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वनडे वर्ल्ड कप 2023 के लिए काउंटडाउन की शुरु हो चुका है और हर टीम की तैयारी की अलग-अलग स्ट्रेटजी सामने आ रही है। एक तरफ धीमी पिचों पर रन की भरमार की उम्मीद है, पहली ही गेंद से बाउंड्री की कोशिश तो दूसरी तरफ गेंदबाज कोई तमाशा देखने नहीं आ रहे।

समय के साथ वनडे क्रिकेट में बल्लेबाजी की पॉलिसी बदलती रही है- 1960 के सालों में लिमिटेड ओवर क्रिकेट की शुरुआत के बाद आगे कई साल तक पॉलिसी थी शुरू में धीरे-धीरे रन जमा करो, विकेट बचाओ और आखिरी कुछ ओवरों में एकदम तेजी- यानि कि विकेट गिरने की चिंता के बिना स्कोर बढ़ाने की कोशिश।

हर बल्लेबाज में तेजी से रन बटोरने का ये हुनर नहीं था और इसीलिए ख़ास ऐसे ख़ास बल्लेबाज सामने आए जिनका काम था आनन-फानन में स्कोर एकदम बढ़ाना- यही पिंच हिटर कहलाए। टेस्ट में मशहूरी क्या है या वह किस नंबर पर बैटिंग के लिए मशहूर है- इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। बल्लेबाजी के नंबर में प्रोमोशन और मिल गया अटैक का फ्री-लाइसेंस।

अब पॉलिसी बदल गई है- हर बल्लेबाज तेजी से रन बनाए। इसीलिए, आज की वनडे क्रिकेट में, ये किसी ख़ास का काम नहीं और इसीलिए कहीं भी पिंच हिटर का जिक्र नहीं है। जिस स्ट्राइक रेट (5 मैच में 49.32 स्ट्राइक रेट से 182 रन) पर रवि शास्त्री ने 1984-85 की वर्ल्ड चैंपियनशिप ऑफ़ क्रिकेट में ‘चैंपियन ऑफ़ चैंपियंस’ का टाइटल और खूबसूरत ऑडी कार ले गए- आज की परिभाषा में वह ‘नाकामयाबी’ का टाइटल ले जाएगा।

ऐसा कोई पैमाना नहीं कि कौन पिंच हिटर है? कई जानकार, के श्रीकांत को भी पिंच हिटर कहते हैं- वनडे में 4091 रन 71.74 स्ट्राइक रेट से और अपने विकेट की चिंता न कर, रन बनाने वाले बल्लेबाज थे पर उनकी स्टाइल को तारीफ़ कम आलोचना ज्यादा मिली क्योंकि तब खेलने का ये तरीका रास नहीं आता था। वे तो 1983 के वर्ल्ड कप फाइनल में भी ऐसे ही खेले।

समय बदला और पिंच हिटर आकर्षण बन गए वनडे क्रिकेट के। शुरुआत आम तौर पर 1992 वर्ल्ड कप से मानते हैं। उस वर्ल्ड कप से ही फील्डिंग प्रतिबंध लागू हुए थे और हर पारी के पहले 15 ओवर में सिर्फ दो फील्डर रिंग के बाहर (विकेट के सेंटर से 27 मीटर का घेरा) यानि कि बड़े स्ट्रोक लगाने का मौका। अब तेजी से रन बनाना पारी के आखिर के साथ, शुरू में भी जरूरी हो गया। तब भी, कुछ टीम पारंपरिक अंदाज में ही खेलती रहीं। न्यूजीलैंड ने नजारा बदला- मार्क ग्रेटबैच को प्रमोशन और वे हिट हो गए। 7 पारी में 313 रन लगभग 88 स्ट्राइक रेट से- इसी हिटिंग ने न्यूजीलैंड को कप जीतने का दावेदार बना दिया।

इंग्लैंड ने, इसे देखकर यही रोल इयान बॉथम (58.35 स्ट्राइक रेट से 192 रन) को दिया- ग्राहम गूच के पार्टनर बन गए। ग्रेटबैच के 13 छक्के या स्ट्राइक रेट(87.92) आज भले कम लगें पर तब ये गजब का रिकॉर्ड था और न्यूजीलैंड ने सेमीफाइनल और इंग्लैंड ने फाइनल खेले।

पिंच हिटर की नई परिभाषा 1996 वर्ल्ड कप में श्रीलंका ने लिखी- दोनों ओपनर सनथ जयसूर्या (6 पारी में 221 रन 131.54 स्ट्राइक रेट) और रोमेश कालूविथराना (140.38 स्ट्राइक रेट) पिंच हिटर थे। पहली ही गेंद से बाउंड्री की कोशिश और श्रीलंका ने टाइटल जीता।

