किसने सोचा था कि ऐसे दिन भी आएंगे कि 5 बार की चैंपियन मुंबई इंडियंस के इर्द-गिर्द बना ‘अपराजित’ का कवर इतनी बुरी तरह से उतरेगा कि वे ग्रुप राउंड खत्म होने से पहले ही प्ले ऑफ की रेस से बाहर हुआ करेंगे? उन्हें हरा नहीं सकते- अब ऐसा कहना तो भूल ही जाइए। यहां तक कि कोलकाता नाइट राइडर्स ने उन्हें 24 रन की हार के साथ वानखेड़े में 12 साल से न हरा पाने के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया। इस समय तक मुंबई इंडियंस 13 मैच में 4 जीत के साथ नंबर 9 जबकि नंबर 10 पंजाब किंग्स से एक मैच कम खेला है।
ऐसा नहीं कि ऐसा ख़राब दौर, इससे पहले कभी नहीं देखा- 2022 सीज़न में नंबर 10 थे पर 2023 में वापसी में कम से कम प्लेऑफ़ तो खेले। इस बार हार्दिक पांड्या को कप्तान बनाकर इसलिए नहीं लाए थे कि रिकॉर्ड इतना खराब रहे। किसी भी टीम के लिए इससे खराब बात और क्या होगी कि पहले 1-2 मैच के बाद ही उनका कप्तान थका-हारा और दबाव में फंसा दिखाई दे रहा था। इस साल वे चैंपियन नहीं, कंफ्यूज्ड टीम ज्यादा नजर आए और हर फ्रंट पर इतनी निराशा कि हर मैच बोझ सा बन गया। ऐसा हुआ क्यों?
ये तो तय है कि ऐसी हर चर्चा कप्तान हार्दिक पांड्या से शुरू होगी- थका और दबाव में तो साथ ही इस सवाल में भी घिरा कि क्या जीटी से मुंबई ट्रांसफर का फैसला सही लिया? बाकी का काम, हर मैच में हूटिंग और ख़राब कप्तानी ने कर दिया- यहां तक कि ‘अपने’ वानखेड़े स्टेडियम के दर्शकों ने भी न बख्शा। असर सीधे बैट और गेंद से प्रदर्शन पर आ गया- 13 मई तक 12 पारी में 200 रन और लगभग 11 इकॉनमी रेट से 13 मैच में सिर्फ 11 विकेट। हर कोशिश में नाकामयाब और गुजरात टाइटंस के साथ जीत प्रतिशत 70.96 महज एक इतिहास है
2020 में दुबई में बंद दरवाजों के पीछे टाइटल जीतने के बाद से जो हुआ है उसने तो यही सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगले मेगा ऑक्शन पर नई टीम बनाएंगे तो शायद हालात बदलें। हार्दिक कप्तान और ऑलराउंडर दोनों रोल में फेल। हार्दिक गुजरात टाइटंस के लिए पिछले दो सीज़न में एक स्ट्रीट स्मार्ट कप्तान थे- ऐसे कि जिससे बीसीसीआई को भी यकीन हो गया कि वह भविष्य के टीम इंडिया के टी20 लीडर हैं, लेकिन मुंबई इंडियंस में सब बदल गया। दबाव और उम्मीद में पहले मैच से ही कुछ न कुछ गलत होने लगा- वहां नई गेंद जसप्रीत बुमराह को न देकर खुद जिम्मेदारी ली जबकि बल्लेबाजी आर्डर कन्फ्यूज्ड और बिना किसी गेम प्लान वाला था। ठीक है अब कप्तानी, चाहे फ्रेंचाइजी क्रिकेट हो या इंटरनेशनल, टीवी पंडितों और सोशल मीडिया की वजह से बड़ी मुश्किल हो गई है पर हार्दिक ने जिसका सामना किया वह सबसे अलग है।
