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वैसे तो वर्ल्ड कप 2023 के कई मैच में अंपायरिंग का विवाद देखने को मिला पर टूर्नामेंट के पहले करीबी मैच में पाकिस्तान के दक्षिण अफ्रीका से हारने के बाद जो विवाद हो रहा है- वह सबसे अलग है। बात सिर्फ उस मैच की नहीं है- इस लॉ के सही होने/या न होने पर बहस में शामिल होने वालों की गिनती बढ़ती जा रही है। पाकिस्तान मीडिया तो हार के लिए इस ‘फैसले’ को बहुत कुछ जिम्मेदार मान रहा है। देखिए क्या हुआ था-

दक्षिण अफ्रीका की पारी का 46वें ओवर और एक विकेट बचा था। तब हारिस रऊफ की आखिरी गेंद तबरेज़ शम्सी के पैड पर लगी। अपील लेकिन अंपायर एलेक्स व्हार्फ ने एलबीडब्ल्यू नहीं दिया। बाबर आज़म ने डीआरएस के लिए कहा- अगर ये फैसला बदल जाता तो जीत पाकिस्तान की थी।

थर्ड अंपायर ने बॉल ट्रैकर को देखा- गेंद ऑफ के बाहर पिच हुई और यदि विकेट को हिट करती तो ऑनफील्ड अंपायर का फैसला बदलता लेकिन बॉल ट्रैकर ने गेंद के विकेट से टकराने के बावजूद ‘अंपायर कॉल’ दिखाया और शम्सी को ‘लाइफ’ मिल गई। अगले ओवर में दक्षिण अफ्रीका ने मैच जीत लिया।

तो फिर डीआरएस का फायदा ही क्या हुआ? अंपायरिंग में गलती हटाने के लिए ही तो डीआरएस को लाए थे और यहां तो डीआरएस ही आलोचना के निशाने पर है। मिस्बाह-उल-हक और वसीम अकरम ने  कहा- डीआरएस को हटा दें या अंपायर कॉल से छुटकारा पा लें। हरभजन सिंह ने भी कुछ मिलती-जुलती बात कही। असल में ये समझने की जरूरत है कि बॉल ट्रैकर पर दिखाए जाने पर ये नहीं मान सकते कि गेंद वास्तव में स्टंप्स पर लग रही है- बॉल ट्रैकर तो महज एक प्रोजेक्शन (अनुमान) है कि पैड से टकराने के बाद गेंद का क्या हुआ होगा? यह एक बुनियादी सिद्धांत ‘विकेट हिटिंग’ स्पॉट पर ही काम करता है।

दूसरे शब्दों में- गेंद के पैड से टकराने के बाद, ये प्रोजेक्शन दिखाता है यानि कि गेंद के सफर का अनुमान और कोई गारंटी नहीं कि वास्तव में यही सफर रहा होगा। अगर गेंद का 50% से ज्यादा हिस्सा स्टंप्स से टकराने का अनुमान है तो इसी को पक्का मान सकते हैं कि ऐसा होगा। अगर गेंद का 50% से कम हिस्सा स्टंप्स पर लगने का अनुमान है, तो इससे ये मानते हैं कि कोई गारंटी नहीं कि गेंद स्टंप्स पर लगी होगी। इसलिए, थर्ड अंपायर कहते हैं कि ‘अंपायर्स कॉल’ यानि कि अंपायर के मूल फैसले को मान लो।

हाल फिलहाल यही सिस्टम है- हर टीम के लिए समान इसलिए ये कहना गलत होगा कि पाकिस्तान को नुकसान पहुंचाने के लिए थर्ड अंपायर ने ऐसा किया। ये साथ में ऐसा पहला मौका नहीं कि इस लॉ का प्रयोग हुआ। तो इस बार इतना शोर क्यों? हां, भविष्य में, जैसे-जैसे कैमरे बेहतर होते जाएंगे और गेंद के पैड पर लगने के बाद के सफर का अनुमान करना सही होता जाएगा तो हो सकता है कि ‘अंपायर्स कॉल’ वाली कंडीशन हटा लें।

इन दिनों में स्काई स्पोर्ट्स पर, इस मामले में स्पष्टीकरण की नासेर हुसैन की एक वीडियो खूब वायरल हुई। उसमें नासेर ने कहा कि अगर थर्ड अंपायर ऐसा करता है तो इस का मतलब है डीआरएस सिस्टम उन्हें मदद नहीं कर रहा है। वे इसमें गलती की संभावना को देखते हैं। उनके हिसाब से आजकल गेंदबाज पैड से टकराने वाली लगभग हर गेंद पर अपील करते हैं और विकेट भी लेते हैं। उनके अनुसार चूंकि अनुमान लगाया जाता है इसलिए वास्तव में अंपायर स्टंप्स का आकार बड़ा देखते हैं और बल्लेबाज नुकसान में रहता है।

