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इस वर्ल्ड कप को ‘फॉग’ और ‘स्मॉग’ ने भी चर्चा दिलाने में कोई कमी नहीं रखी- धर्मशाला में अगर फॉग ने इंटरनेशनल मैच पहली बार रोकने का रिकॉर्ड बनाया तो दिल्ली एवं मुंबई सहित अन्य कई शहरों में स्मॉग ने क्रिकेट खेलना मुश्किल कर दिया। इस दौरान खराब AQI की दलील पर आम आदमी के लिए भी रहना कितना मुश्किल रहा और डॉक्टर कैसी हिदायत देते रहे- सब जानते हैं। ऐसे में अगर खिलाड़ी परेशान रहे तो कोई हैरानी की बात नहीं। उस पर वर्ल्ड कप मैचों के शहर में गर्मी!

इंग्लैंड की टीम जिस दिन मुंबई में खेली तो जो रूट ने शोर भी किया- ‘सांस नहीं ले पा रहे हैं, यह हवा खाने जैसा लग रहा है।’ उस पर, उस दिन मुंबई में खेल के दौरान, तापमान 35-37 डिग्री C तक पहुंच गया था जिसने स्मॉग को और भी खराब बना दिया। सिर्फ रुट नहीं- दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध उस मैच के दौरान और कुछ खिलाड़ियों ने भी ठीक से सांस लेने में दिक्कत की शिकायत की। बेन स्टोक्स को इनहेलर का इस्तेमाल करते देखा गया।

विदेशी अखबार और बाक़ी का मीडिया सिर्फ क्रिकेट रिकॉर्ड नहीं, देश की फाइनेंशियल केपिटल के AQI के बारे में भी बता रहा था। ब्रिटिश मीडिया को तो सब जानते ही हैं। वे तो वर्ल्ड कप शुरू होने से पहले से जो लिख रहे हैं- उसका जिक्र न ही करें तो अच्छा है। सोने पर सुहागा- दक्षिण अफ्रीका ने वानखेड़े स्टेडियम में इंग्लैंड को 229 रन से हराया और ये 2019 वर्ल्ड कप चैंपियन की सबसे बड़ी हार थी।

बाद में रूट ने बेंगलुरु में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी मुंबई में हवा के AQI के बारे में बात की- ‘मैं पहले कभी ऐसे हालात में नहीं खेला हूं- इससे ज्यादा गर्म और नमी में खेला हूं पर यहां तो सांस नहीं ले पा रहे हैं। ये अनोखा अनुभव था।’ रुट ने हेनरिक क्लासेन (प्लेयर ऑफ द मैच- 12 चौके और 4 छक्के के साथ 67 गेंद में 109 रन) का जिक्र किया जो ग्राउंड पर वापस नहीं आ पाए। रुट ने कहा- समझ नहीं आ रहा कि आगे कैसे खेलेंगे?

मौसम के जानकार बताते हैं कि एक पोर्ट शहर होने के कारण मुंबई अब तक एयर पॉल्यूशन से बचा रहा पर हाल के सालों में वहां भी नवंबर से जनवरी तक एयर पॉल्यूशन देखने को मिल रहा है। मुंबई इस मामले में अब दिल्ली को टक्कर दे रहा है- दिल्ली तो पहले से दुनिया भर में सबसे खराब AQI के लिए बदनाम है। दिल्ली में इन दिनों में AQI ‘बहुत खराब’ की केटेगरी में है। इसलिए यहां ऑस्ट्रेलिया-नीदरलैंड मैच से पहले दोनों टीम परेशान थीं।  मिशेल मार्श ने कहा- में तो AQI से तभी परेशान होता हूं जब मेरी गोल्फ बॉल हवा में ऊपर जाती है और मैं उसे नहीं देख पाता, इसके अलावा, मुझे कोई टेंशन नहीं है। सभी मैच के रिकॉर्ड लिखते रहे- ऑस्ट्रेलिया मीडिया मुंबई (दुनिया का नंबर 6 सबसे पॉल्यूटेड शहर) और दिल्ली (दुनिया का नंबर 2 सबसे पॉल्यूटेड शहर) का AQI रिकॉर्ड लिखता रहा- दिल्ली का स्कोर सामान्य से 80 गुना ज्यादा रेटिंग था।

स्पष्ट है वर्ल्ड कप के दौरान एयर पॉल्यूशन से खिलाड़ियों की हेल्थ को लेकर चिंता रही है और ये सिलसिला अभी चल रहा है। इंग्लिश क्रिकटरों की प्लेयर्स एसोसिएशन तो बड़े मंच पर स्मॉग और बेहद गर्मी में वर्ल्ड कप खेलने के मुद्दे को उठा रही है। बांग्लादेश-श्रीलंका मैच के लिए दिल्ली का अरुण जेटली स्टेडियम धुंध के कवर में था- ये धर्मशाला वाली धुंध नहीं थी।  प्रोफेशनल क्रिकेटर्स एसोसिएशन के सीईओ रॉब लिंच भारत में ही थे और इस एयर पॉल्यूशन के मामले पर फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल क्रिकेटर्स एसोसिएशन (फिका) के सीईओ टॉम मोफैट से भी बातचीत की- इस समय तो सिर्फ टीमों की सुरक्षा के लिए सही प्रोटोकॉल ही मांग सकते हैं।

