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हाल के सालों में भारत-पाकिस्तान क्रिकेट संबंध फिर से जोड़ने में, पाकिस्तान की तरफ अगर किसी ने, सही इरादे के साथ कोशिश की तो वे शहरयार एम खान थे। इस समय उन्हें याद करने की वजह- उनका लगभग 89 साल की उम्र में लाहौर में देहांत हो गया। उनका संक्षेप में परिचय :

  • पाकिस्तान के विदेश सचिव रहे
  • रवांडा में यूएनओ के विशेष प्रतिनिधि थे
  • लंदन में थर्ड सेक्रेटरी, ट्यूनिश में सेकंड सेक्रेटरी और 1987 में हाई कमिश्नर रहे
  • 1976 में जॉर्डन में राजदूत थे
  • 1999 से 2001 तक फ्रांस में राजदूत थे
  • दो बार पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) के अध्यक्ष रहे- दिसंबर 2003 से अक्टूबर 2006 तक और अगस्त 2014 से अगस्त 2017 तक
  • 1999 के भारत टूर और वर्ल्ड कप 2003 के दौरान पाकिस्तान टीम के मैनेजर थे
  • आम तौर पर, क्रिकेट खिलाड़ी भी उनके बारे में बहुत अच्छी बातें करते हैं- उन बहुत कम क्रिकेट अधिकारियों में से एक जिन्होंने पाकिस्तान क्रिकेट के लिए अच्छे और सही फैसले लिए
  • पाकिस्तान के शुरू के उन कुछ सरकारी अधिकारियों में से एक जो बेहद पढ़े-लिखे थे : भोपाल से, डेली कॉलेज, द फ्लेचर स्कूल, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी तक
  • पाकिस्तान में बर्मा शेल ऑयल में नौकरी के बाद जल्दी ही एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज के लिए क्वालीफाई कर लिया और 1957 में पाकिस्तान की फॉरेन सर्विसेज में शामिल हो गए।

भारत के राजघराने से संबंध था। पिता- नवाब मोहम्मद सरवर अली खान जो कुरवाई स्टेट के शासक थे और मां- राजकुमारी बेगम आबिदा सुल्ताना जो भोपाल के नवाब हाजी हाफिज सर मोहम्मद नवाब हमीदुल्ला खान की बेटी थीं। उनका बचपन भोपाल में ही बीता पर देश के विभाजन के 3 साल बाद- अपनी मां, के साथ पाकिस्तान चले गए। भोपाल का जिक्र आते ही ये अहसास हो जाना चाहिए कि वे भारतीय क्रिकेट के मशहूर पटौदी परिवार से संबंधित थे- भारत के पूर्व कप्तान मंसूर अली खान पटौदी उनकी मौसी के बेटे थे। लगभग हर जगह इनके रिश्ते में चचेरे भाई लिखा है जो गलत है।

रिटायर होने के बाद कुछ बेहतरीन किताबें लिखीं : द बेगम्स ऑफ भोपाल, द शैलो ग्रेव्स ऑफ रवांडा, क्रिकेट- ए ब्रिज ऑफ पीस, मेमॉयर्स ऑफ़ ए रिबेल प्रिंसेस, क्रिकेट काल्ड्रॉन (जानकार कहते हैं ये पाकिस्तान क्रिकेट पर लिखी सबसे बेहतरीन किताबों में से एक है) और शैडोज़ अक्रॉस द प्लेइंग फील्ड- भारत-पाकिस्तान क्रिकेट के 60 साल (इसमें उनके साथ लेखक थे शशि थरूर)।

अब अगर चर्चा क्रिकेट की करें तो पीसीबी चीफ के तौर पर अपने दूसरे टर्म के दौरान उन्होंने भारत से क्रिकेट संबंध फिर से जोड़ने की बड़ी कोशिश की पर अपनी सरकार से ही उन्हें पूरा समर्थन नहीं मिला। भारत में 2016 टी20 वर्ल्ड कप के दौरान पाकिस्तान खिलाड़ियों के खेलने पर उनकी सुरक्षा का मसला एक विवाद की शक्ल ले रहा था- तब इसे सुलझाने में बड़ी मेहनत की और आख़िरकार पाकिस्तान की टीम भारत आई।

