आईपीएल 2024 दो ख़ास और नई प्लेइंग कंडीशन के साथ खेल रहे हैं। ये तो सबने पढ़ा कि इस बार स्मार्ट रिप्ले सिस्टम देखने को मिलेगा पर वास्तव में ये है क्या? इससे कितनी मदद मिलेगी बेहतर अंपायरिंग में- ये तो समय बताएगा पर आईपीएल ने एक बार फिर से ये सबूत जरूर दिया है कि बेहतर क्रिकेट के लिए वे नई टेक्नोलॉजी अपनाने के लिए तैयार हैं।
अब ये देखते हैं कि वास्तव में ये स्मार्ट रिप्ले सिस्टम है क्या? आईपीएल 2024 शुरू होने से पहले 15 अंपायर (भारतीय और विदेशी भी) उस दो दिन की बीसीसीआई वर्कशॉप में (मुंबई में) मौजूद थे जो इस सिस्टम की पूरी जानकारी देने के लिए आयोजित की गई। सिस्टम की कामयाबी इसी बात पर निर्भर है कि अंपायर इसका किस तरह से फायदा उठाते हैं।
आसान भाषा में, स्मार्ट रिप्ले सिस्टम (SRS) का मतलब है- टीवी अंपायर के लिए, पहले के मुकाबले ज्यादा इमेज और ख़ास तौर पर, स्प्लिट-स्क्रीन इमेज देखने का मौका जिससे वे जल्दी और सही फैसला दे सकेंगे। इस सिस्टम के बारे में और खास बातें :
- टीवी अंपायर को दो हॉक-आई ऑपरेटरों सीधे इनपुट देंगे जो अब अंपायर के साथ एक ही कमरे में बैठे होंगे। टीवी ब्रॉडकास्ट डायरेक्टर, जो अब तक टीवी अंपायर और हॉक-आई ऑपरेटरों के बीच एक लिंक थे- इस सिस्टम में उनका रोल खत्म। इतना ही नहीं, टीवी अंपायर और हॉक-आई ऑपरेटर के बीच आपस में बातचीत भी सीधे ब्रॉडकास्ट होने की उम्मीद है जिससे, मैच देखने वाले को फैसले के लिए हुआ एक्शन बेहतर समझ आ जाएगा।
- पूरे ग्राउंड में हॉक-आई के 8 हाई-स्पीड कैमरे (दोनों स्क्वायर लेग पर दो-दो और सीधी बाउंड्री पर पिच के दोनों ओर दो-दो) होंगे और इनकी कैप्चर इमेज इन ऑपरेटर के पास होंगी।
- इस सिस्टम के तहत स्टंपिंग, रन-आउट, कैच और ओवरथ्रो के रेफरल पर ये इमेज देखेंगे।
- स्टंपिंग रेफरल के मामले में, टीवी अंपायर, इस सिस्टम में हॉक-आई ऑपरेटर से स्प्लिट स्क्रीन इमेज दिखाने के लिए कह सकते हैं। इसका मतलब है अब टीवी अंपायर साइड-ऑन और फ्रंट-ऑन दोनों कैमरों की इमेज एक ही फ्रेम में देख सकेंगे- इसे ट्राई-विज़न का नाम दिया जा रहा है ।
- स्टंपिंग रेफरल में, अगर गेंद के बैट से गुजरने पर गैप है तो अल्ट्रा एज के लिए कहेंगे ही नहीं और सीधे साइड-ऑन रिप्ले की जांच पर आ जाएंगे। यदि टीवी अंपायर को बैट और गेंद के बीच साफ़ गैप नहीं दिखता है, तभी वह अल्ट्रा एज को रेफर करेंगे।
- अब साइड-ऑन कैमरों के साथ-साथ, एक ही फ्रेम में, फ्रंट-ऑन से फुटेज (फ्रंट-ऑन कैमरा एंगल बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ये हटाए बेल्स की सटीक पिक्चर देता है) दिखाएंगे। पहले ब्रॉडकास्टर स्टंप कैम के फुटेज के साथ, हर तरफ से साइड-ऑन एंगल दिखाता था लेकिन स्टंप कैम लगभग 50 फ्रेम प्रति सेकंड की तेजी से रिकॉर्डिंग करता है जबकि हॉक-आई कैमरे लगभग 300 फ्रेम प्रति सेकंड पर रिकॉर्डिंग करते हैं, जिसका मतलब है कि अब अंपायरों को अपने फैसले के लिए सटीक फुटेज मिलेगा।
- ज्यादा और स्प्लिट इमेज देखने की सुविधा का फायदा बाउंड्री पर पहले फील्डर के हवा में लिए रिले कैच की मिसाल से समझते हैं- अब तक गेंद लपकने की इमेज देखते तो ब्रॉडकास्टर ठीक उस क्षण पर फील्डर के पैरों और हाथों की इमेज, स्प्लिट स्क्रीन पर नहीं दिखाते थे। इस सिस्टम में, एक ही स्प्लिट स्क्रीन में, गेंद कब पकड़ी/कब छोड़ी और उसके साथ पैरों की सिंक्रनाइज़ फुटेज, अंपायर को दिखा देंगे।
