अब से कुछ घंटे बाद लखनऊ में भारत-इंग्लैंड वर्ल्ड कप मैच है। एक तरफ टीम इंडिया जिनका मैच स्कोर 5/5 और सामने इंग्लैंड 1/5 के मैच स्कोर के साथ। सच तो ये है कि वर्ल्ड कप शुरू होने के समय जिस इंग्लैंड टीम के टाइटल बचाव के मुकाबले की बात हो रही थी- अब वे ‘वूडन स्पून’ यानि कि पॉइंट्स तालिका में सबसे नीचे रहने से बचने के लिए जूझ रहे हैं। क्रिकेट में कब क्या हो जाए- इसका कोई भरोसा नहीं।
इंग्लैंड के अब सेमीफाइनल में खेलने की उम्मीद लगभग खत्म है। उनके समर्थक कह रहे हैं कि क्रिकेट में गणितीय चमत्कार कोई अनोखी बात नहीं- इसी बात को इस तरह से भी कह सकते हैं कि वे सेमीफाइनल खेलेंगे या नहीं- ये तय करना अब उन के हाथ में नहीं रहा। बेंगलुरु में श्रीलंका के विरुद्ध 8 विकेट, न्यूजीलैंड से- 9 विकेट, अफगानिस्तान से 69 रन और दक्षिण अफ्रीका से 229 रन की हार और इसी के साथ इंग्लैंड अब नंबर 9 पर है- सिर्फ नीदरलैंड से ऊपर, और इन दोनों टीम के बीच मैच अभी होना है।
इसका मतलब है इंग्लैंड के लिए वर्ल्ड कप में बुरे, पुराने दिनों की वापसी- 1996-2015 के 6 वर्ल्ड कप सबूत हैं। फर्क ये कि इन वर्ल्ड कप में चाहे जितना निराशाजनक खेले हों- कम से कम उम्मीद के साथ मुकाबला किया। इस बार तो वे एक साथ वनडे और टी20 वर्ल्ड कप चैंपियन टीम के तौर पर खेले- इससे पहले और कोई टीम इस रिकॉर्ड के साथ वर्ल्ड कप में नहीं खेली थी। तब भी जो हुआ सामने है।
एक बार सर एलेक्स फर्ग्यूसन ने कहा था- एक कामयाब टीम का राउंड चार साल तक चलता है और फिर उसमें कुछ बदलाव की जरूरत होती है। ये इंग्लैंड ने नहीं किया। ऑस्ट्रेलिया ने 1999-2007 तक लगातार तीन वर्ल्ड कप जीते- हर बार, जीत के लिए वे जिम्मेदार थे जिन्होंने पहले वर्ल्ड कप नहीं खेला था। कुछ फैक्ट नोट कीजिए-
- इंग्लैंड का टेलेंट पर भरोसा कमाल का है। जो टीम श्रीलंका वाले मैच में खेली- उसके सभी 11 खिलाड़ी वे थे जो वनडे/टी20 वर्ल्ड कप जीतने में शामिल थे। 6 तो ऐसे थे जो दोनों जीत में शामिल थे।
- श्रीलंका मैच के सभी 11 खिलाड़ी 30 साल या ज्यादा की उम्र के थे- इंग्लैंड के 791 वनडे के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ। इंग्लिश क्रिकेट में ऐसी डैड्स आर्मी XI की इससे पहले की सिर्फ एक मिसाल है- 1921 के ऑस्ट्रेलिया, हेडिंग्ले टेस्ट में भी हर खिलाड़ी की उम्र 30/30+ थी।
- 6.3 ओवर में 45 रन की ओपनिंग से बुरी नहीं थी। अगले 15.2 ओवर- 5 विकेट गिरे और सिर्फ दो चौके लगे। महीश और एंजेलो मैथ्यूज की ऑफ स्पिन के सामने कोई फुटवर्क था ही नहीं और पेसर ऐसे जो किसी साधारण दर्जे के मैच में भी नजर आ जाएं- तब भी इंग्लैंड के बल्लेबाज उन्हें नहीं खेल पाए।
- अपना एकमात्र छक्का 31वें ओवर में लगाया- डेविड विली ने।
- टी20 से बहुत अलग है 50 ओवर का क्रिकेट- तब भी लियाम लिविंगस्टोन, मोइन अली और सैम कुरेन (जो टी20 वर्ल्ड कप जीत में कामयाब रहे थे) बेंगलुरु में खेले और ये बड़ा खराब फैसला था।
- श्रीलंका के विरुद्ध टीम- 3 खिलाड़ी बदले थे। दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध टीम- 3 खिलाड़ी बदले थे। और किसी टीम ने ऐसा नहीं किया।
- जब कप्तान बटलर नाकामयाब हो रहे हैं तो और किसी के सामने क्या मिसाल बनेंगे- 5 मैच में सिर्फ 95 रन (उनके 2015 वर्ल्ड कप के कप्तान मॉर्गन ने भी पहले 5 मैच में 95 रन बनाए थे)।
- बेन स्टोक्स को यू टर्न से वनडे में वापस लाने का प्रयोग बुरे तरह फ्लॉप रहा।
तो 4 लगातार हार के बाद, इंग्लैंड ने जान लिया होगा कि 50 ओवर वर्ल्ड कप जीतना जितना मुश्किल है- उस टाइटल का बचाव, उससे भी ज्यादा मुश्किल है। 2015-19 में जब वनडे में कुछ पहचान बनाई तो उनकी स्ट्रेटजी की ख़ास बात थी- कम जोखिम पर बल्लेबाजी और बीच के ओवरों में 6 रन प्रति ओवर के करीब या उससे भी ज्यादा बनाना। इस बार इसे भूल गए।खिलाड़ियों को तो ये भी नहीं मालूम कि किस स्ट्रोक को लगाने के लिए सही गेंद कौन सी है?
सबसे ख़राब बात ये कि टीम ने एक भी ऐसी झलक नहीं दिखाई कि आखिरकार किस खूबी ने उन्हें दो बार वर्ल्ड चैंपियन बनाया। उन्होंने इतना बुरा कैसे खेला? इंग्लैंड की टीम का एक और सच जिसे छिपाया गया- जब टीम ने हारने का सिलसिला शुरू किया तो ब्रैंडन मैकुलम को फौरन मुंबई भेजा गया। इससे भी कोई फायदा नहीं हुआ। 50 ओवर क्रिकेट में उनके लिए ये एक युग का अंत है और बड़ा दुखद है।
- चरनपाल सिंह सोबती