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2023-24 सीजन रणजी ट्रॉफी के लिए विवादास्पद रहा पर ज्यादा चर्चा ग्राउंड के बाहर हुई। एक मुद्दा था क्रिकेटरों के रणजी ट्रॉफी को नजरअंदाज करने का जिसके बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। इस बार बात करते रणजी ट्रॉफी के शेड्यूल की।

मुंबई में रणजी ट्रॉफी सेमीफाइनल के बाद शार्दुल ठाकुर ने कहा- खिलाड़ियों के लिए लगातार 10 ऐसे मैच खेलना जो एक-दूसरे से 3-3 दिन बाद ही शुरू हो रहे हों, बड़ा मुश्किल है और बीसीसीआई को इस पर सोचना चाहिए। जरूरत है लंबे ब्रेक की।

तमिलनाडु के कप्तान साई किशोर ने बताया कि मैचों के बीच, कम गैप तेज गेंदबाजों पर बड़ा असर डाल रहा है। यहां तक कि वे खुद स्पिनर होते हुए भी सिर्फ नाम की प्री-मैच ट्रेनिंग के साथ खेल रहे थे।

ये दोनों स्टेटमेंट टीम इंडिया के कोच राहुल द्रविड़ ने भी नोट कीं और धर्मशाला में भारत की सीरीज जीत के बाद, इस मुद्दे को उठाया और महसूस किया कि कड़ी मेहनत करने वाले खिलाड़ियों की बात सुननी चाहिए। इसीलिए कहा- देश के लंबे घरेलू सीज़न के सही रिव्यू की जरूरत है। वे भी मानते हैं कि घरेलू खिलाड़ियों के लिए सीज़न बड़ा मुश्किल वाला हो गया है। एक लंबा रणजी सीज़न और साथ में दलीप और देवधर ट्रॉफी को भी जोड़ दें तो …हालत तरस खाने वाली हो जाती है।

पिछले साल, दलीप ट्रॉफी जून में खेले- आईपीएल से लगभग एक महीने बाद और इसमें ज्यादातर वे खिलाड़ी खेले जो टीम इंडिया के दरवाजे पर दस्तक दे रहे थे। सच तो ये हैं कि सीजन के दौरान ऐसे खिलाड़ी ही सबसे ज्यादा क्रिकेट खेलते हैं। वे ज्यादा चुने जाते रहते हैं और संयोग से उन्हीं के खेल की बदौलत, उनकी टीमें सेमीफाइनल और फाइनल खेलती रहती हैं। ये ही फिर टीम इंडिया और इंडिया ए में आ जाते हैं। ऐसे क्रिकेटरों के लिए वास्तव में सीजन और भी मुश्किल हो जाता है।

बोर्ड भी ढेरों मैचों से परेशान जिसका नतीजा ये कि मैचों का चाहे जो शेड्यूल बना लें- गड़बड़ रह ही जाती है। इस बार उत्तर भारत में लंबे ठंड के सीजन ने मैचों पर खूब असर डाला और कई मैच बुरी तरह से प्रभावित रहे- कोहरे के कारण खेलना मुश्किल हो गया था। जम्मू, लाहली, चंडीगढ़, मोहाली, मेरठ और कानपुर जैसे कई शहर में मैच प्रभावित हुए- ऐसे दिन भी आए जब एक भी गेंद नहीं फेंकी गई। ये मसला वास्तव में कोई नया नहीं- हर साल सर्दी आ रही हैं और मैच इसी तरह से रुक रहे हैं। जब सुनील गावस्कर, बीसीसीआई की टेक्निकल कमेटी के चीफ थे तो उनकी कमेटी ने इसीलिए सर्दियों के दौरान (ख़ास तौर पर 15 दिसंबर से 15 जनवरी के बीच), उत्तर और मध्य भारत के कुछ शहरों में रणजी ट्रॉफी मैच न खेलने की बात कही थी। कहीं मैच पूरे नहीं हो पा रहे तो कहीं पहली पारी भी पूरी नहीं हो पाई और कुछ मैच तो एक दिन की क्रिकेट वाले रहे- ये हर सीजन की स्टोरी है। ये सुझाव फाइल में ही दबा रह गया।

बीसीसीआई के एक क्यूरेटर ने भी उत्तर भारत में सर्दियों के दौरान (ख़ास तौर पर जनवरी में) रणजी मैचों की मेजबानी को गलत बताया- मैच कभी भी समय पर शुरू नहीं होंगे और ख़राब रोशनी के कारण खेल भी जल्दी रुकेगा। उनके नजरिए में हल- उत्तर की टीमें अपने ‘अवे’ मैच जनवरी के पहले तीन हफ्ते के दौरान देश के अन्य दूसरे हिस्सों में खेल लें। कुल मिलाकर बात वही है कि किसी का भी फायदा नहीं हो रहा। वैसे भी जब मैच ही पूरा नहीं होता तो इन टीमों का ‘होम’ मैच खेलने का फायदा तो खत्म ही हो जाता है।

