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 ट्रैविस हेड के शानदार 137 रन और अपने तेज गेंदबाजों के प्रदर्शन की बदौलत ऑस्ट्रेलिया ने अहमदाबाद में वर्ल्ड कप फाइनल जीतकर अपना 6वां टाइटल हासिल किया। ये वही ट्रैविस हेड हैं जिनके जून में वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल में 163 रन ने भारत से टाइटल छीन लिया था- इसका मतलब है भारत के विरुद्ध इस साल की दूसरी असाधारण पारी। नोट कीजिए- जिस पारी में ऑस्ट्रेलिया के बाकी बल्लेबाजों ने 138 गेंद में 3/86 रन बनाए, हेड ने 120 गेंद में 137 रन।

ये क्यों कोई नोट नहीं कर रहा कि लगभग 3 वर्ल्ड कप तो हो गए टीम इंडिया को कोई ढंग का ऑलराउंडर नहीं मिला और हार्दिक पांड्या, रवींद्र जड़ेजा, विजय शंकर, स्टुअर्ट बिन्नी, शार्दुल ठाकुर, वॉशिंगटन सुंदर, आर अश्विन जैसे कुछ और को आजमाया। ऑलराउंडर टीम के बेहतर संतुलन के लिए बहुत जरूरी है।

2015 के बाद से वनडे में पावरप्ले आने से, कामचलाऊ गेंदबाज का कामयाब होना बड़ा मुश्किल सा हो गया है। इसीलिए नोट कीजिए- अपनी टीम के लिए, बल्लेबाजी में टॉप 6 का गेंदबाजी का हिस्सा लगातार कम हो रहा है- जो 2011 वर्ल्ड कप में 4960/25425 (19.5%) था वह 2023 वर्ल्ड कप में 3852/25399 (15.2%) रह गया और इनके बीच 2015 में 18.6% और 2019 में 17.3% था। और देखिए- 1996 में ये हिस्सा 27.8% था। दूसरे शब्दों में- टॉप 6 ने 2023 वर्ल्ड कप में 50 में से औसतन 7.3 ओवर फेंके- 1996 में ये गिनती 14 ओवर और 2011 में 9.5 ओवर थी।

इसीलिए टीम इंडिया की वर्ल्ड कप शुरू होने पर सोच थी कि मिडिल आर्डर में हार्दिक पांड्या और रवींद्र जडेजा के खेलने से बल्लेबाजी तो बेहतर होगी ही, नंबर 8 पर शार्दुल ठाकुर को खिला लेंगे। ठाकुर और पांड्या मिलकर 5 वें गेंदबाज के ओवर बांट लेंगे। यहां तक कि पांड्या की मौजूदगी ने, जरूरत में, तीसरे स्पिनर के तौर पर आर अश्विन की भी जगह बना दी। अब गड़बड़ ये हुई कि पांड्या को चोट लग गई तो एक नहीं दो सब्स्टीट्यूट ढूंढने पड़े- सूर्यकुमार यादव नंबर 6 और मोहम्मद शमी नंबर 8 पर आ गए। नतीजा- कागज़ पर नंबर 6 पर बल्लेबाजी और नंबर 8 पर गेंदबाजी बेहतर हो गई लेकिन इससे गड़बड़ ये हुई कि अब निचले मिडिल आर्डर में बैट और गेंद दोनों के साथ उपयोगी योगदान देने वाले 3 से घटकर सिर्फ 1 रह गए।

इस गड़बड़ के बावजूद टीम इंडिया का सितारा ऐसा चमका कि ये कमजोरी नजरअंदाज ही हो गई। किसी दिन तो इसे झटका लगना ही था- खासकर पहले बल्लेबाजी करते हुए। फाइनल में यही हुआ- जैसे ही पहली 61 गेंद में 3 विकेट (भले ही 81 रन पर) गिरे टीम इंडिया पर लंबी टेल का साथ खेलने का दबाव हावी हो गया। उस पर ऑस्ट्रेलिया की बेहतर गेंदबाजी और धीमी विकेट यानि की टीम इंडिया अपने आप बैक-फुट पर आ गई।

साफ़-साफ़ कहें तो जो दवाई टीम इंडिया पिछले कुछ मैचों में दूसरी टीमों को पिला रही थी- फाइनल में ऑस्ट्रेलिया ने टीम इंडिया को पिला दी। भारत के गेंदबाज असल में आक्रामक लेंथ या लाइन से गेंदबाजी नहीं कर रहे थे- वे लगातार अच्छी लेंथ से गेंद फेंक रहे थे और पिच मदद कर रही थी। इससे हुआ ये कि रन बनाने की कोशिश में बल्लेबाज गलती करते थे और इस इंतजार से विकेट मिल रहे थे। ये पॉलिसी ऑस्ट्रेलिया ने पकड़ ली और उनके 3 तेज गेंदबाज मिलकर 7 विकेट ले गए।

