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जब भी इंग्लैंड के लिए खेले भारतीय मूल के क्रिकेटरों का जिक्र होता है तो आम तौर पर  रमन सुब्बा रो नहीं लिखा जाता- शायद इसलिए कि उनका अपना जन्म इंग्लैंड में ही हुआ। कैम्ब्रिज ब्लू थे- 13 टेस्ट इंग्लैंड के लिए खेले और इंग्लैंड में, मुख्यतः सरे और नॉर्थम्पटनशायर के लिए। एक शानदार और मजबूत डिफेंस वाले बल्लेबाज। उनका निधन हो गया है। सिर्फ 29 साल की उम्र में तो रिटायर भी हो गए थे-इसीलिए उनके 13 टेस्ट में औसत 46.85 और 3 शतक से ज्यादा क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेशन में रोल का ज्यादा जिक्र होता है। 1961 में घरेलू एशेज सीरीज में टॉप फार्म में थे- 2 शतक और 46.80 औसत से 468 रन (अपने आख़िरी टेस्ट में, ओवल में 7 घंटे 40 मिनट में 137 रन)। तब भी इसके बाद रिटायर हो गए।

सरे काउंटी क्रिकेट क्लब और टीसीसीबी के प्रेसीडेंट रहे और ईसीबी के भी। इससे ज्यादा- मैच रेफरी थे 1992 से 2001 के बीच 41 टेस्ट और 119 वनडे इंटरनेशनल में। फर्स्ट क्लास क्रिकेट रिकॉर्ड- 30 शतक के साथ 14182 रन। ये सभी मिलाकर देखें तो ये साफ़ हो जाता है कि कई साल तक इंग्लिश क्रिकेट से जुड़े रहे- भले ही रोल अलग थे। इसी में उनकी वह खासियत सामने आती है जिससे उनका जिक्र जरूरी हो जाता है। 

  • जन्म 1932 में स्ट्रैथम, लंदन में।
  • पिता वेंकट सुब्बा राव (बापटला, आंध्र प्रदेश से, पेशे से एडवोकेट- इंडियन हाईकमीशन के लिए काम करते थे) ने इंग्लैंड में एक ब्रिटिश लड़की डोरिस मिल्ड्रेड पिनर से शादी की और इंग्लैंड के ही हो गए।
  • बेटे को नाम तो भारतीय रमन सुब्बा ही दिया पर सरनेम इंग्लिश बनाने के लिए उसे राव (Rao) से रो (Row) बना दिया।
  • मृत्यु के समय 92 साल के थे- इंग्लैंड के जीवित सबसे बड़ी उम्र के क्रिकेटर।
  • सब कहते हैं जेफ्री बॉयकॉट खुट-खुट बल्लेबाज थे और कभी आसानी से आउट नहीं होते थे। रमन, उनसे भी बढ़कर थे और उन्हें आउट करना भी बड़ा मुश्किल था
  • कैम्ब्रिज में लॉ की पढ़ाई की और वहां से अच्छी क्रिकेट खेलना शुरू हुआ। 
  • 1958 में ओल्ड ट्रैफर्ड में न्यूजीलैंड के विरुद्ध टेस्ट डेब्यू। बार-बार चोट लगती रही और टीम से बाहर होते रहे। 
  • 1961 में जब रिटायर हुए तो कहा बिजनेस करेंगे। साथ में क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेशन में आ गए। 
  • दक्षिण अफ्रीका पर जब उनकी रंग-भेद पॉलिसी की वजह से प्रतिबंध लगा तो वे उन्हें जल्दी से फिर से कहने का मौका देने के बड़े विरोधी थे जिसके लिए उनकी बड़ी आलोचना हुई।
  • इसी तरह 1987 में पाकिस्तान में अंपायर शकूर राणा के साथ माइक गैटिंग के विवाद के बाद सुब्बा रो जब इंग्लैंड टीम के हर खिलाड़ी को 1000 पौंड का अतिरिक्त पेमेंट दिया तो इस पर बड़ा हंगामा हुआ। 
  • शुरू से अंपायरों के एक स्वतंत्र पैनल को सपोर्ट कर रहे थे और इस झगड़े ने उन्हें सही ठहराया और उसके बाद ही पैनल बना।
  • जब 1985 में ब्रैडफोर्ड सिटी स्टेडियम में आग लगी तो ओवल स्टेडियम को आधुनिक बनाना जरूरी हो गया था- सुब्बा रो ने 1988 में सर लियोनार्ड हटन के साथ मिलकर ‘सेव द ओवल अपील’ की और वह पैसा जुटाया जिससे आज का ओवल स्टेडियम मिला।
  • 1981-82 में भारत आई टीम के मैनेजर थे- अपने कप्तान की एक सुस्त सीरीज खेलने के लिए (कप्तान- कीथ फ्लेचर) आलोचना की और जब सीरीज में बॉयकॉट नखरे कर रहे थे तो उन्हें वापस भेज दिया पर वे ये नहीं पकड़ पाए कि बॉयकॉट चुपचाप एक रिबेल सीरीज की तैयारी कर रहे थे।
  • 1991 से 2000 के बीच मैच रेफरी रहे 60 टेस्ट और वनडे में और किसी को न बख्शा- यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज ग्लेन मैकग्रा पर वेस्टइंडीज के एक बल्लेबाज की ओर पिच पर थूकने के लिए जुर्माना लगाया।

