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अक्सर ये सवाल चर्चा में आता है कि भारत के टॉप क्रिकेटर विदेश में किसी भी टी20 लीग में क्यों नहीं खेलते? अब सब जानते हैं कि बीसीसीआई की पॉलिसी है कि अपने किसी खिलाड़ी को पेशेवर टी20 लीग में खेलने की इजाजत नहीं देंगे। कब और कैसे बनी थी ये पॉलिसी?

ये 2010 के आसपास की बात है। ऑस्ट्रेलिया में बिग बैश लीग (बीबीएल) को शुरू कर रहे थे तो क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के एक डायरेक्टर- डॉ. हैरी हरिनाथ ने बीसीसीआई को लिखा कि इस लीग में खेलने भारतीय खिलाड़ी भेजें- वे तो चाहते थे कि हर बीबीएल फ्रेंचाइजी में, कम से कम एक भारतीय क्रिकेटर हो। ख़ास तौर पर डॉ. हरिनाथ, ने अपने स्टेट न्यू साउथ वेल्स की सिडनी थंडर्स टीम के लिए रोहित शर्मा को मांग लिया। उन्होंने तब साफ़ कहा था- इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस ने किसे साइन किया है- कोई भी आए, चमत्कार हो जाएगा।

तब, सही मायने में पहली बार ये चर्चा हुई कि अगर भारतीय खिलाड़ियों को बीबीएल, या किसी और विदेशी लीग में खेलने दें तो क्या होगा? आम सोच ये थी कि इस से, उस लीग को मीडिया में ज्यादा देखा जाएगा या दूसरे शब्दों में उस लीग के मीडिया अधिकार की कीमत एकदम बढ़ जाएगी। बीसीसीआई को लगा कि इस तरह तो वे आईपीएल के सामने खुद ही एक प्रतिद्वंदी खड़ा कर देंगे।

चूंकि बात आईपीएल की भी थी- इसलिए बीसीसीआई ने बड़ी होशियारी से आईपीएल टीमों के मालिकों को भी इस चर्चा में शामिल कर किया। वे भी भला क्यों चाहते कि ‘उनके’ खिलाड़ी किसी और लीग में खेलें। इस मामले को यहीं और हमेशा के लिए खत्म करने के लिए, ये तय हुआ कि एक पॉलिसी बना दें कि किसी भी भारतीय खिलाड़ी को विदेशी लीग में खेलने की इजाजत नहीं देंगे। सब ने माना कि भारतीय क्रिकेट के लिए यह सही है।

उस दिन के बाद से, किसी ने भी, कोई भी दलील दी हो, बीसीसीआई ने इस पॉलिसी को नहीं तोड़ा- सिर्फ रिटायर हो चुके और महिला क्रिकेटरों के लिए इन विदेशी लीग में खेलने का रास्ता खुला रहा। तब असल में इन के बारे में तो सोचा भी न था। अब रिटायर क्रिकेटर भी बीसीसीआई के रडार में हैं और अब इन्हें एकदम तो वहां खेलने से रोक नहीं रहे- खेलना इतना मुश्किल बनाने की कोशिश है कि कोई खेल ही न पाए।

पिछले कई दिन से, मीडिया में, 7 जुलाई की बीसीसीआई की एपेक्स कॉउंसिल की मीटिंग का एजेंडा चर्चा में था और उसमें इस बारे में फैसला लेना/कोई साफ़-साफ़ पॉलिसी बनाना एजेंडा में था। अभी कोई पॉलिसी तो नहीं बनाई और ये काम वापस बीसीसीआई पर डाल दिया पर इतना जरूर तय हो गया कि ये जैसे अब खेल रहे हैं, वैसा नहीं चलेगा यानि कि खिलाड़ियों को, रिटायर होने के एकदम बाद- विदेशी टी20/10 लीग में नहीं खेलने देंगे।

अब तक असल में, इतनी टी20 लीग थीं ही नहीं कि रिटायर खिलाड़ियों के खेलने (और एक बड़ा चैक मिलने) की बात चर्चा में आती। लीग की गिनती लगातार बढ़ रही है और मौजूदा टॉप क्रिकेटरों की तुलना में, कुछ बड़ी उम्र के ये स्टार सस्ते भी पड़ते हैं- इसलिए इनकी भी दुकान चल रही थी। युसूफ पठान, युवराज सिंह, रोबिन उथप्पा, प्रज्ञान ओझा और सुरेश रैना जैसे खिलाड़ी खेल रहे हैं इनमें। यहां तक कि हरभजन सिंह को भी कॉन्ट्रैक्ट मिल गया- जीटी20 कनाडा लीग का।