दोषी अकेले हार्दिक का नहीं- थिंक टैंक भी बिलकुल फेल रहा। हार्दिक को टीम में लाना और सीजन के लिए टीम स्ट्रेटजी बनाना- सब में बिलकुल फ्लॉप। इसी चक्कर में ध्यान खेल से ज्यादा हार्दिक-रोहित शर्मा समीकरण पर लग गया। बल्लेबाजों का बैटिंग नंबर और पावरप्ले में सबसे ज्यादा विकेट खोना उन्हें बचा न सका। ऐसा नहीं कि टॉप 5 ने तेजी से रन नहीं बनाए पर बड़े स्कोर नहीं बनाए और और लगभग 29 का मिला-जुला औसत सबसे खराब में से एक है।
इस तरह फ्लॉप बल्लेबाजी टीम की स्टोरी बन गई। जिस सीजन में बड़ी स्कोरिंग के रिकॉर्ड बने- एमआई के बल्लेबाज बस लाइनअप में ऊपर-नीचे होते रहे। ऐसे स्कोरिंग सीज़न में, फॉर्म में एक साथ गिरावट हैरान करने वाली है। यहां तक कि रोहित शर्मा ने भी एकदम फार्म गंवा कर टीम का भला नहीं किया। 12 मई तक 10 बल्लेबाज ने 425+ रन बनाए थे- इस लिस्ट में मुंबई इंडियंस का कोई बल्लेबाज नहीं है (सबसे बेहतर : तिलक वर्मा 416 रन)।
बुमराह का सही इस्तेमाल करने में नाकाम रही टीम। आईपीएल 2024 गेंदबाजी चार्ट में जसप्रीत बुमराह टॉप पर- 20 विकेट और इकॉनमी रेट 6.48 पर ऐसे गेंदबाज के साथ खेलने का भी टीम को कोई फायदा नहीं हुआ है। इसके उलट- पावरप्ले में मुंबई सबसे महंगे गेंदबाज वाली टीम और खुद कप्तान का 11+ का इकॉनमी रेट। बीच के ओवरों में ढेरों छक्के खाए और 10+ का इकॉनमी रेट। बुमराह को वह सपोर्ट नहीं मिला जो जरूरी था। टॉप गेंदबाज को भी सपोर्ट चाहिए- इसी टीम में लसिथ मलिंगा के साथ मिशेल जॉनसन, जॉनसन के साथ ट्रेंट बोल्ट और बोल्ट के साथ बुमराह थे- अकेला बुमराह क्या करेगा?
सबसे बड़ी बात ये की टीम मालिकों ने रोहित शर्मा की स्टोरी ठीक तरह नहीं लिखी। रोहित शर्मा का सवाल टीम को ले डूबा- गलत वक्त पर कप्तान बदला।उन्हें पिछले सीजन के बाद ही रिलीज कर देते तो इतना बवाल न होता- अब तो रोहित को भी कहीं का न छोड़ा था। उनके आख़िरी 6 मैच में सिर्फ 52 रन ने टीम को और मुश्किल में डाल दिया। सोचिए कि रोहित शर्मा के ग्राउंड पर ही किसी दूसरी टीम के कोच के साथ बात करने की पिक्चर आने पर ही ‘बगावत’ जैसी बात उठे तो टीम में कैसा माहौल होगा? यहां तक कि टीम रोहित शर्मा के सही इन-पुट के लिए भी तरसती रही।
जो टीम स्काउट बुमराह से लेकर पांड्या भाइयों तक नई टेलेंट खोजने में सबसे आगे थे- इस बार बैक-फुट पर हैं और अकेली टीम जिसकी नई टेलेंट खुद को साबित न कर पाई। विदेशी खिलाड़ी भी सही न चुनने का एमआई को नुकसान हुआ- टॉप आर्डर के विशेषज्ञ बल्लेबाज में कोई विदेशी प्रोफेशनल नहीं है। दक्षिण अफ़्रीकी डेवाल्ड ब्रेविस को नंबर 4 पर 2 मैच में मौका दिया अन्यथा टॉप 7 में ज्यादातर भारतीय थे। जब हर टीम ने विदेशी बल्लेबाज से फायदा उठाया- ये टीम जीरो रही।
क्या ये ड्रेसिंग रूम में एक टीम थी?
- चरनपाल सिंह सोबती