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बीसीसीआई ने जर्मनी की स्पोर्ट्सवियर कंपनी एडिडास को टीम इंडिया का नया किट स्पांसर घोषित कर दिया। नाइके के बाद, किट स्पॉन्सर के तौर पर ऐसा पहला नाम जो टीम इंडिया की इमेज के साथ फिट बैठ रहा है- टॉप टीम, टॉप स्पांसर और सबसे ख़ास बात ये कि जिसका किट से कोई लेना-देना तो है।

नाइके भी ऐसा ही नाम थे पर उसके बाद तो मोबाइल प्रीमियर लीग (फैंटेसी लीग) के स्पोर्ट्स मर्चेंडाइज ब्रांड एमपीएल स्पोर्ट्स और किलर जीन्स (केवल किरण क्लोदिंग लिमिटेड की डेनिम ब्रांड जिसका वास्तव में जर्सी से कोई लेना देना ही नहीं था) जैसे नाम जुड़ते रहे। किलर के साथ कॉन्ट्रैक्ट इस साल 31 मई को खत्म हो रहा था और उससे पहले ही नया स्पांसर ढूंढ लिया।  स्पष्ट है बीसीसीआई को भी एक बेहतर नाम की तलाश थी।

एडिडास के साथ कॉन्ट्रैक्ट की रकम की सही जानकारी बीसीसीआई ने नहीं दी पर बाजार के सूत्रों के अनुसार- टीम इंडिया की इमेज बढ़ रही है पर कॉन्ट्रैक्ट की रकम घट रही है।  इसे 2019 के नाइके के कॉन्ट्रैक्ट का लगभग 50% मान रहे हैं- लगभग 85 लाख रुपये प्रति मैच, लगभग 15 करोड़ रुपये की सालाना रॉयल्टी और इस तरह कुल बन रहे थे 370 करोड़ रुपये के आस-पास हर साल। देखिए किट स्पॉन्सरशिप का सफर –

  • 2006 से पहले कोई अलग से किट स्पांसर था ही नहीं और टीम स्पांसर का लोगो ही जर्सी पर बीसीसीआई के लोगो के साथ लगता था।
  • पहले स्पांसर नाइके 2006 से 2020 तक का कॉन्ट्रैक्ट
  • उसके बाद एमपीएल स्पोर्ट्स नवंबर 2020 से दिसंबर 2023 तक 3 साल के लिए।
  • ये कॉन्ट्रैक्ट पूरा नहीं चला और बीसीसीआई को संकट से निकाला किलर ने।

संयोग से 2023 भारतीय क्रिकेट के लिए बड़ा ख़ास साल है जिसमें डब्ल्यूटीसी फाइनल और आईसीसी वर्ल्ड कप भी हैं तो एडिडास जैसे मशहूर सुपरब्रांड के साथ इस साल पार्टनरशिप बड़ा सही कदम है। वर्ल्ड कप के आसपास जर्सी की बिक्री एकदम बढ़ेगी और खेल की दुनिया में एक बड़े नाम वाला ब्रांड अपने बेहतर डिजाइनों के साथ जर्सी चाहने वालों को जरूर अपील करेगा। वे भारत की पुरुष, महिला और अंडर-19 टीम के लिए जर्सी, किट और अन्य मर्चेंडाइज डिजाइन करेंगे और बनाएंगे।

नया कॉन्ट्रैक्ट मार्च 2028 तक का है। इसमें  बीसीसीआई के लिए सभी मैच, ट्रेनिंग और ट्रेवल ड्रेस की सप्लाई भी वे ही करेंगे। जून 2023 से टीम इंडिया पहली बार तीन स्ट्राइप्स में नजर आएगी और वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल्स के दौरान अपनी नई किट से डेब्यू करेगी। इसमें  इंडिया ए और बी टीम तथा सभी टीम के कोच और स्टॉफ शामिल हैं।

क्रिकेट भारत में सबसे लोकप्रिय खेल बना हुआ है और भारत क्रिकेट में सबसे बड़ा बाजार है- ये बात अब सब जानते हैं। बीसीसीआई और एडिडास के बीच कॉन्ट्रैक्ट क्रिकेट को ग्राउंड के अंदर और बाहर दोनों जगह बढ़ावा देगा। एडिडास की खूबी ये है कि वे दुनिया की कुछ सबसे बेहतर टीमों को फुटवियर और ड्रेस सप्लाई करते हैं और एथलीट की जरूरत जानते हैं।

अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि बीसीसीआई के पिछले सभी किट स्पांसर के खट्टे-मीठे अनुभव को देखते हुए भी एडिडास ने ऐसे समय पर बीसीसीआई से नाता क्यों जोड़ा? जो अब एडिडास के लिए कहा जा रहा है- 2006 में लगभग ऐसा ही नाइके के बारे में कहा गया था पर वे भी बीसीसीआई के साथ ज्यादा नहीं टिके। दिसंबर 2005 में बीसीसीआई ने अमेरिकी स्पोर्ट्स वियर मेजर नाइके के साथ 5 साल का कॉन्ट्रैक्ट किया। तब दावेदारों में  एडिडास और रीबॉक भी थे- नाइके की ₹197 करोड़ (उस समय 43 मिलियन डॉलर) की विजेता बोली, एडिडास की ₹128 करोड़ ($28 मिलियन) और रीबॉक की ₹119 करोड़ ($26 मिलियन) की बोली से ज्यादा थी।

इस तरह जनवरी 2006 से, टीम इंडिया ने नाइके की जर्सी पहनना शुरू किया। वास्तव में, नाइके उस समय भारत में कोई  बड़ा नाम नहीं थे और उन्हें क्रिकेट की मदद की सख्त जरूरत थी। फरवरी 2006 में, वे भारतीय फुटबॉल टीम के भी किट स्पांसर बन गए- 7 साल के लिए। 2006 से, ऑफिशियल तौर पर टीम इंडिया की जर्सी और मर्चेंडाइज का भारत में रिटेल में बिकना शुरू हुआ- इससे पहले, ख़ास तौर पर मैच के दिनों में स्टेडियम के बाहर, सब नकली सामान बिकता था। वहां जर्सी मिलती थी 200-300 रुपये में पर नाइके ने रिटेल के लिए दो वेरिएंट जारी किए:

  • पहला- लगभग खिलाड़ियों की जर्सी जैसा और तब कीमत थी लगभग 3,000 रुपये।
  • दूसरा- टेकडाउन जिसका डिजाइन तो वही था पर कपड़ा और प्रॉडक्शन कुछ डाउनग्रेड और इस जर्सी की कीमत 2,200 रुपये थी।

ये दोनों स्टेडियम के बाहर बिकने वाली जर्सी से कहीं महंगे थे और यही इकोनॉमिक्स नाइके झेल नहीं पाई। रिटेल में माल नहीं बिक रहा था। तब भी भविष्य की बेहतर उम्मीद से वे बीसीसीआई के साथ जुड़े रहे। भारत 2011 वर्ल्ड कप जीता तो नाइके ने कॉन्ट्रैक्ट 5 साल और बढ़ा दिया- 270 करोड़ रुपये का। कोई बोली नहीं लगी क्योंकि नाइके के पास ‘राइट ऑफ़ रिफ्यूजल’ था। जब भारत ने 2016 टी20 विश्व कप की मेजबानी की तो नाइके ने 370 करोड़ रुपये का 4 और साल के लिए कॉन्ट्रैक्ट किया।

तब तक उनके सामने, भारत में व्यापार की सच्चाई आने लगी- लगभग एक तिहाई स्टोर बंद, मार्च 2015 में 100 करोड़ रुपये का घाटा रिपोर्ट किया, कई क्रिकेटरों के साथ बैट का कॉन्ट्रैक्ट आगे नहीं बढ़ाया। घाटा बढ़ता गया, स्टॉफ नौकरी खो रहा था और संयोग से इसी दौर में उनके प्रतिद्वंद्वी एडिडास और प्यूमा ने बड़े फायदे वाली बिक्री दर्ज की। नाइके ने 2020 में बीसीसीआई को बॉय-बॉय कर दिया। कोविड तो उन्हें और बर्बाद कर देता। वैसे तब तक रिटेल में, उनके स्टोर में, भारतीय क्रिकेट जर्सी 5,000 रुपये की हो चुकी थी। इस कीमत पर कितनी जर्सी बिकती?

क्या ये अनुभव एडिडास के काम आएगा?

चरनपाल सिंह सोबती

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