- इसी तरह, एक स्प्लिट स्क्रीन अब 4 रन की ओवर थ्रो के मामले में, जब फील्डर ने गेंद छोड़ी तो बल्लेबाजों ने क्रॉस किया था या नहीं- ये अब एक ही इमेज में नजर आ जाएगा (ज़रा सोचिए- अगर 2019 वर्ल्ड कप फाइनल में ये सिस्टम होता तो जो ओवर थ्रो का विवाद हुआ- उसका क्या होता?)। पहले टीवी अंपायर को ऐसी इमेज एक साथ देखने को नहीं मिलती थीं क्योंकि ब्रॉडकास्टर दो इमेज को मिक्स नहीं कर पाते थे। आईपीएल 2023 से पहले तक, हॉक-आई कैमरों का बॉल ट्रैकिंग और अल्ट्रा एज के लिए ही इस्तेमाल होता था।
- किसी भी ऑन-फील्ड रेफरल के लिए, एलबीडब्ल्यू और एज के रिव्यू को छोड़कर, ब्रॉडकास्टर आम तौर पर अपने खुद के कैमरे की फुटेज इस्तेमाल करते थे। इसमें स्टंपिंग, रन-आउट, कैच और ओवरथ्रो के रेफरल शामिल थे।
- बिल्कुल जमीन के करीब लपके कैच के, अब तक ऐसे कई फैसले रहे हैं जो टीवी अंपायर के लिए बहस बने क्योंकि जिस वीडियो पर वे फैसला दे रहे थे, वह खुद स्पष्ट नहीं थी। पुराने सिस्टम में, टीवी अंपायर, टीवी डायरेक्टर को उपलब्ध सबसे बेहतर एंगल की इमेज के लिए कहते थे ताकि यह पता चल जाए फील्डर के गेंद पकड़ने से पहले, गेंद टर्फ पर लगी थी या नहीं? यहां तक कि ज़ूम-इन इमेज भी हमेशा कुछ साफ़ नहीं दिखा पाईं। अब, इस सिस्टम के तहत, हॉक-आई फ्रंट-ऑन और साइड-ऑन एंगल से इमेज सीधे एक ही फ्रेम में आ जाएंगी। इसके बाद टीवी अंपायर किसी भी एंगल की इमेज को और ज़ूम इन करना चुन सकता है।
- इंग्लैंड में, द हंड्रेड में ये रेफरल सिस्टम प्रयोग हो चुका है।
टी20 क्रिकेट में खेल की तेजी का महत्व बहुत ज्यादा है और स्मार्ट रिव्यू सिस्टम का मतलब है- कम से कम समय में, सही फैसला। एक और अच्छा उदाहरण एलबीडब्ल्यू रिव्यू है। अब तक के प्रोटोकॉल में टीवी अंपायर को शुरू में स्पिन विजन, दिखाते थे- ये उस एक कैमरे से मिलता है जो पिच के दोनों तरफ बाउंड्री के बाहर स्टंप्स के सामने रहता है। अगर गेंद, बैट के करीब है, तो टीवी अंपायर अल्ट्रा एज की जांच के लिए कहते थे और जब ये तय हो गया कि इसमें बैट शामिल नहीं तो वह बॉल ट्रैकिंग जांच के लिए कहते हैं। इस सिस्टम में जैसे ही हॉक-आई ऑपरेटर को पता चला कि गेंद लेग के बाहर पिच हुई है, तो वह फौरन टीवी अंपायर को बताएगा और ऐसे में वे सीधे बॉल ट्रैकिंग पर आ जाएंगे।
इस सिस्टम की चर्चा में एक और नई प्लेइंग कंडीशन को सही चर्चा मिली ही नहीं। इस आईपीएल से गेंदबाज अब एक ओवर में, एक नहीं, दो बाउंसर फेंक रहे हैं। टेस्ट और वनडे इंटरनेशनल में प्रति ओवर दो बाउंसर की इजाजत है पर टी-20 इंटरनेशनल में आईसीसी की तरफ से प्रति ओवर सिर्फ एक शॉर्ट बॉल की इजाजत है।
बैट और गेंद के बीच, ग्राउंड में बराबरी के लिए ये बदलाव गेंदबाजों को, बल्लेबाजों के सामने मुकाबले का एक और मौका है। भारत की घरेलू टी20 चैंपियनशिप, सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी में एक्सपेरिमेंट के बाद, अब इसे आईपीएल में लागू किया है।
इस बदलाव पर हर्षल पटेल (पंजाब किंग्स) का कहना है- ‘यह बहुत बड़ा फायदा है और सबसे ख़ास ये कि एक ओवर में किसी भी समय ये फेंक सकते हैं।’ डेल स्टेन का मानना है- ‘दो-बाउंसर की कंडीशन से स्कोर पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा और अभी भी टीमों को 180, 190, 200 का स्कोर बनाते देखेंगे। ऐसा नहीं है कि टीमें 120 पर ऑलआउट हो जाएंगी।’ हां इससे ये फर्क पड़ेगा कि टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाज के पास सेट होने के लिए जो बहुत सारी गेंदें होती हैं- टी20 में नहीं मिलेंगी।
इस बात की जरूर हैरानी है कि वाइट बॉल इंटरनेशनल क्रिकेट के लिए आईसीसी के हालिया बदलाव के बावजूद, आईपीएल ने स्टॉप-क्लॉक कंडीशन को लागू नहीं किया है। देख लीजिए- लगभग हर मैच तय समय के बाद खत्म हो रहा है।
- चरनपाल सिंह सोबती