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भले ही टेस्ट सीरीज शुरू हो चुकी है पर साथ-साथ ख़बरों में आईपीएल भी है। सबसे नई खबर ये है कि टाटा ग्रुप ने आईपीएल के 2024-28 सालों के लिए टाइटल स्पांसर अधिकार हासिल कर लिए हैं यानि कि टाटा आईपीएल खेलना जारी रहेगा। अधिकार की कीमत- 2500 करोड़ रुपये और बीसीसीआई भाग्यशाली है कि इस रिकॉर्ड तोड़ कीमत पर टाइटल बेच सके। लीग के इतिहास में, टाइटल के लिए, ये अब तक की सबसे बड़ी स्पांसरशिप है- प्रति सीज़न 500 करोड़ रुपये कोई छोटी रकम नहीं। टाटा ग्रुप ही 2022 और 2023 में भी आईपीएल के टाइटल स्पांसर थे और डब्ल्यूपीएल (महिला प्रीमियर लीग) के टाइटल होल्डर भी वे ही हैं।

इन सभी गिनती से ज्यादा ख़ास बात ये है कि बीसीसीआई को झटका नहीं लगा- जो हालात चल रहे हैं, उसमें टाइटल स्पांसर ढूंढना आसान नहीं था। आईपीएल के सफर में एक और पेज जुड़ गया- आईपीएल की मजबूत स्थिति का एक और सबूत। इस डील की कुछ ख़ास बातें नोट कीजिए :

  • टाटा ग्रुप के पास, पिछले कॉन्ट्रैक्ट की बदौलत ‘राइट टू मैच’ का अधिकार था जिसका मतलब है किसी भी अन्य कॉर्पोरेट के सबसे बड़े ऑफर की बराबरी का ऑफर देकर टाटा ग्रुप को ये अधिकार मिल सकते थे।
  • इस बार सबसे बड़ा (दूसरे शब्दों में अकेला) ऑफर आदित्य बिड़ला ग्रुप ने दिया- 5 साल के लिए 2500 करोड़ रुपये का और जब टाटा ग्रुप को ये ऑफर बताया गया तो बराबरी के अधिकार का प्रयोग कर- टाटा ने उनसे टाइटल स्पांसर बनने का मौका छीन लिया।
  • 2022 में विवो को टाइटल स्पांसर के तौर पर हटाया था और टाटा आईपीएल खेलने का सिलसिला शुरू हुआ। अब 2028 तक अधिकार उनके पास हैं और टाटा ग्रुप की किसी भी कंपनी का नाम टाइटल स्पांसर के तौर पर आ सकता है- अधिकार ग्रुप को मिले हैं, किसी एक ख़ास कंपनी को नहीं। 
  • विवो क्यों हटे थे? इस सवाल का जवाब ये है कि भारत और चीन के बीच राजनयिक तनाव की वजह से आईपीएल-विवो कॉन्ट्रैक्ट पर आंच आई। ऐसे में विवो ने कॉन्ट्रैक्ट से हटने की बात की पर बीसीसीआई ने सिर्फ इसी शर्त पर उन्हें कॉन्ट्रैक्ट से बीच में ही रिलीज करने की सहमति दी कि बीसीसीआई को कोई नुकसान नहीं होगा। बात साफ थी- बचे सालों के लिए, ज्यादा नहीं तो कम से कम बराबर रकम देने वाला स्पांसर मिले।
  • ऐसे में टाटा ग्रुप ने 2022 में ऑफर तो दिया पर वे प्रति सीजन 375 करोड़ रुपये ही देने के लिए तैयार थे जबकि विवो का कॉन्ट्रैक्ट इससे बड़ा था (440 करोड़ रुपये प्रति सीजन)। नतीजा- टाटा ग्रुप अपने ऑफर पर नए स्पांसर बने और बिना किसी वसूली, 2022 एवं 2023 में कॉन्ट्रैक्ट की बाकी की रकम विवो ने भरी। ये डील होने पर बीसीसीआई ने टाटा ग्रुप को राइट टू मैच का अनूठा ‘हथियार’ दे दिया। इसलिए आदित्य बिड़ला ग्रुप के 2500 करोड़ रुपये की बिड पर अधिकार मिल गए टाटा ग्रुप को बिना ज्यादा रकम दिए।
  • इस बार नए टाइटल स्पांसर की तलाश में बीसीसीआई ने कुछ कड़ी शर्तें रखी थीं : –
    • किसी भी चीनी कंपनी या ब्रांड के बिड को नहीं माना जाएगा।
    • उन देशों से किसी कंपनी को ये अधिकार नहीं मिलेंगे जिनके भारत के साथ संबंध दोस्ताना नहीं हैं। इसमें किसी देश का नाम नहीं बताया गया पर विवो के कॉन्ट्रैक्ट की बदौलत सब जानते थे कि इशारा किस तरफ है।
    • यहां तक कि दावेदार का किसी भी तरह से ऐसे किसी भी देश के साथ संबंध न हो। इसीलिए हर दावेदार को बिड से पहले ही कंपनी में शेयर होल्डिंग का एक चार्ट और प्रमोटर/मालिकों की पूरी जानकारी देने के लिए कहा गया।
    • हर रिपोर्ट में लिखा गया कि फैंटेसी लीग कंपनियों को बिड की इजाजत नहीं है- इस गलत रिपोर्टिंग के बावजूद बीसीसीआई की तरफ से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। बिड डॉक्यूमेंट के अनुसार- सट्टेबाजी से जुड़ी फैंटेसी लीग कंपनी बिड नहीं कर सकती थी। उदाहरण के लिए: ड्रीम11 बिड कर सकती थी- ए23 नहीं। इस गलत प्रचार/ऐसी शर्तों ने भी स्पांसर भगा दिए।
  • चूंकि खुद टाटा ग्रुप ने पिछले दो साल के कॉन्ट्रैक्ट में प्रति सीजन 375 करोड़ रुपये दिए थे-इसीलिए इस बार टाइटल अधिकार बेचते हुए इसी रकम को रिजर्व प्राइस रखा।

