकिस्तान में घरेलू क्रिकेट का ढांचा बदला है- वैसा और कहीं नहीं हुआ। पीएम इमरान खान के प्रतिबंध के फैसले के बाद 2019 में 6 नई टीम बनीं- अब नए फैसले के बाद और दूसरी टीम आ जाएंगी। हर नया-पुराना खिलाड़ी क्रिकेट के ढांचे पर अपना नजरिया बताता रहता है। पूर्व कप्तान माजिद खान ने ठीक कहा- हमारा क्रिकेट पिछले 70 साल से यही समझ नहीं पाया कि खेलना कैसे है? पाकिस्तान की आबादी 22 करोड़ और ऑस्ट्रेलिया की तरह 6 टीम इस समय खेलती हैं वहां जो हर नजरिए से कम है। नई टेलेंट के लिए मौका कितना है? हर टीम में 19 खिलाड़ी तो सीजन में 114 प्रथम श्रेणी क्रिकेटर। इनमें से कितने टॉप क्रिकेटर मिलेंगे? प्रतिबंध से पहले 16 टीमें थीं और 353 खिलाड़ी। भारत में 37 टीम रणजी ट्रॉफी में खेल रही हैं।
अब डिपार्टमेंट टीम के लौटने से सब कुछ फिर से बदलेगा। पाकिस्तान रेलवे, बैंक, एयरलाइन या टीवी चैनल की टीम खेलती दिखाई देंगी। एक समय था जब भारत में भी क्रिकेटर, क्रिकेट में करियर की शुरुआत करते ही, साथ में नौकरी भी ढूंढता था। सचिन तेंदुलकर को 18 साल का होते ही नौकरी और पहली कार मिली थी। एक समय भारत की टेस्ट टीम में 7-8 खिलाड़ी बैंक में नौकरी करने वाले भी थे और इनमें से भी सबसे ज्यादा स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में। आज महिला क्रिकेटर सबसे पहले रेलवे में नौकरी ढूंढती हैं। दूसरी तरफ पुरुष क्रिकेटर को तो नाम के लिए भी नौकरी की तलाश नहीं- शुभमन गिल या श्रेयस अय्यर के पास नौकरी के कॉन्ट्रैक्ट के लिए भी फुर्सत नहीं।
- चरनपाल सिंह सोबती