इस सारे किस्से में सोशल मीडिया पर हरभजन सिंह की बड़ी खिंचाई हुई और एक अपने आपको ‘क्रिकेट पंडित’ समझने वाले ने तो उनके ढेरों टेस्ट खेलने की टेलेंट पर ही सवालिया निशान लगा दिया। वास्तव में हरभजन की दलील भावुकता नहीं, समय की मांग है- अगर डीआरएस का उपयोग कर रहे हैं तो टेक्नोलॉजी इतनी बेहतर होनी चाहिए कि ‘अंपायर्स कॉल’ की जरूरत ही न रहे। सब इस लॉ का आसान स्वरूप देखना चाहते हैं- अगर गेंद स्टंप से टकराती है तो बल्लेबाज आउट अन्यथा नहीं। ऐसे में ‘अंपायर कॉल’ की कोई जरूरत ही नहीं।
इसलिए पाकिस्तानी क्रिकेट प्रेमी यह समझ लें कि डीआरएस ने उनके साथ न तो अन्याय नहीं किया और न ही ये कोई साजिश है। ग्राउंड अंपायर समय-समय पर फैसले में गलतियां करते रहते हैं- ये क्रिकेट का सिर्फ एक हिस्सा है।

मजे की बात ये हैं इसी मैच में, इससे पहले रासी वान डी डुसेन को भी ‘अंपायर कॉल’ पर आउट दिया गया था- उस मामले की ज्यादा चर्चा नहीं हुई हालांकि उसमें एक अलग तमाशा हुआ। इस में, डीआरएस में भी खराबी थी जिससे गलत बॉल ट्रैकिंग दिखा दिया। ये ऐसी खराबी थी कि क्रिकेट प्रेमियों का टेक्नोलॉजी से भरोसा ही उठ जाएगा। इस एलबीडब्ल्यू में, आपके स्क्रीन पर बॉल ट्रेकर की जो पहली पिक्चर आई- उसमें गेंद स्टंप्स पर नहीं लग रही थी लेकिन फ़ौरन ही पिक्चर बदल गई और नई पिक्चर में गेंद स्टंप को हिट कर रही थी। इसी से गफलत पैदा हुई।

क्या हॉकआई ऑपरेटर को कहा गया कि वह बॉल ट्रेकर के साथ छेड़-छाड़ करे? जब इन दोनों पिक्चर को ध्यान से देखें तो पता चलता है कि दोनों में गेंद बल्लेबाज के पैड पर लगभग एक ही स्पॉट पर लगी पर उसके बाद का इसका अनुमानित  सफर बदल गया। हॉकआई की एक सच्चाई को कहीं चर्चा नहीं मिलती। विश्वास कीजिए – हॉक आई है तो एक टेक्नोलॉजी पर इसका कुछ हिस्सा मैनुअल भी है। ऑपरेटर यह तय करता है कि गेंद पैड पर कब लगी? यह सचमुच पेचीदा है क्योंकि पैड तो हिलते/ऊपर-नीचे होते रहते हैं और साथ-साथ कैमरे हर कोण से बहुत ज्यादा फ्रेम नहीं खींचते। इसलिए ऑपरेटर ऐसा करते हुए गलती कर सकता है और उसकी गलती  गेंद के पैड पर लगने के बाद के अनुमानित सफर को एकदम बदल देगी। इसीलिए ‘अंपायर्स कॉल’ को अभी हटा नहीं रहे- एक ऑपरेटर से तो अंपायर बेहतर जानता है। 

आईसीसी ने माना कि इस मामले में ऐसी ही गलती हुई लेकिन गड़बड़ ये हुई कि ग़लती सुधारने से पहले ही टीवी स्क्रीन पर गलत पिक्चर आ चुकी थी। एक अच्छी बात ये रही कि आईसीसी ने गलती को माना।  

इसी मैच में वर्ल्ड कप का पहला कनकशन सब्स्टीट्यूट भी देखने को मिला। मजे की बात ये है कि पाकिस्तान के ही एक पुराने क्रिकेटर उमर गुल ने इस मामले को घोटाले में बदल दिया और उनका आरोप है कि उन्हें नहीं लगता कि शादाब को कोई गंभीर चोट लगी थी। वह ग्राउंड से गए पर थोड़ी देर बाद स्टेडियम वापस आ गए । स्कैन में भी कोई खराबी नहीं आई और इसी पर गुल कहते हैं कि शादाब ने ग्राउंड पर दबाव और आगे के एक्शन से बचने के लिए चोट का झूठा बहाना किया। वे बोले – ‘मैं ऐसे खिलाड़ियों के बारे में जानता हूं जिन्होंने टूटे हाथों से बल्लेबाजी की क्योंकि यह टीम के लिए जरूरी था पर शादाब को तो कुछ भी नहीं हुआ था। क्या ये सही है?

पहली बात तो यह है कि गुल कोई डॉक्टर नहीं हैं जो खिलाड़ियों की चोट पर कमेंट करें। दूसरी बात- चोट के मामले में मैच रेफरी ने फैसला लिया और जरूर आईसीसी के इस तरह के  सबस्टीट्यूशन इजाजत के प्रोटोकॉल को अपनाया होगा।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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