सिर्फ इंग्लिश क्रिकेट नहीं, आज विश्व क्रिकेट जिस मुकाम पर है- इसकी शुरुआत का बहुत कुछ श्रेय सुब्बा रो को दिया जा सकता है। इसकी शुरुआत उनके सरे में एक मार्केटिंग सब कमेटी के को-फाउंडर होने से हुई। ये वो साल थे जब स्टेडियम में मैच देखने वाले कम हो रहे थे और पैसा कम हो रहा था। तब पैसा लाने के लिए, 1968 में ओवल में बाउंड्री पर विज्ञापन बोर्ड लगाने का फैसला लिया। यहां से ऐसे बोर्ड लगाने का सिस्टम शुरू हुआ था। इससे बड़े लोग नाराज हो गए पर सुब्बा रो अड़े रहे। वे ठीक थे और जब कुछ ही साल बाद एमसीसी ने लॉर्ड्स में भी ऐसे बोर्ड लगाए तो पूरी क्रिकेट की दुनिया को संदेश मिल गया था।

1968 में, उनकी कोशिशों से ही टीसीसीबी (टेस्ट एंड काउंटी क्रिकेट बोर्ड) बना, इसके 1985 से 1990 तक प्रेसीडेंट रहे, ये बाद में ईसीबी- इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड में बदला, और इसी से इंग्लैंड में क्रिकेट चलाने में काउंटी क्लब की बात सुनने लगे। क्रिकेट को पेशेवर ढंग से चलाने का सिलसिला यहीं से शुरू हुआ।

उनके नाम के साथ जुड़े एक अनोखे रिकॉर्ड का जिक्र बड़ा जरूरी है। अपनी आख़िरी टेस्ट पारी में अपना सबसे बड़ा टेस्ट स्कोर (137) बनाया- 1961 में द ओवल में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध। इस रिकॉर्ड, यानि कि आखिरी पारी में टॉप स्कोर को देखें तो ऐसे सबसे बड़े स्कोर का रिकॉर्ड वेस्टइंडीज के सेमोर नर्स के नाम है- 1968-69 में क्राइस्टचर्च में न्यूजीलैंड के विरुद्ध 258 रन। इसी तरह अप्रैल 2006 में चैटोग्राम में नाइटवॉचर के तौर पर जेसन गिलेस्पी 201* तक पहुंचे लेकिन ये उनका आखिरी टेस्ट साबित हुआ। इंग्लैंड के मौरिस लीलैंड (187), अफगानिस्तान के असगर अफगान (164), भारत के विजय मर्चेंट (154), जिम्बाब्वे के सीन विलियम्स (151), बांग्लादेश के महमूदुल्लाह (150), ऑस्ट्रेलिया के रेगी डफ (146) और इंग्लैंड के कॉलिन मिलबर्न (139) ने भी सुब्बा रो से बड़ा स्कोर बनाया जबकि वेस्ट इंडियन केनेथ वीक्स ने 137 रन बनाए थे। इनमें से सिर्फ विलियम्स फिर से खेल सकते हैं। इस संदर्भ में अपने आख़िरी टेस्ट में टॉप स्कोर देखें (आखिरी पारी में नहीं) तो इंग्लैंड के एंडी सैंडहैम का रिकॉर्ड है- 325 रन। 

चरनपाल सिंह सोबती

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