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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस साल 30 नवंबर को नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में दिनेश लाड को द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया। सालों की कड़ी मेहनत के बाद, उनकी उपलब्धियों को आखिरकार पहचाना गया और क्रिकेट में योगदान के लिए 2022 के इस लाइफटाइम पुरस्कार के सम्मान के अतिरिक्त, एक कोच के तौर पर उनका सबसे बड़ा और आसान परिचय ये है कि वे रोहित शर्मा के कोच थे। ये भी कहा जा सकता है कि क्रिकेट में रोहित शर्मा की कामयाबी के ग्राफ ने कोच दिनेश लाड को भी मशहूर कर दिया।

इस रिश्ते की सबसे मशहूर स्टोरी ये है कि वे नहीं होते तो रोहित, स्वामी विवेकानंद स्कूल में नहीं पढ़ते क्योंकि लगभग 300 रुपये की फीस रोहित के उन चाचा के लिए बहुत ज्यादा थी- जिनके पास रोहित रहते थे। शार्दुल ठाकुर की कहानी भी कुछ ऐसी ही है- उन्हें अपने घर में रखा ताकि वे हर रोज कई घंटे, कोचिंग के लिए ट्रैन के सफर में खराब न करें। इस सब के बावजूद कभी ये दावा नहीं किया कि उन्होंने रोहित शर्मा/शार्दुल का करियर बनाया। वे तो गर्व से ये कहते हैं कि रोहित में इतनी टैलेंट थी कि वह किसी भी तरह, किसी भी कोच के साथ डेवलप कर सकते थे पर उन्हें खुशी है कि वे उसे गाइड कर सके।

सिर्फ रोहित शर्मा नहीं, मुंबई के अनगिनत युवा क्रिकेटरों को कोचिंग दी और सबसे ख़ास बात ये कि पिछले 26 साल से मुफ्त कोचिंग दे रहे हैं- जहां जरूरी हो, अपने घर पर ठहराने का इंतजाम कर देते हैं और इसी तरह स्कूल फीस माफ। एक मजेदार बात वे जरूर बताते हैं- वे सबसे पहले स्कूली स्तर क्रिकेट में रोहित की गेंदबाजी से प्रभावित हुए थे पर जब उन की बल्लेबाजी को देखा तो वहां से सही कोचिंग शुरू हुई। टेस्ट और लिमिटेड ओवर क्रिकेट दोनों में रोहित टॉप बल्लेबाज में से एक बने।

इतने बड़े और मशहूर कोच पर अपनी कोई क्रिकेट एकेडमी नहीं- पिछले लगभग 26 साल से नार्थ-वेस्ट मुंबई के बोरीवली में स्वामी विवेकानंद स्कूल में, बिना फीस, युवा क्रिकेटरों को कोचिंग दे रहे हैं। उनके मशहूर ट्रेनी में रोहित शर्मा और शार्दुल ठाकुर हैं तो सिद्धेश लाड भी जो इस साल गोवा के लिए ट्रांसफर लेने से पहले रणजी ट्रॉफी में 9 साल मुंबई के लिए खेले- सिद्धेश उनके बेटे हैं। मजे की बात ये कि दिनेश लाड, खुद फर्स्ट क्लास क्रिकेट तक नहीं खेले और 2005 में लेवल-1 कोचिंग इम्तिहान में भी पास नहीं हुए थे। उसके बाद, उन्होंने फिर कभी ये इम्तिहान नहीं दिया।

वे रमाकांत आचरेकर को अपना गुरु कहते हैं। संयोग से आचरेकर 1990 में द्रोणाचार्य पुरस्कार जीतने वाले मुंबई के आखिरी क्रिकेट कोच थे। अब इस लिस्ट में दिनेश लाड का नाम भी जुड़ गया है। वे बदलते समय को जानते हैं- आज सिर्फ वे कोचिंग के लिए नहीं आते जो वास्तव में क्रिकेटर बनना चाहते हैं। आज क्रिकेटर बनकर, आईपीएल से पैसा कमाने की चाह रखने वालों की गिनती ज्यादा है। वे कहते हैं- ‘मैं आसानी से 50-60 लाख रुपये हर महीने, मां-बाप को ये भरोसा दिला कर कमा सकता हूं कि उनका बच्चा आईपीएल खेल जाएगा पर मैं ऐसा नहीं करता। मैं पैसे कमाने के लिए कोचिंग नहीं देता।’

वे तो रेलवे में नौकरी करते थे पर मौका मिलने पर, बिना किसी कोचिंग अनुभव, कैचिंग प्रैक्टिस के साथ कोचिंग शुरू कर दी। ये खबर मिलने पर वेस्टर्न रेलवे ने कोचिंग के लिए कहा- ये सिलसिला शुरू हुआ 1993 में। तब वेस्टर्न रेलवे टीम में संजय बांगर, जैकब मार्टिन और अमित पगनिस जैसे रणजी ट्रॉफी खिलाड़ी भी थे। 1995 में बोरीवली के स्वामी विवेकानंद स्कूल में बेटे को दाखिला मिल गया और वहीं क्रिकेट कोचिंग शुरू कर दी। कोचिंग प्रोग्राम का उद्घाटन प्रवीण आमरे ने किया। धीरे-धीरे आस-पास के, क्रिकेट में अच्छे बच्चों को स्कूल लाए ताकि क्रिकेट टीम मजबूत हो सके। स्कूल टीम से सिद्धार्थ शर्मा को 1997 में मुंबई अंडर-14 टीम के लिए चुना गया।

करियर में सबसे बड़ा मोड़ एक साल बाद आया। हैरिस शील्ड क्वार्टर फाइनल में मजबूत शारदाश्रम विद्यामंदिर स्कूल को हराया। इससे बड़ी मशहूरी मिली। मुंबई अंडर-12 टीम को कोचिंग दी। बोरीवली के एक कोचिंग कैंप में पहली बार रोहित को देखा- उसने 60 रन बनाए और 2 ओवर फेंके। दिनेश लाड उनकी गेंदबाजी से ज्यादा प्रभावित हुए थे। वे लग गए रोहित को स्कूल टीम में लाने के लिए। दाखिला दिला दिया पर जब उनके चाचा को पता चला कि स्कूल की फीस 275 रुपये महीना है तो वे पलट गए और दाखिला दिलाने से इंकार कर दिया। ऐसे में रोहित की पूरी फीस माफ़ करा दी।

रोहित को उन्होंने ओपनर बनाया और पहले मैच में 140 रन टर्निंग प्वाइंट थे। तब भी, कभी सोचा नहीं था कि वह इतने मशहूर बल्लेबाजों में से एक बन जाएंगे। वे बड़ा साफ़ कहते
हैं- ‘क्रिकेटर हमेशा अपना भाग्य खुद बनाता है। कोई किसी को क्रिकेटर नहीं बनाता। एक कोच के तौर पर आप सिर्फ उसे गाइड कर सकते हैं।’

अब दिनेश लाड की एक ही इच्छा है- अपना एक ऐसा ग्राउंड जहां वे नियमित, ज्यादा बच्चों को ट्रेनिंग दे सकें। कई बड़े नेताओं से अपील की पर कोई नतीजा नहीं निकला। मैचों के लिए ग्राउंड किराए पर लेते हैं तो उसमें काफी पैसा खर्च होता है।

बड़ी टीम की कोचिंग के ऑफर मिले पर पर उन्हें छोटे बच्चों के साथ काम करने में मजा आता है- कम उम्र में सही कोचिंग मिल जाए तो उनकी टैलेंट में निखार आ जाता है और वे इसी भूमिका को जारी रखना चाहते हैं।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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