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2024 आया भी नहीं पर आईपीएल 2024 की बात शुरू हो चुकी है। इस रिपोर्ट के लिखने तक खिलाड़ियों को रिटेन/रिलीज करने और ऑक्शन के लिए रजिस्ट्रेशन की तारीख निकल चुकी है। 19 दिसंबर के नीलाम से पहले हर टीम को मालूम है कि उन्हें किस तरह के खिलाड़ियों की जरूरत है, बजट में किसे खरीद पाएंगे और किसे नहीं। ट्रेडिंग विंडो 12 दिसंबर तक खुली है। इसी ट्रेडिंग विंडो की दो ट्रांसफर देखकर समझ पर सवाल उठता है तो ये भी मानना पड़ेगा कि आईपीएल में भी फुटबॉल स्टाइल पर, खिलाड़ी खरीदने का सिलसिला शुरू हो चुका है। किसने कहा आईपीएल में हर लेन-देन में पूरी पारदर्शिता है- इस दलील की धज्जियां उड़ा दी हैं। बिशन बेदी ने एक बार कहा था कि उन्हें कभी समझ नहीं आया कि आईपीएल का पैसा कहां से आ रहा और कहां जा रहा है और वे सही थे। 

स्टार ऑलराउंडर हार्दिक पांड्या को मुंबई इंडियंस ने खरीद लिया मौजूदा टीम गुजरात टाइटंस से। सवाल ये है कि कोई भी टीम, बिना किसी फायदे, अपने हार्दिक जैसे कप्तान और खिलाड़ी को भला क्यों रिलीज करना चाहेगी और वह भी तब जबकि हार्दिक कामयाब कप्तान थे- ठीक है अपनी पिछली टीम मुंबई इंडियंस (एमआई) में लौट रहे हैं पर ये वही टीम है जिसने 2022 में उन्हें रिलीज कर दिया था। तब गुजरात की नई टीम ने चुना, 15 करोड़ रुपये की बड़ी फीस दी और आईपीएल कप्तानी का अनुभव न होने के बावजूद कप्तान बनाया। अब गुजरात ने पैसे के लिए उन्हें छोड़ दिया। विराट कोहली या धोनी जैसी मिसाल न हों तो आईपीएल में ‘लॉयल्टी’ की बात करना ही बेकार है।

गुजरात टाइटन्स ने दो शानदार सीज़न खेले- एक में चैंपियन तो दूसरे में फाइनल जबकि किस्मत साथ देती तो इसमें भी टाइटल उनका था। तब भी, ऑफिशियल तो यही है कि हार्दिक ने मुंबई इंडियंस में वापस लौटना चाहा और गुजरात टाइटन्स ने बिक्री पर मोहर लगा दी- दोनों फ्रेंचाइजी ने ऑल-कैश ट्रेड-ऑफ डील में हार्दिक को आपस में बदल लिया।

कभी वे मुंबई इंडियंस के लिए युवा खिलाड़ी थे और अब टीम इंडिया/आईपीएल स्टार और मुंबई इंडियंस को भविष्य के नजरिए से फायदा होगा। मुंबई का हाल का  रिकॉर्ड कोई अच्छा नहीं है और टीम में बड़े-बड़े खिलाड़ी (रोहित शर्मा, जसप्रीत बुमरा, सूर्यकुमार यादव और ईशान किशन जैसे) होने के बावजूद टीम जूझ रही थी। मुंबई इंडियंस अब उम्मीद लगा रहे हैं कि हार्दिक, उनके साथ 2022 से पहले जितने सफल थे (उनके साथ टीम ने चार टाइटल जीते)- दूसरे राउंड में और भी ज्यादा सफल रहेंगे।

ये सब तो ठीक है पर इसके लिए जो ताना-बाना बुना वह सवाल है। 15 करोड़ रुपये की कीमत का खिलाड़ी लेने के लिए मुंबई टीम के आईपीएल पर्स में इतना पैसा नहीं था- नतीजा कैमरून ग्रीन को रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर को तय 17.5 करोड़ रुपये की कीमत पर बेच दिया। कोई ये नहीं सोच रहा कि कैमरून ग्रीन पर रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर ने भला क्या सोच कर 17.5 करोड़ रुपये खर्च किए? वे अगर मुंबई द्वारा रिलीज कर दिए जाते तो नीलाम में इससे कहीं कम कीमत पर मिल जाते पर ऐसे में मुंबई के पास हार्दिक को लेने के लिए अभी कैश कहां से आता? ये ट्रांसफर का त्रिकोण है- अकेले हार्दिक की खरीद नहीं। 
हार्दिक की खरीद, शुद्ध 15 करोड़ की तय कीमत की नहीं है- 15 करोड़ रुपये+ कुछ रकम और इस ऊपर की रकम का आधा हिस्सा हार्दिक को मिला। कोई नहीं जानता कि ये रकम कितनी है। मजे की बात ये कि इस ऊपर की रकम के लिए, आईपीएल पर्स में पैसा होना जरूरी नहीं। यहां रिलायंस ग्रुप का पैसा काम आया। तो कैसे ये कह देते हैं कि आईपीएल में टीम बनाने के लिए सब बराबर हैं? 