जब भारत ने गेंदबाजी की, तो अब चूंकि लक्ष्य मालूम था और नजर आ रहा था कि ऑस्ट्रेलिया को सिर्फ 5-6 के रन रेट की जरूरत है तो ऐसे में शुरू से अटैक के मूड में आना पड़ा। यही वजह है कि रोहित शर्मा ने मोहम्मद शमी को मोहम्मद सिराज से पहले नई गेंद दे दी। छोटा लक्ष्य और उसे हासिल करने से ऑस्ट्रेलिया की लंबी बल्लेबाजी को रोकना था तो उन्हें आउट करना जरूरी था।

बाकी की कसर ट्रैविस हेड ने पूरी कर दी। 2023 तक, ट्रैविस ने भारत के विरुद्ध जो कुल 15 पारी (10 टेस्ट+5 वनडे) खेली थीं उन में से सिर्फ एक में 100 गेंद खेले थे- 2023 में 12 में से 3 पारी में ऐसा कर चुके हैं। हेड एक आक्रामक बल्लेबाज है, जोखिम लेता है और अगर 100+ गेंद टिक गया तो बड़े स्कोर तक पहुंचेगा ही- 2023 की ऐसी 3 पारी में, हेड ने 90* (टेस्ट बचाने के लिए अहमदाबाद में), 163 (वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल में) और 137 (वर्ल्ड कप फाइनल) बनाए।

अगर फाइनल से पहले का रिकॉर्ड सही तरह देखते तो ऑस्ट्रेलिया के पास भारत को हराने के जो तरीके थे- उससे कहीं ज्यादा तरीके भारत के पास उन्हें हराने के थे। इस रिकॉर्ड के नशे में सब ये भूल गए कि ऑस्ट्रेलिया के पास ऐसे खिलाड़ी थे जो अपने ‘सबसे बेहतर दिन’ में मैच पर अपने प्रदर्शन से असर डाल सकते हैं- ऑस्ट्रेलिया के टॉप 3 और ग्लेन मैक्सवेल। लंबे टेलर-वॉ-पोंटिंग युग से तुलना करते-करते ये कहने की आदत सी हो गई है कि मौजूदा ऑस्ट्रेलियाई टीम बहुत अच्छी नहीं- डब्ल्यूटीसी फाइनल और 2023 एशेज में भी यही कहते रहे और ऑस्ट्रेलिया ने वहां भी ‘धोखा’ दिया। टीम इंडिया ने उनकी पूरी मदद की- 3 विकेट खोने के बाद एकदम डिफेंसिव हो गए। जो पक्का ‘इरादा’ हेड की बल्लेबाजी में था- किसी भारतीय बल्लेबाज ने नहीं दिखाया।

आपने नोट किया होगा कि फाइनल से पहले सिराज की जगह अश्विन के खेलने की चर्चा थी- ये बेबुनियाद नहीं थी। उस पर, शमी नई गेंद से एडजस्ट करने में जूझते रहे। इस तरह नई गेंद का जो फायदा सिराज उठा सकते थे वह निकल गया पर रोहित की शमी को जल्दी अटैक पर लगाने की कम स्कोर का बचाव करने में मजबूरी को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते।

मैच भारत की पकड़ से तब निकला जब रोहित और विराट के विकेट गिरे-  रोहित आउट हुए, तब भी 280 रन बनाने का मौका था लेकिन विराट आउट हुए, तब नहीं था। केएल राहुल और विराट ने पावरप्ले के बाद धीमी बल्लेबाजी की। मार्नस ने भी यही किया पर उनके पार्टनर ने नहीं। इसका मतलब है- राहुल या विराट में से किसी एक को ज्यादा जोर लगाना चाहिए था। 

जडेजा का प्रमोशन बड़ा दिलचस्प रहा। ये स्थिति ऑस्ट्रेलिया टीम की होती तो यहां वे मैक्सवेल को भेजते क्योंकि रन रेट तेज करने की जरूरत थी। भारत ने स्काई को रोक लिया। शायद पहली पारी में स्ट्राइक रोटेट करना और बाउंड्री लगाना मुश्किल हो रहा था तो ऐसे में स्काई और जडेजा से जिस बल्लेबाजी की उम्मीद थी, वह नहीं मिल पाई। केएल और कोहली ने कोई  जोखिम नहीं उठाए जो वे ले सकते थे। यहां समझ में आया कि नंबर 6 पर हार्दिक और 8वें नंबर पर शार्दुल क्यों जरूरी थे।

खैर मैच के बाद इस तरह का डीएनए जितना आसान है- खेलना उतना मुश्किल। इसलिए ये मैच दो टॉप टीम के बीच एक ऐसा मुकाबला था जिसकी चर्चा आगे भी होती रहेगी।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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