2013 में वे भारत में पीएम मनमोहन सिंह से पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ के विशेष दूत के तौर पर मिले और भारत के साथ शांति के मसले पर पाकिस्तान की चाह का संदेश दिया। इसकी तुलना में अगली बार जब भारत-पाकिस्तान क्रिकेट संबंध फिर से जोड़ने के इरादे से ख़ास तौर पर भारत आए तब ये दावा करते रहे कि एग्रीमेंट के बावजूद 2015 और 2023 के बीच भारत के पाकिस्तान से खेलने से इनकार करने के कारण पीसीबी को 200 मिलियन डालर का नुकसान हुआ। इसे बीसीसीआई में किसने मानना था और वे खाली हाथ लौट गए। अक्टूबर 2015 में तब नई दिल्ली में दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने ये दावा भी किया था कि बाहरी दबाव में बीसीसीआई और भारत सरकार भारत-पाकिस्तान सीरीज का विरोध कर रहे हैं।

जब वे भारत में थे तो उनके इरादों (और बातों) के विरोध में कुछ लोग मुंबई में बीसीसीआई के ऑफिस में घुस गए और इसलिए उनकी बीसीसीआई चीफ शशांक मनोहर के साथ मीटिंग तक न हो पाई और वे निराश होकर लौट गए। उन दिनों में, भारत-दक्षिण अफ्रीका सीरीज से अंपायर अलीम दर (पाकिस्तान) को हटाने के आईसीसी के फैसले पर भी बड़ा बवाल हो रहा था। वे तो कहते थे कि भारत-पाकिस्तान क्रिकेट से रोमांचक कुछ भी नहीं- एशेज भी नहीं।

पीसीबी चीफ के तौर पर, उनके लिए सबसे बड़े संकट में से एक और था- 2006 में पाकिस्तान का ओवल टेस्ट, बिना पूरा खेले इंग्लैंड से हार जाना और वे ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अपने कप्तान का बचाव नहीं किया और जो हुआ उसके लिए इंजमाम-उल-हक को दोषी ठहराया।

ये दो संकट हटा दें तो उसकी तुलना में पाकिस्तान क्रिकेट की डेवलपमेंट के लिए उन्हें खूब याद किया जाता है। जब दिसंबर 2003 में बोर्ड चीफ बने तो पाकिस्तान क्रिकेट मैच फिक्सिंग के संकट में फंसी हुई थी। उसे संकट से निकाला। भारत का 1989-90 का पाकिस्तान टूर बड़ा ख़ास था और उस सीरीज से आपसी सहयोग का दौर शुरू हुआ। बांग्लादेश और श्रीलंका के साथ अगले 3 साल में नियमित सीरीज का एग्रीमेंट किया और 2011 वर्ल्ड कप की मेजबानी में हिस्सेदार बने। 2006 में, न सिर्फ ये दोनों देश, उपमहाद्वीप के बाकी क्रिकेट खेलने वाले देश भी एकजुट थे। दो साल बाद आईपीएल का जन्म हुआ और पाकिस्तान के खिलाड़ी भी खेले।

वे हालांकि खुद टी20 क्रिकेट को चाहने वालों में से एक नहीं थे पर बदलते समय को पहचाना और पाकिस्तान का पहला टी20 टूर्नामेंट शुरू किया- एबीएन-एमरो ट्वंटी20 कप (अब ये नेशनल टी20 कप है)। पाकिस्तान क्रिकेट में स्पॉन्सरशिप के बड़े कॉन्ट्रैक्ट लाए। क्रिकेटरों के सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट शुरू किए। बॉब वूल्मर को कोच बनाया। पाकिस्तान को उन सालों में (ऑस्ट्रेलिया के बाद) नंबर 2 टीम कहते थे।

मई 2015 में, जिम्बाब्वे को टूर के लिए राजी करना उनकी एक बड़ी कामयाबी था- इसी से 2009 के हमलों के बाद, पाकिस्तान में इंटरनेशनल क्रिकेट का सिलसिला शुरू हुआ। कई साल की कोशिश के बाद फ्रैंचाइज़ी टी20 लीग- पीएसएल शुरू हुई। जब अगस्त 2017 में बोर्ड से हटे तब बहुत फिट नहीं थे और इसीलिए क्रिकेट को अलविदा कह दिया। तब तक वह 83 साल के थे।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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