श्रीलंका-बांग्लादेश मैच के दिनों में दिल्ली में हालात इतने खराब थे कि AQI और स्मॉग के कारण एक प्रैक्टिस सेशन तक रद्द कर दिया था और उस वक्त ऐसी भी आशंका थी कि मैच रद्द कर दिया जाएगा। श्रीलंका के अस्थमा से पीड़ित खिलाड़ी मास्क पहनकर प्रेक्टिस कर रहे थे। इसके बाद रोहित शर्मा ने भी दिल्ली की हवा को खराब कहा और ये भी कहा कि इस मुद्दे पर भारतीय क्रिकेटर भी दिक्कत महसूस कर रहे हैं।  
आईसीसी एयर पॉल्यूशन और ज्यादा गर्मी को। बारिश जैसी मौसम की स्थिति के बराबर मानती है यानि कि इस बारे में किसी भी समय फैसला लेना अंपायरों और मैच रेफरी के अधिकार में है। ठीक है क्रिकेट किसी भी अन्य खेल की तुलना में मौसम की बदलती परिस्थितियों से जल्दी प्रभावित नहीं होता और अब तो इसे गर्मी के दिनों में भी खेलना आम हो गया है- इसकी आईपीएल से बेहतर मिसाल और क्या होगी? इसीलिए क्रिकेट को अब दिन के तापमान को मात देने के लिए, टेस्ट के अलावा, रात में खेलना बढ़ता जा रहा है। वर्ल्ड कप में भी डे-नाइट मैचों में भीड़ ज्यादा रही है।

अरुण जेटली स्टेडियम में मैच से पहले AQI 460 था जबकि स्टैंडर्ड 0-50 है और डॉक्टर कहते हैं जब AQI 400-500 हो तो ये हेल्थ प्रभावित करता है और जो पहले से बीमारियों वाले हैं उन के लिए खतरा। श्रीलंका के चीफ कोच चंडिका हथुरुसिंघा ने कहा- टीम डॉक्टर खिलाड़ियों पर कड़ी नजर रख रहे हैं। मजे की बात ये कि AQI और स्मॉग पर इतना सब कुछ होता रहा पर मैच के दिन स्टेडियम में जश्न में आतिशबाजी चलती रही। आखिरकार आईसीसी ने दिल्ली और मुंबई में आतिशबाजी पर बैन लगाया। हालात कितने खराब हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लगभग नवंबर के शुरू से दिल्ली में स्कूल बंद हैं। टीमों के पास कोई विकल्प नहीं है और सब खेल रहे हैं। अब तो सोचना ये है कि साल के इन दिनों में दिल्ली और मुंबई में खेलना कितना सही है?

हालांकि श्रीलंका ने इस खबर को गलत बताया कि उन्होंने आईसीसी से मैच को किसी और शहर में ट्रांसफर करने का अनुरोध किया- सिर्फ इतना पूछा कि इस बारे में क्या सोचा जा रहा है? यही बहुत है। स्थानीय स्तर पर स्टेडियम में कुछ इक्विपमेंट लगाकर AQI को कम करने की कोशिश हुई पर सब जानते हैं कि इस मुश्किल का ये हल नहीं। रोहित शर्मा ने तो बिगड़ती हवा पर चिंता में ये भी कहा कि आने वाली पीढ़ियां भारत में ‘बिना किसी डर के’ रह सकें।

आतिशबाजी की बात में एक खास घटना का जिक्र जरूरी है इस हैरानी के साथ कि इसे मीडिया में चर्चा क्यों नहीं मिली? भारत-दक्षिण अफ्रीका वर्ल्ड  कप मैच के दौरान हुई आतिशबाजी से पुलिस के एक घोड़े की मौत हो गई- वॉइस ऑफ रीज़न नाम का ये घोड़ा आतिशबाजी के तेज़ शोर से डरकर एकदम भागा और थोड़ी देर बाद सड़क पर मरा मिला। विराट कोहली का 35वां जन्मदिन मनाने के लिए क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल ने लगभग 150 पटाखों के हवाई प्रदर्शन की स्कीम बनाई गई थी। 5 मिनट में इन हवाई पटाखों ने रात के आकाश को रोशन कर दिया था। तेज़ आवाज़ वाले पटाखों से चौंकने के बाद उसे दिल का दौरा पड़ा। डर से घोड़ा भागा और सड़क पर गाड़ियों से टकरा गया। सिर्फ वही नहीं, माउंटेड पुलिस के अन्य घोड़े भी डर से इधर-उधर भागे पर सड़क पर नहीं गए। एक तरफ दिल्ली और मुंबई में आतिशबाजी पर बैन तो अन्य शहरों में अपने आप इसे बंद कर देना चाहिए था।

कोलकाता पुलिस की ये घुड़सवार डिवीजन भीड़ मैनेजमेंट के लिए स्टेडियम के ठीक बाहर ड्यूटी पर थी। घोड़ों को काबू करने के चक्कर में दो घुड़सवार पुलिसकर्मी भी घायल हुए- वे हॉस्पिटल में हैं। इसके बाद ईडन गार्डन्स में आतिशबाजी रोकी तो क्या फायदा हुआ? ये घटना एक सबक है और ऐसी डिवीजन ड्यूटी पर हो तो ध्यान रहे कि उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी क्रिकेट एसोसिएशन की है।

-चरनपाल सिंह सोबती

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