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एक समय था जब भारत के पास स्पिनरों की प्रसिद्ध चौकड़ी बिशन सिंह बेदी, इरापल्ली प्रसन्ना, श्रीनिवास वेंकटराघवन और भागवत चंद्रशेखर थे। ख़ास तौर पर बिशन बेदी की बात करें तो अक्सर कहा जाता है कि उनकी मौजूदगी ऐसी थी कि अन्य कई बेहतरीन  स्पिनर इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने से रह गए। इस लिस्ट में टॉप पर पद्माकर शिवालकर और राजिंदर गोयल का नाम लिया जाता है। इस लिस्ट को थोड़ा बड़ा करें तो अगला नाम 70 और 80 के दशक की रेलवे रणजी टीम के खिलाड़ी सैयद हैदर अली का होगा- खब्बू ऑर्थोडॉक्स स्पिनर जो बड़े अच्छे बल्लेबाज भी थे। हैदर अली को याद करने की वजह – हाल ही में 79 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया प्रयागराज में। लंबी बीमारी से जूझ रहे थे।

आज जबकि टीम ऑलराउंडर की तलाश में जूझती हैं- हैदर ने कई साल रेलवे के लिए ये भूमिका निभाई। रेलवे टीम को रणजी ट्रॉफी में एक पहचान दिलाई और खुद दलीप ट्रॉफी भी खेले।रिकॉर्ड : रेलवे के लिए 113 मैचों में 366 विकेट,19.17 औसत, 9/25 सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन, तीन 10-विकेट और 25 पांच-विकेट, 3125 रन बनाए- तीन शतक और 10 अर्धशतक शामिल। फर्स्ट क्लास क्रिकेट में रेलवे के लिए सबसे ज्यादा विकेट और रेलवे के उन तीन खिलाड़ियों में से एक, जिनके नाम 2000 रन और 200 विकेट का डबल।

उन्हें बिशन सिंह बेदी की मौजूदगी में इंटरनेशनल क्रिकेट न खेल पाने का कोई गम नहीं था। वे खुद कहते थे कि बेदी भारत के नंबर 1 और उनके बाद पद्माकर शिवालकर और राजिंदर गोयल। एक तो बेदी की मौजूदगी, उस पर सेंट्रल जोन और उसमें भी बेहद कम ग्लेमर वाली रेलवे- ये सभी फैक्ट हैदर के करियर को बैक फुट पर ले गए। वे बहरहाल बड़े खुश थे। करनैल सिंह स्टेडियम में उनके शानदार प्रदर्शन की कई स्टोरी सुनाई जाती हैं। उनके बेटे रज़ा अली ने भी फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेला- हिमाचल व रेलवे से।

ये बात बहुत कम चर्चा में रही कि हैदर ने करियर की शुरुआत खब्बू तेज गेंदबाज के तौर पर की थी पर रेलवे के पूर्व कप्तान विलियम घोष के कहने पर स्पिन फेंकने लगे। ये करियर का टर्निंग पॉइंट था। 1987 में रिटायर होने के बाद भी रेलवे क्रिकेट से जुड़े रहे और अपनी एक अधूरी हसरत को पूरा होते देखा। उन्हें हमेशा इस बात की निराशा रही कि वे कभी रणजी ट्रॉफी  नहीं जीते पर जब रेलवे ने 2001-02 और 2004-05 में रणजी ट्रॉफी जीती, वे उनके सेलेक्टर थे। वह मदद देने वाले ट्रैक पर तो बेहद  खतरनाक थे ही, किसी भी पिच पर गेंद स्पिन करा सकते थे। एक सज्जन व्यक्ति, सलाह देने के लिए हमेशा तैयार।

भारत और रेलवे के पूर्व ऑलराउंडर संजय बांगर से बेहतर कौन हैदर के बारे में बता सकता है- वे उन्हें ‘दिग्गज’ कहते हैं और ऐसे क्रिकेटर जिन्हें बड़ा सम्मान दिया जाता था। रेलवे के पूर्व खिलाड़ी और कोच विनोद शर्मा तो हैदर को रेलवे क्रिकेट का ‘गॉडफादर’ कहते हैं। करनैल सिंह स्टेडियम में जम्मू-कश्मीर के विरुद्ध मैच खेल रहे रेलवे टीम के खिलाड़ियों ने हैदर के सम्मान में खेल से पहले दो मिनट का मौन रखा। हैदर अली को हमेशा एक जांबाज क्रिकेटर माना जाता था, जिसे भारत के लिए खेलना चाहिए था। सबसे बड़ी बात एक बेहतर इंसान थे- असली टीम मैन।

हैदर अली 1963-64 में पहली बार यूपी रणजी टीम में चुने गए थे। बाद में रेलवे टीम में आए। मजीदिया इस्लामिया इंटर कॉलेज के स्पोर्ट्स टीचर मास्टर मुस्तफा की बदौलत हैदर यूपी रणजी ट्रॉफी टीम में आए थे पर वे चाहते थे कि उन्हें रेलवे में नौकरी मिल जाए। जल्दी ही लाला अमरनाथ ने उन्हें रेलवे की तरफ से खेलने के लिए चुन लिया। इसके बाद जो हुआ- वह इतिहास है।

उनके यादगार मैचों में से एक- 1984-85 सीजन में रणजी ट्रॉफी मैच में नागपुर में विदर्भ के विरुद्ध 120 रन बनाए। रेलवे के 7 विकेट गिर चुके थे और पारी की हार के कगार पर थे। उनके बिना वह मैच हार जाते। इसी तरह 1977-78 में जयपुर में दलीप ट्रॉफी के क्वार्टर फाइनल में ईस्ट जोन को हराने में मदद की- हैदर और राजेंद्र सिंह हंस ने 20 में से 17 विकेट मिल कर लिए थे। तब भी सेंट्रल ने उस साल दलीप ट्रॉफी नहीं जीती थी- वेस्ट जोन विजेता थे।

एक किस्सा याद रखने वाला है। पुणे में वेस्ट जोन के विरुद्ध सेमीफाइनल में विवादास्पद परिस्थितियों में हैदर का रन आउट होना बड़ी अजीब घटना था। तब वे नार्थ जोन टीम में थे। हैदर और सुरिंदर अमरनाथ बल्लेबाजी कर रहे थे। एक गेंद को मिड विकेट की तरफ पुल किया हैदर ने और अंपायर ने 4 का इशारा कर दिया। दूसरी ओर, तब भी रामनाथ पारकर गेंद के पीछे भाग रहे थे और उन्होंने इशारा किया कि यह बाउंड्री नहीं है। पारकर ने गेंद को रोका और विकेटकीपर सुहास तालीम को थ्रो कर दिया। हैदर बाउंड्री के इशारे के बाद क्रीज से बाहर थे और लेग अंपायर ने उन्हें रन आउट घोषित कर दिया। एक ऐसी गेंद पर आउट जिस पर बाउंड्री शॉट का इशारा हो चुका था।

अगर कभी रेलवे स्पोर्ट्स बोर्ड, करनैल सिंह स्टेडियम के किसी स्टैंड को, किसी क्रिकेटर का नाम देने का फैसला लेता है तो ये नाम हैदर अली का होना चाहिए।


 –चरनपाल सिंह सोबती

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