जहां हार्दिक इन सालों में कामयाब आईपीएल कप्तान रहे, रोहित शर्मा नहीं (2020 में पांचवें टाइटल के बाद से)। आसार यही हैं कि हाल फिलहाल रोहित शर्मा ही कप्तान रहेंगे पर अगले आईपीएल तक 37 साल के हो जाएंगे और इस तरह मुंबई ने नए कप्तान की तैयारी शुरू कर दी। भारतीय क्रिकेट भी मदद कर रही है- रोहित टी20 खेल नहीं रहे जबकि हार्दिक (अगर फिट हुए) को कैरेबियन और यूएसए में टी20 वर्ल्ड कप में भारत का कप्तान माना जा रहा है। हार्दिक ‘भविष्य’ हैं- आगे तो ये टीम उनकी ही है।

इस पूरे एपिसोड में सबसे ख़ास मुद्दा वह ट्रांसफर फीस है जो कोई नहीं जानता। गुजरात टाइटन्स- नोट कीजिए कि ये किसकी टीम है? ये उन सीवीसी कैपिटल पार्टनर्स की टीम है जो एक प्राइवेट इक्विटी फर्म हैं और उनके पास कैश की कोई कमी नहीं। वे बिजनेस करते हैं- इसलिए भले ही हार्दिक को रिलीज करने में क्रिकेट को न देखा हो, मुनाफे को जरूर देखा होगा।

किसी ने ध्यान नहीं दिया पर सीवीसी ने स्पोर्ट्स में ऐसा पहली बार नहीं किया- 2017 में लिबर्टी मीडिया के फॉर्मूला 1 रेस को संभालने से पहले, सीवीसी 11 साल तक इस लीग के मालिक थे और एफ1 टीम ‘फोर्स इंडिया’ ने खुले आम उन पर आरोप लगाया था कि साजिश में रेस खराब कर रहे हैं और उन्हें सिर्फ पैसा दिखता है। 2016 में, दुनिया के टॉप ड्राइवरों ने सीवीसी की आलोचना की और बताया कि कैसे मुनाफे की पागल दौड़ में वे मोटर स्पोर्ट्स को कमजोर कर रहे हैं।

वे आईपीएल में क्रिकेट खेलने नहीं, रिटर्न की तलाश में आए हैं और ये टी20 लीग उनके लिए बिजनेस है। किसी भी पूंजीवादी मालिक की सोच यही होनी चाहिए। ऐसे में उस क्रिकेट का क्या करें जो अभी भी एक खेल है, लीग, जो लाखों लोगों को खुशी देती है और एक टूर्नामेंट जो दुनिया में सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट लीग है- इसमें पारदर्शी सिस्टम की बात क्यों करें जबकि पर्दे के पीछे कॉन्ट्रैक्ट हो रहे हैं। दूसरी बात- क्या खुद हार्दिक के शामिल हुए बिना ये ट्रांसफर संभव था?

आईपीएल का आधार ही यही था- नीलामी में सब टीम बराबर और इसका कोई महत्व नहीं कि आपके बैंक अकाउंट में कितना पैसा है, नीलामी के लिए आईपीएल पर्स ख़ास था। तब भी इस सिस्टम को तोड़ा गया और मजे की बात ये कि हर केस में मुंबई इंडियंस शामिल है- भले ये कीरोन पोलार्ड की नीलामी पर मुंबई इंडियंस, चेन्नई सुपर किंग्स, रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर और कोलकाता नाइट राइडर्स के बीच टकराव वाली स्टोरी हो रवींद्र जडेजा पर एक साल के प्रतिबंध की। अगर गुप्त ट्रांसफर फीस पर खिलाड़ी लिया जा सकता है तो सब टीम बराबर कैसे? जिसके पास पैसा है जीत उसी की। हार्दिक और मुंबई इंडियंस की स्टोरी में रवींद्र जडेजा पर तरस आता है- उनका कसूर क्या था? इन स्टोरी की चर्चा अलग से करेंगे। 

  • चरनपाल सिंह सोबती

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