डब्ल्यूटीसी (वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप) फाइनल यानि कि लगभग दो साल चले मुकाबले का फाइनल। इस नाते तो ये फाइनल ख़ास है ही- नोट कीजिए ये भारत-ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट के 75 साल पूरे होने का भी प्रतीक है। भारत और ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट में पुराने देश पर इनके आपसी मुकाबले को जो रोमांच हाल के सालों में मिला है उसे किसी एशेज या भारत-पाकिस्तान सीरीज से कम नहीं मानते। इस भारत-ऑस्ट्रेलिया प्रतिद्वंद्विता ने, राजनीतिक उथल-पुथल की वजह से पाकिस्तान के विरुद्ध आपसी सीरीज में न खेलने की कमी को किसी हद तक पूरा कर दिया। तड़का जरूरी है और वह स्लेजिंग, सौरव गांगुली की ‘दादागिरी’, विराट कोहली और स्टीव स्मिथ के बीच फैब 4 में एक दूसरे से बेहतर रिकॉर्ड की कोशिश, ‘मंकी गेट’ और क्रिकेट में पावर का समीकरण बदलने की बीसीसीआई की कोशिशों ने लगा दिया। मजे की बात ये है कि इसी दौर में टेस्ट क्रिकेट में नंबर 1 के मुकाबले को भी इन्हीं दोनों टीमों ने चर्चित बनाया।
अब ये मुकाबला जा पहुंचा है इंग्लैंड में द ओवल और जून में इस प्रतिद्वंदिता का वह मुकाम देखने को मिलेगा जिसका दोनों देशों में बड़ी बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है- ये बात और है कि आईपीएल की वजह से हाल-फिलहाल भारत में इसकी चर्चा कम है पर ऑस्ट्रेलिया का अपने दो टॉप बल्लेबाज को इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट कॉन्ट्रैक्ट दिलाकर खेलने भेजना और अन्य कई क्रिकेटर का इंग्लिश पिचों पर ड्यूक गेंद से, फाइनल से बहुत पहले ही प्रेक्टिस शुरू कर देना इस बात का सबूत है कि वे इस ‘एक टेस्ट’ को कितनी गंभीरता से ले रहे हैं।
आईपीएल ने भारत के ज्यादातर क्रिकेटरों को ड्यूक गेंद से खेलना तो दूर, तैयारी के नाम पर ‘रैड चैरी’ का स्वाद तक नहीं चखने दिया। आईपीएल के बाद एक दम जागेंगे पर आईपीएल को भूलना आसान नहीं होगा- सबूत क्या ये नहीं कि अजिंक्य रहाणे को आईपीएल में उनका नया ‘अवतार’ देखकर टेस्ट टीम में चुन लिया और लोकेश की खराब फिटनेस ने आईपीएल के एक और प्रॉडक्ट ईशान किशन को टेस्ट टीम में उनकी जगह दिला दी।
भारत-ऑस्ट्रेलिया टेस्ट क्रिकेट का सिलसिला 1947-48 में शुरू हुआ और सबसे ख़ास बात ये कि सर डोनाल्ड ब्रैडमैन भी उस सीरीज में खेले थे। ये ऐसा पहला मौका था जब भारत ने इंग्लैंड के अलावा और किसी टीम के विरुद्ध ऑफिशियल टेस्ट क्रिकेट खेला। ब्रैडमैन अकेले, भारत के सीरीज 0-4 से गंवाने के लिए बहुत कुछ जिम्मेदार थे- 39 साल की उम्र में पहले टेस्ट में 185, तीसरे टेस्ट में 132 और 127*, चौथे में 201 और पांचवें में 57 रिटायर्ड हर्ट जैसे स्कोर उनके नाम थे।
इसके बावजूद भारत से खेलने में अगले कई साल में ऑस्ट्रेलिया ने कोई ख़ास उत्साह नहीं दिखाया और यही वजह है कि 1950 और 70 के बीच, इन दोनों के बीच आपसी क्रिकेट को कोई ख़ास चर्चा नहीं मिली। यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया के कई टॉप क्रिकेटर भारत आने से कतराते रहे। बिल लॉरी की 1969-70 के टीम के टूर से ये नजारा बदला। संयोग से इसी दौर में दोनों देशों के बीच राजनीतिक संबंध भी बेहतर हुए और इसने क्रिकेट में भी मदद की। उसके बाद तो कमाल ही हो गया
कई ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर के लिए भारत दूसरा ‘होम’ बना। क्रिकेट टूरिज्म को बढ़ावा मिला- आपसी व्यापारिक भागीदार बने। संयोग से भारत के इन सब सालों में बेहतर प्रदर्शन ने वास्तव में, बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी को आधुनिक क्रिकेट की एक सिग्नेचर सीरीज में बदल दिया- दुनिया भर में रुचि के मामले में एशेज को सीधे टक्कर।अब डब्ल्यूटीसी फाइनल संयोग से भारत-ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट संबंधों की 75वीं सालगिरह है।
क्या आपको 1982 का फीफा वर्ल्ड कप याद है? इटली और जर्मनी फाइनल खेले पर हर कोई जानता था कि ब्राजील और फ्रांस उस समय टॉप टीम थीं। ये डब्ल्यूटीसी फाइनल ऐसा कुछ नहीं कहता और भारत का आईसीसी टेस्ट रैंकिंग में नई नंबर 1 टीम बनना इसका सबूत है- भारत ने नंबर 1 से और किसी को नहीं ऑस्ट्रेलिया को हटाया। ऑस्ट्रेलिया 15 महीने बाद नंबर 1 से हटा और उसके बाद का ये फाइनल नंबर 1 और 2 के बीच मुकाबला है। दोनों टीम 7 जून से एक ‘अल्टीमेट टेस्ट’ में एक और नया अध्याय लिखने के लिए तैयार हैं।
पिछले दिनों के, सालाना रैंकिंग अपडेट से पहले, ऑस्ट्रेलिया (122) टॉप पर था और भारत 3 पॉइंट से पीछे (119)। अपडेट में भारत ने 15 महीनों में पहली बार ऑस्ट्रेलिया की बादशाहत खत्म की। इंग्लैंड नंबर 3 है- अपडेट से पहले, भारत से 13 पॉइंट पीछे थे और अब ऑस्ट्रेलिया से 2 पॉइंट पीछे। इसीलिए, अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए, सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया के लिए लक्ष्य- वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल में भारत को हराना। किसका होगा ये फाइनल?
– चरनपाल सिंह सोबती