मौजूदा किस्सा इस खबर से शुरू हुआ कि नई अमेरिकी लीग- मेजर लीग क्रिकेट में टेक्सास सुपर किंग्स के लिए अंबाती रायडू खेलेंगे। वे इंटरनेशनल क्रिकेट नहीं, आईपीएल खेल रहे थे और 2023 के फाइनल में भी एक केमियो पारी खेली थी। फाइनल के फ़ौरन बाद रिटायर हुए और कुछ ही दिन बाद उन्हें चेन्नई सुपर किंग्स की ही टीम, टेक्सास सुपर ने साइन अप कर लिया। 
ये खबर बीसीसीआई बोर्डरूम में कई लोगों को हजम नहीं हुई- हालांकि 37 साल के हैं रायडू जो न इंटरनेशनल और न बीसीसीआई की घरेलू क्रिकेट खेल रहे हैं  यानि कि उनके विदेश में खेलने से भारतीय क्रिकेट को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। दलील है कि रिटायर, होने पर भी खिलाड़ी घरेलू क्रिकेट में ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ झेलें यानि कि बेकार रहें। रायडू 2017 में आखिरी फर्स्ट क्लास मैच खेले थे और आख़िरी लिस्ट ए मैच नवंबर 2022 में पर आईपीएल जरूर खेल रहे थे- अब उससे भी रिटायर तो अब क्या करेंगे? कहां खेलेंगे? ये भी कि टेक्सास टीम में शामिल होने के लिए चेन्नई सुपर किंग्स का आकर्षक कॉन्ट्रैक्ट छोड़ा।

पता नहीं क्यों, बीसीसीआई ने ये नहीं समझा है कि भारतीय क्रिकेटर को जब आईपीएल से भी झटका लगता है- तब वह बाहर झांकता है। युवराज, रैना या उथप्पा के साथ यही तो हुआ। अगले आईपीएल तक रायडू 38 साल के हो जाते और अगर चेन्नई टीम ने बाहर का रास्ता दिखाया तो और दूसरी कोई टीम इस उम्र में उन्हें लेती नहीं (रैना, हरभजन और युवराज के साथ भी तो यही हुआ)- तो ऐसे में भारत से बाहर, अपने लिए मौका तलाशना कहां गलत है?

पूरी क्रिकेट की दुनिया ये जाती है कि बीसीसीआई का अपने मौजूदा क्रिकेटरों को विदेशी लीग में न खेलने देना वास्तव में इन क्रिकेटरों से एक्सपोजर का बहुत अच्छा मौका छीन रहा है पर बीसीसीआई के फैसले को कोई दलील न बदल पाई। अब रिटायर क्रिकेटरों को भी ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ की ऐसी जंजीर में बांध रहे हैं कि जब तक ये अवधि ख़त्म होगी- ये अपना क्रिकेट टच खो चुके होंगे। वास्तव में इनसे ये उम्मीद करना कि ये घरेलू क्रिकेट खेलें/उपलब्ध रहें- किसी युवा खिलाड़ी से खेलने का मौका छीनने जैसा होगा। तो क्या करेंगे ‘कूलिंग ऑफ़ पीरियड’ में ये क्रिकेटर?

बीसीसीआई का ये डर कि विदेशी टी20 लीग के चैक के चक्कर में कहीं युवा खिलाड़ी, ‘रिटायर’ होना न शुरू कर दें- सही है पर इस डर में हर किसी को न बांधो। युवराज, यूसुफ पठान, रैना, हरभजन या रायडू में से कौन जल्दी रिटायर हुआ? जब इनके लिए, हर तरह की क्रिकेट में रास्ते बंद हुए- तब ये रिटायर हुए। सिर्फ अपने कंट्रोल की जिद्द में बीसीसीआई इनके लिए ‘कूलिंग ऑफ़ पीरियड’ लागू कर रहा है।  

मौजूदा क्रिकेटर पहले ही रोक दिए, अब रिटायर भी रोक दिए हैं और वह दिन दूर नहीं जब महिला क्रिकेटरों को भी विदेशी लीग में खेलने से रोकेंगे। क्या हासिल होगा- ये सोचने की चिंता किसी को नहीं।  

  • चरनपाल सिंह सोबती

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