हाल के सालों में, रणजी ट्रॉफी में मैच की गिनती बढ़ने के बाद, ख़ास तौर पर, ये दिक्कत आ रही है। पहले, रणजी ट्रॉफी अक्टूबर के बीच शुरू होती थी और सिर्फ एक-दो मैच प्रभावित होते थे पर अब तो इन दिनों के, उत्तर भारत में खेले, इस चक्कर में फंसे शायद ही किसी मैच में स्पष्ट नतीजा मिलता है। ये भी आरोप है कि अब बोर्ड के लिए वाइट बॉल टूर्नामेंट, आईपीएल की वजह से, पहली वरीयता हैं। अगर विजय हजारे और सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी फरवरी-मार्च में खेलें तो उत्तर भारत की रणजी टीम भी ‘होम’ वाला फायदा उठा सकेंगी। बीसीसीआई बहरहाल इन वाइट बॉल टूर्नामेंट को आईपीएल ऑक्शन से पहले आयोजित करते हैं ताकि स्काउट्स को नई टेलेंट देखने का मौका मिले। इसलिए ये टूर्नामेंट कैलेंडर में ऊपर आ गए और रणजी ट्रॉफी को नीचे धकेल दिया।

करें भी क्या? हाल के सालों में मैच की गिनती एकदम बढ़ी है। अंडर-16, अंडर-19, अंडर-23 और रणजी ट्रॉफी एक साथ खेलें तो ग्राउंड तक नहीं मिल पाते। दिल्ली में रोशनआरा क्लब ग्राउंड सील होने के बाद डीडीसीए की हालत ये थी कि चूंकि अरुण जेटली स्टेडियम में विदर्भ के विरुद्ध सीके नायडू ट्रॉफी मैच था तो रणजी मैच मोहाली ट्रांसफर करना पड़ा।

खेर इन सभी दिक्कत को बीसीसीआई ने समझा है और ऐसे संकेत हैं कि अगले सीज़न के रणजी ट्रॉफी कैलेंडर में दिसंबर-जनवरी महीनों के दौरान भारत के उत्तरी हिस्से में कोई भी मैच शेड्यूल नहीं होगा। बीसीसीआई एपेक्स काउंसिल मीटिंग में इस मुद्दे पर चर्चा के बाद ये संकेत मिला है। आसार हैं अब रणजी ट्रॉफी को, पहले की तरह, सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी के बाद अक्टूबर में शुरू करेंगे। मैच इतने हैं कि शेड्यूल बनाना आसान नहीं होता। रणजी ट्रॉफी का हालिया सीजन 70 दिन चला- टीमें लगातार मैचों के लिए इधर-उधर भागती रहीं और फाइनलिस्ट मुंबई और विदर्भ दोनों ने कहा- सीजन ने थका दिया है। मैचों के बीच रिकवरी के लिए कोई समय नहीं। इसके उलट, 2013-14 सीज़न दिन में बड़ा था पर क्रिकेट 47 दिन ही खेले और बाक़ी दिन रिकवरी/आराम/सफर के। इस 99 दिन के टूर्नामेंट में अब दिन कम हो गए जबकि मैच और बढ़ गए। ऑस्ट्रेलिया में, शेफ़ील्ड शील्ड में, 6 टीम, लीग राउंड में 10 मैच खेलती हैं और टॉप 2 फाइनल तथा हर लीग राउंड के बीच 6-11 दिन की दूरी होती है। इंग्लैंड की काउंटी चैम्पियनशिप डिवीजन वन में 10 टीम 14-14 मैच खेलती हैं और टेबल-टॉपर चैंपियन।

बीसीसीआई ने एक पेनल भी बनाया है (राहुल द्रविड़, एनसीए चीफ वीवीएस लक्ष्मण, चीफ सेलेक्टर अजीत अगरकर और बीसीसीआई जीएम एबे कुरुविला) जो मिलकर बेहतर शेड्यूलिंग का रास्ता निकालने की कोशिश करेंगे। बीसीसीआई की तरफ से इस समय कुरुविला, घरेलू क्रिकेट के लिए जिम्मेदार हैं और वे खुश हैं कि उन्हें बेहतर सुझाव मिलेंगे। इसी तरह बीसीसीआई को ऑफ-सीजन की सालाना कप्तान और कोच मीट भी फिर से शुरू करनी चाहिए। आखिरी बार ये मीट 2016 में हुई थी- तब सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई कमेटी, बोर्ड चला रही थी यानि कि जो अधिकारी चुन कर आए उन्होंने उस मीट को खत्म कर दिया जिसमें वास्तव में सीजन में क्रिकेट खेलने वाले बेहतर आयोजन के लिए कीमती सुझाव देते हैं।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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