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वेस्टइंडीज में टेस्ट खत्म होने पर ऑफिशियल तौर पर किसी को मैन-ऑफ-द-सीरीज़ घोषित नहीं किया पर अगर ये अवार्ड होता तो किसे चुनते? ज्यादातर वोट आर अश्विन के लिए हैं। सीरीज में 15.00 औसत से सबसे ज्यादा 15 विकेट और साथ में एकमात्र पारी में, त्रिनिदाद में 56 रन- 8 चौके के साथ। यहां चर्चा न तो ये अवार्ड है और न ही एक ऑलराउंडर के तौर पर उन का प्रदर्शन- यहां चर्चा है भारत में ऑफ स्पिन गेंदबाजी जिसकी अश्विन की मौजूदगी में कभी चिंता ही नहीं की।

पिछले कुछ सालों में, भारत के पास क्लासिक ऑफ स्पिनर की कोई कमी नहीं रही- गुलाम अहमद से इरापल्ली प्रसन्ना और एस वेंकटराघवन से हरभजन सिंह तक। उसके बाद- आर अश्विन और उनके बाद कौन? कोई जवाब नहीं है। कई जानकार तो उन्हें, इस परंपरा में आखिरी गेंदबाज गिन रहे हैं। ठीक है टीम पॉलिसी में वे विदेश में ज्यादा नहीं खेले लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में टेस्ट की बात करें तो अश्विन वह नाम रहा जिसे लाइन-अप बनाते हुए कप्तान के बाद सबसे पहले लिखा।

अश्विन ने, विदेश में अपने सबसे बेहतर टेस्ट प्रदर्शन का रिकॉर्ड (12-131) इसी वेस्टइंडीज टूर में, डोमिनिका के पहले टेस्ट में बनाया और भारत को पारी और 141 रन से जीत मिली। वेस्टइंडीज के बल्लेबाज, अश्विन और रवींद्र जड़ेजा की असाधारण स्पिन जोड़ी के सामने टिक ही नहीं पाए। इसी से ये चर्चा भी फिर से शुरू हो गई कि अगर इस साल वे ओवल टेस्ट में भी खेलते तो….?ऑस्ट्रेलिया वाले साफ़ लिख रहे हैं कि ओवल में अश्विन को न खिलाकर, भारत ने डब्ल्यूटीसी टाइटल उन्हें थाली में परोस कर दे दिया। वे नंबर 1 स्पिनर हैं और हर टेस्ट खेलने के हकदार। विराट कोहली या रोहित शर्मा को कब पिच देख कर चुना?

और भारत में? 2011, विरुद्ध वेस्टइंडीज दिल्ली टेस्ट- तब से भारत में, टीम इंडिया के 55 टेस्ट में जो 50 खिलाड़ी खेले हैं उनमें से सिर्फ एक ने सभी टेस्ट खेले और ये अश्विन हैं। उनके डेब्यू के बाद से- भारत में उनसे ज्यादा विकेट किसी ने नहीं लिए। कुल मिलाकर सिर्फ एक गेंदबाज के उनसे ज्यादा विकेट और उनके टेस्ट डेब्यू के बाद से 250 विकेट लेने वाले सिर्फ दो गेंदबाज का औसत उनसे बेहतर है।

विकेट की गारंटी और 27 के टेस्ट बल्लेबाजी के औसत का मतलब है टीम रन की उम्मीद कर सकती है। हाल फिलहाल बल्लेबाजी भूल जाएं तो भी एक ऑफ स्पिनर के तौर पर अश्विन की हिस्सेदारी देखकर उन्हें टेस्ट क्रिकेट के, अब तक के सर्वश्रेष्ठ, ऑफ स्पिनर में से एक कहना गलत नहीं होगा।

सवाल ये कि इसके बाद? इस समय वे 36 साल के हैं और डब्ल्यूटीसी का मौजूदा राउंड खत्म होने तक 39 के करीब होंगे- कब तक खेलेंगे वे और क्या कोई उनसे ये जिम्मेदारी लेने के लिए मौजूद है? अगर पिछले सालों की घरेलू क्रिकेट में ऑफ स्पिनरों की स्थिति और गिनती पर नजर डालें तो जवाब कोई बहुत अच्छा नहीं है। 2019/20 रणजी ट्रॉफी के बाद से, भारत में फर्स्ट क्लास क्रिकेट में टॉप 20 स्पिनरों में से (नार्थ-ईस्ट और प्लेट डिवीजन टीम के विरुद्ध मैच और टेस्ट मैच को गणना में न लेते हुए) सिर्फ 5 ऑफ स्पिनर सामने आते हैं और इनमें से भी एक ने तो 40 विकेट की गिनती को भी पार नहीं किया।
कोविड के बाद की घरेलू क्रिकेट में सबसे कामयाब ऑफ स्पिनर जलज सक्सेना- 103 विकेट, जिनमें से 89 विकेट गैर नार्थ-ईस्ट और गैर-प्लेट डिवीजन टीमों के विरुद्ध। वे अश्विन के सब्स्टीट्यूट नहीं हैं- उम्र 36 साल और इस साल उन्हें, जोनल सेलेक्शन कमेटी ने, जोन की टीम में भी न चुनकर (दलीप ट्रॉफी के लिए) ये संकेत दे दिया है कि भविष्य की तैयारी का वक्त आ गया है।

भारतीय उपमहाद्वीप में प्रथम श्रेणी क्रिकेट में, 28.09 या कम औसत से, 15 या ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज में सिर्फ 8 ऑफ-स्पिनर और इन में से सिर्फ दो 30 साल से कम उम्र के। यदि औसत कट-ऑफ 30 कर दें तो सिर्फ तीन 30 साल से कम उम्र के- सौराष्ट्र के युवराज डोडिया (22), सर्विसेज के पुलकित नारंग (28) और मुंबई के तनुश कोटियन (24)।

हाल के सालों में, दूसरे ऑफ स्पिनर की जरूरत में टीम इंडिया ने जयंत यादव/वाशिंगटन सुंदर को मौका दिया पर इनमें से यादव 33 साल के हैं और डब्ल्यूटीसी राउंड खत्म होने तक 35 के हो जाएंगे और सुंदर का नाम इंजरी लिस्ट में ज्यादा रहा है। क्या ये दोनों वास्तव में टेस्ट टीम में जगह के हकदार हैं? ऑफ स्पिनर की कमी चिंताजनक है और सच्चाई ये है कि टी20 क्रिकेट के दुनिया भर में हावी होने के साथ, पारंपरिक ऑफ-स्पिन में गिरावट ही आई है जो चिंताजनक है। इस तरह तो ये आर्ट खत्म ही हो जाएगी। कहां हैं ऐसे युवा स्पिनर जिन्हें भविष्य में टेस्ट खेलते देखें? अश्विन का 33वां 5 विकेट या 700 इंटरनेशनल विकेट का रिकॉर्ड जितनी बड़ी तारीफ़ है उससे बड़ी चिंता आगे के लिए ऑफ स्पिनर की तलाश है। 

  • चरनपाल सिंह सोबती

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