ऐसे बल्लेबाज बहरहाल आसानी से नहीं मिल रहे थे। हर्शल गिब्स और शाहिद अफरीदी ने हिटिंग की। सचिन तेंदुलकर और मार्क वॉ अपनी क्लासिक बैटिंग के साथ भी स्ट्राइक रेट बढ़ाने लगे। हिटर बने एडम गिलक्रिस्ट- वे टेस्ट में नंबर 7 थे पर वनडे में टॉप आर्डर में आ गए और इस खब्बू ने करियर में लगभग रन-ए-बॉल के साथ लगभग 10,000 रन बना दिए। ऑस्ट्रेलिया के लगातार तीन वर्ल्ड कप जीतने में वे एक खास नाम थे। 2003 वर्ल्ड कप फाइनल भारत भूलेगा नहीं- उनके 48 गेंद में 57 से ऑस्ट्रेलिया की पारी को ऐसा टेम्पो मिला कि मानो रन की बरसात हुई।

हर टीम ने कोशिश की ऐसे पिंच हिटर को ढूंढने की पर सही बल्लेबाज मिलना आसान नहीं था। इसीलिए कई फेल भी हुए। उसके बाद सहवाग और गेल का दौर आया। टी-20 क्रिकेट भी शुरू हो गई और इस फॉर्मेट में तो हर बल्लेबाज ‘पिंच हिटर’ होना जरूरी है तो ख़ास तौर पर वनडे के लिए अलग से पिंच हिटर की तलाश उतनी जरूरी न रही। सहवाग का टेस्ट, वनडे और टी20 इंटरनेशनल में क्रमशः 82.23, 104.33 और 145.38 का स्ट्राइक रेट यही तो साबित करता है। गेल टी20 क्रिकेट में 1050+ छक्के लगा चुके हैं- ये कोई मजाक नहीं। इंग्लंस की टीम में बेयरस्टो और ब्रूक यही तो कर रहे हैं।

एबी डिविलियर्स, आरोन फिंच, एलेक्स हेल्स, शाहिद अफरीदी, रोहित शर्मा और ग्लेन मैक्सवेल जैसे इसे नई ऊंचाई तक ले गए। 1992 वर्ल्ड कप में फील्डिंग प्रतिबंध से ये सिलसिला शुरू हुआ और मैच जीतने वाले स्कोर बड़े होते गए। समय और टी20 क्रिकेट ने इसकी ‘एक्सपायरी डेट’ लिख दी। इमरान खान ने इसे शुरू किया, मार्टिन क्रो इसे वर्ल्ड कप तक ले गए, सनथ जयसूर्या और रोमेश कालूविथराना ने लोकप्रिय बनाया पर पावर हिटिंग की दुनिया में पिंच-हिटिंग की आर्ट गायब हो रही है। रिंकू सिंह जैसे जब आईपीएल में लगातार 6 वाले शॉट लगाकर हैरान करते हैं तो वे पिंच हिटर हैं, इसे अब स्ट्राइक रेट से नापते हैं- इस नाम से नहीं और ऐसे में बुकिश बल्लेबाजी की चिंता किसे है? ये आज की क्रिकेट में कितनी ख़ास है- रिंकू उसकी मिसाल हैं। वे एक आईपीएल सीजन में इस रोल से सीधे टीम इंडिया में आ गए और सरफराज के हजारों रन बेकार हो गए।

90 के दशक के आखिर और 2000 के दशक की शुरुआत में आक्रामक बल्लेबाजों की भीड़ आ गई। कोच ग्रेग चैपल ने इसी दौर में इरफ़ान पठान को लगातार नंबर 3 बनाकर शायद उनके करियर को खत्म कर दिया और वे एक मिसाल बन गए- शायद, वनडे क्रिकेट में लगातार खेले पिंच-हिटर्स में से आखिरी थे। अब सब मशीनी है। सही मौके पर रन बनाने की पॉलिसी- इसीलिए नंबर 10 और 11 भी 6 लगाने की कोशिश करते हैं। पिंच-हिटिंग का महत्व आज भी है पर अब कोच उसके लिए खिलाड़ी तैयार नहीं करते- पिंच हिटर की जगह स्लॉगर फैशन में आ गए।

वैसे इसी संदर्भ में एक मजेदार बात ये है कि जिस टीम इंडिया को पहले दो वर्ल्ड कप में ‘अनाड़ी’ का टाइटल मिला- पहला पिंच हिटर प्रयोग भारत ने किया था पर तब कोई इस तरह के टाइटल से परिचित नहीं था। भारत ने अपने पहले मैच में गावस्कर और सोलकर के साथ ओपनिंग करते हुए 60 ओवर में सिर्फ 132-3 बनाए तो यूजीलैंड के विरुद्ध अगले ही मैच में गावस्कर के साथ फारूख इंजीनियर को ओपनर बना दिया और 230 रन बनाए 60 ओवर में। ये था सनसनीखेज प्रमोशन।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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