घरेलू अंपायरों के खराब अंपायरिंग स्तर का मसला कोई नया नहीं। हर इंटरनेशनल और आईपीएल सीजन के दौरान कुछ न कुछ ऐसा होता ही रहता है कि बोर्ड की बेहतरीन अंपायर ड्यूटी पर लगाने की कोशिश पर सवाल उठता है। आईसीसी के एलीट पैनल में भारतीय प्रतिनिधित्व खुद इस बात का सबूत है कि देश में कितने अच्छे अंपायर तैयार हो रहे हैं।
अब देखिए 2022 सीजन का एक मैच : रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर और मुंबई इंडियंस के बीच हाई-ऑक्टेन गेम में डेवाल्ड ब्रेविस की गेंद पर विराट कोहली को एलबीडब्ल्यू दिया। गेंद कोहली के बैट और पैड पर एक साथ लगी थी लेकिन ग्राउंड अंपायर ने उन्हें आउट दे दिया। कोहली ने डीआरएस लिया लेकिन थर्ड अंपायर ने ग्राउंड अंपायर का साथ दिया- ऐसे में खिलाड़ी को गुस्सा तो आना ही था।
बीसीसीआई ने भारतीय क्रिकेट के लिए जो प्रतिष्ठा खिलाड़ियों के टेलेंट और आईपीएल के जरिए बनाई वैसा अंपायरिंग में नहीं हुआ। सबूत है सालों से ऐसे अच्छे अंपायरों की तलाश जो आईसीसी के एलीट पैनल में जगह पा सकें। पुराने क्रिकेटरों को अंपायरिंग में लाने की कोशिश भी कोई ख़ास कारगर साबित नहीं हुई है। सवाल सिर्फ अंपायर बनाने का नहीं है- अंपायर में सही फैसला देने की योग्यता हो अन्यथा एक गलत फैसला किसी भी क्रिकेटर के करियर पर आख़िरी लाइन खींच सकता है। इसीलिए बोर्ड की कोशिश है इम्तिहान के जरिए अंपायर चुनना। अच्छे अंपायर चुनने के लिए बोर्ड, स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन द्वारा भेजे नाम पर भरोसा न कर, खुद इम्तिहान लेता है। कुछ दिन पहले बोर्ड ने ‘बीसीसीआई लेवल- II अंपायर’ चुनने के लिए ऐसा ही एक इम्तिहान आयोजित किया- अहमदाबाद, गुजरात में। लिखित और साथ में प्रैक्टिकल और वायवा। जो पूरे इम्तिहान में पास, वे सीधे बीसीसीआई के टूर्नामेंट में अंपायर की ड्यूटी के योग्य।
अंपायरिंग के इस इम्तिहान के लिए कुल 200 नंबर थे- लिखित 100 नंबर, वायवा और वीडियो 35-35 नंबर और फिजिकल 30 नंबर, जिसमें से कम से कम 90 नंबर वाला पास। क्या आप जानते हैं कि नतीजा क्या रहा- 140 कैंडिडेट में से 137 फेल। कोरोना महामारी के बाद का यह पहला मौका था जब बोर्ड ने अंपायरिंग इम्तिहान आयोजित किया। वीडियो टेस्ट में मैच की फुटेज और विशेष परिस्थितियों में अंपायरिंग को लेकर सवाल पूछे गए। ज्यादातर लिखित में फेल हुए।
बोर्ड इस बात को मान रहा है कि अंपायरिंग एक मुश्किल काम है और इसके प्रति जोश रखने वाले ही आगे बढ़ सकते हैं। इसीलिए इम्तिहान महज क्रिकेट लॉ रटने का नहीं था- जो मैचों में होता है, उस क्षण पर फैसला लेने की योग्यता का था। रिजल्ट से पता चलता है कि देश में क्रिकेट के शौकीन करोड़ों में पर वास्तव में क्रिकेट को जानने वाले बहुत थोड़े- 98 फीसदी दावेदार फेल हो गए। इस नतीजे पर किसी को भी हैरानी हो सकती है।
थोड़ा और बारीकी में जाएं तो पता चलता है कि टेस्ट में ऐसे उलझाने वाले सवाल थे कि अच्छा ख़ासा क्रिकेट को समझने वाला भी बोल्ड हो जाए। टेस्ट में 37 बेहद मुश्किल सवाल थे। एक अंपायर,जो इस वक्त अंपायरिंग कर रहे हैं- उन्होंने भी माना कि कई बड़े मुश्किल सवाल पूछे गए। क्या आप क्रिकेट ‘ज्ञान’ आजमाना चाहेंगे?
1) एक बल्लेबाज ने रन के लिए क्रॉस किया कि तभी बाउंड्री के पास उसका कैच लिया गया। पता चला कि ये नो बॉल थी। कितने रन मिलेंगे और अगली गेंद का सामना कौन करेगा?
2) गेंदबाज़, गेंद फेंकते हुए पतलून के पिछले हिस्से से फंसाया तौलिया गिरा देता है और उससे बेल्स गिर जाती हैं। अंपायर को ऐसे में क्या करना चाहिए?
3) टी20 मैच में बारिश के कारण टॉस में देरी हुई। मैच को 7 ओवर वाला कर दिया। दोनों टीम को कितने मिनट का अलाउंस मिलेगा?
4) अंपायरों की किस-किस कॉल के लिए कोई इशारा नहीं बना है?
5) अगर ओवर की आखिरी गेंद को स्ट्राइकर जानबूझकर अपने पैड से खेलता है और फाइन लेग फील्डर अपनी टोपी से गेंद फील्ड करता है तो अंपायर क्या करेगा?
6) अगर बल्लेबाज, पवेलियन, किसी पेड़ या किसी फील्डर की छाया पिच पर गिरने की शिकायत करे तो अंपायर क्या करेगा?7) अगर गेंदबाज कहता है कि उंगली में चोट है और उस पर पट्टी बंधी है- तो उसे ऐसे ही गेंदबाजी करने देंगे? 8) बल्लेबाज ने एक शॉट खेला और गेंद शॉर्ट लेग पर खड़े फील्डर के हेलमेट से टकराई। गेंद की वजह से हेलमेट गिर गया, लेकिन गेंद के जमीन पर गिरने से पहले ही फील्डर ने उसे पकड़ लिया। क्या बल्लेबाज आउट हो जाएगा?
इम्तिहान मुश्किल था पर बोर्ड की तलाश बेहतर अंपायर हैं- इसलिए ‘क्वालिटी’ से कोई समझौता नहीं करना चाहते हैं। यदि आप नेशनल और इंटरनेशनल मैचों में अंपायरिंग करना चाहते हैं, तो गलती की कोई गुंजाइश नहीं हो सकती।
बीसीसीआई ने अंपायरों को पांच ग्रेड में बांटा है। A+ और A+ ग्रुप अंपायरों को फर्स्ट क्लास मैच के लिए हर रोज 40,000 रुपये का भुगतान किया जाता है, जबकि B, C और D ग्रुप अंपायरों को हर रोज 30,000 रुपये का भुगतान किया जाता है।
- चरनपाल सिंह सोबती
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