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टीम इंडिया के कोच के बारे में अटकलें ख़त्म हुआ और बीसीसीआई ने चीफ कोच राहुल द्रविड़, के साथ-साथ गेंदबाजी कोच पारस म्हाम्ब्रे, बल्लेबाजी कोच विक्रम राठौड़ और फील्डिंग कोच टी दिलीप का कॉन्ट्रैक्ट भी अगले साल के टी20 वर्ल्ड कप बढ़ा दिया- सभी का कॉन्ट्रैक्ट 50 ओवर वर्ल्ड कप के साथ खत्म हो गया था। इसे, एक तरफ राहुल द्रविड़ और उनकी कोचिंग टीम पर विश्वास/भरोसा कह सकते हैं तो दूसरी तरफ बीसीसीआई को भी कोच के बारे में बड़े फैसले के लिए कुछ और महीने मिल गए।

फिर से पिछले रिकॉर्ड को नजरअंदाज कर हर उम्मीद उन पर और इस तरह राहुल द्रविड़ को नई चुनौती भी साथ-साथ मिल रही हैं। वर्ल्ड कप निकला नहीं कि ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध टी20 सीरीज आ गई पर द्रविड़ के लिए चुनौती दक्षिण अफ्रीका टूर है- 3 टी20ई और वनडे तथा 2 टेस्ट खेलेंगे। संयोग से उनके कोचिंग के पहले राउंड में भी पहली विदेशी चुनौती दक्षिण अफ्रीका टूर ही था और उसमें झटका लगा था। भारत में इंग्लैंड के विरुद्ध 5 टेस्ट की सीरीज जिसमें ‘बेज़बॉल’ का सामना और फिर जून में टी20 वर्ल्ड कप। इस तरह ये दूसरा राउंड, हर वक्त इस सवाल का जवाब मांगेगा कि कहीं उन्हें फिर से कोच बनाकर गलती तो नहीं की? इसीलिए उन्हें वह पूरा सपोर्ट स्टाफ दे दिया जिस पर उन्हें भरोसा है।

पिछले 10 साल में कोई भी आईसीसी ट्रॉफी न जीतने के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है पर इस दूसरे राउंड में भी द्रविड़ इस चुनौती से बच नहीं पाएंगे- कैरेबियन और यूएसए में टी20 वर्ल्ड कप। उस पर ये खबर भी लीक कि टी20 कोच के तौर पर पहली पसंद राहुल द्रविड़ नहीं, आशीष नेहरा थे। उनके इनकार पर ही द्रविड़ को ये ड्यूटी मिली यानि कि द्रविड़ पर दबाव डाल दिया। नेहरा आईपीएल विनर कोचिंग सेट-अप का हिस्सा रहे हैं इसलिए द्रविड़ को कुछ ख़ास स्ट्रेटजी अपनानी होगी।

पहला कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म होने पर द्रविड़ के एलएसजी मेंटर बनने की खबर आ रही थी- कम समय देना था और पैसा शायद ज्यादा मिलता। तब भी वे टीम इंडिया का कोच बनना मान गए। वे चुनौती से डरने वालों में से नहीं। जिम्मेदारी लेते हैं और इसीलिए वर्ल्ड कप में हर जीत के बाद तारीफ़ लेने किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में नहीं आए- फाइनल हारे तो जानते थे कि सवाल खिलाड़ी/कप्तान के मनोबल को और तोड़ देंगे और प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुद आए। वे जानते हैं टीम इंडिया का कोच कभी स्क्रूटनी से बच नहीं सकता।

सब जानते हैं कि टीम में बदलाव का दौर आ गया है- सब कुछ वर्ल्ड कप जैसा नहीं होगा। रोहित शर्मा और विराट कोहली के टी20 खेलने पर सवाल, दोनों की उम्र बढ़ रही है और नए/युवा खिलाड़ी टीम के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। यहां द्रविड़ के अनुभव की जरूरत है- ताकि बदलाव के दौर में टीम कमजोर/असंतुलित न पड़े। केएल राहुल वनडे में और सूर्या टी20 में दक्षिण अफ्रीका में कप्तान होंगे जो द्रविड़ के ‘विंग्स’ में तैयार होंगे आगे की और बड़ी चुनौती के लिए।

राहुल द्रविड़ जब खुद भारत के कप्तान थे तो ये सबक सीखा था कि ग्रेग चैपल जैसा एक सत्तावादी/तानाशाह कोच बनने से बचें। इसीलिए कभी खिलाड़ियों पर हावी नहीं हुए। टीम को गुटबाजी से बचाया हालांकि विराट और रोहित जैसे टॉप क्रिकेटर एक साथ खेल रहे हैं। कप्तान से ट्यूनिंग दिखाई पर ‘शास्त्री-कोहली’ जैसा ग्रुप नहीं बनाया। बीसीसीआई ने उन्हें चुनौती दी है कि आगे भी टीम को दबाव में ‘टूटने’ न दें।

ये भारतीय क्रिकेट के लिए कई सवाल का दौर है। द्रविड़ की कोचिंग स्टाइल पर जो आपत्ति थी, उनमें से ज्यादातर वर्ल्ड कप में बेहतर प्रदर्शन से दूर हो गईं पर द्रविड़ का आगे भी कोच बने रहना बहुत कुछ इस बात पर निर्भर था कि वे खुद क्या चाहते हैं?

वे जब 2021 में सीनियर टीम के कोच बने थे तो ये नई ड्यूटी उनकी पहली पसंद नहीं थी। तब भी, टीम के साथ खड़े रहे, आलोचना और हर वक्त की, काम पर निगरानी को झेला और अगर दूसरे राउंड के लिए न मानते तो भी कोई ये नहीं कहता कि वे भारतीय क्रिकेट को मंझधार में छोड़ गए। सीनियर टीम के कोच के तौर पर उनका रिपोर्ट कार्ड तो बनता ही रहेगा पर सबसे ख़ास है वे इस भूमिका में क्या योगदान दे पाए?

2021 टी20 वर्ल्ड कप में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद द्रविड़ कोच बने। ऐसा नहीं कि विराट कोहली-रवि शास्त्री असफल रहे थे और इसीलिए द्रविड़ के हर एक्शन की तुलना पिछले दौर से हुई। शुरू में नतीजा उम्मीद के मुताबिक नहीं था और चेतेश्वर पुजारा एवं अजिंक्य रहाणे की टेस्ट टीम में महीनों बाद वापसी ये संकेत थी कि युवा टेलेंट को सही तरह ग्रूम नहीं किया। शुभमन गिल, श्रेयस अय्यर और यशस्वी जयसवाल के अतिरिक्त और क्या?

2018 के आखिर और 2021 के कुछ महीनों में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में 6 टेस्ट जीतने के बाद, भारत से बाहर लगातार टेस्ट हार गए। जुलाई में बर्मिंघम में इंग्लैंड के विरुद्ध बचे आख़िरी टेस्ट की आख़िरी पारी में 378 रन का बचाव करने के लिए लगा टीम के पास कोई प्लान ही नहीं है और इंग्लैंड सिर्फ 76.4 ओवर में 3 विकेट के नुकसान पर ये रन बना गया।

टीम के पास जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद सिराज और मोहम्मद शमी जैसे गेंदबाज, तब भी भारत में स्पिन ट्रैक मांगे और टीम इंडिया के बल्लेबाज इन ट्रैक पर जूझते रहे। वर्ल्ड कप भारत में खेलने से वैसे भी टीम पर दबाव था और उस पर लग रहा था कि टीम के पास 3 विकेट जल्दी गिरने के बाद का कोई प्लान नहीं था। इस तरह आईसीसी ट्रॉफी का सूखा वे भी खत्म न कर पाए।

ये कहना ज्यादा ठीक होगा कि उनके साथ दो टीम वाली सीरीज तो अच्छी खेलते रहे, टीम नंबर 1 बनी पर आईसीसी ट्रॉफी ने परेशानी में कोई राहत नहीं दी। उनकी जगह कोई और कोच होता तो आलोचना की लिस्ट बड़ी लंबी होती पर वे राहुल द्रविड़ हैं इसलिए बात अलग रही और सबूत उनके लिए नया कॉन्ट्रैक्ट है।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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