तो इस तरह, इसे पढ़कर यूं लगता है कि सब सही और साफ़-साफ़ हो गया। कुछ और सच भी है। आदित्य बिड़ला ग्रुप को इन अधिकार की इतनी बेताबी थी कि टाटा ग्रुप के ‘राइट टू मैच’ के बाद भी वे बीसीसीआई को कुछ और रकम देने के लिए तैयार थे बशर्ते अधिकार उन्हें मिल जाएं। वे इस बार बिड करने वाली अकेली कंपनी थे और अब ये कहना गलत नहीं होगा कि उनके बिड/ऑफर से सबसे ज्यादा बीसीसीआई को फायदा हुआ। बीसीसीआई को वास्तव में टाटा ग्रूप को ‘राइट टू मैच’ का अधिकार देने का नुकसान हुआ- किसी भी बड़ी कंपनी/ग्रुप ने अधिकार खरीदने की कोशिश नहीं की क्योंकि बड़े ऑफर के बावजूद अधिकार मिलने की कोई गारंटी नहीं थी। बीसीसीआई में जिसने भी ऐसा अधिकार टाटा को देने के बारे में सोचा- वह ‘धन्य’ है।

बिड डॉक्यूमेंट की एक और ख़ास बात को कहीं चर्चा नहीं मिली। जो टाइटल अधिकार बेचे गए (500 करोड़ रुपये प्रति सीजन) वे वास्तव में उस आईपीएल सीजन की कीमत है जिसमें 74 मैच खेले जाएंगे। अगर कॉन्ट्रैक्ट के दौरान बीसीसीआई ने मैच की गिनती बढ़ाकर 84/94 कर दी तो टाइटल स्पांसर को प्रति मैच अधिकार कीमत के हिसाब से बढ़े मैच की गिनती के लिए भी पैसा देना होगा। इससे ये भी अंदाजा हो जाता है कि बीसीसीआई में, जल्दी ही आईपीएल सीजन में मैच की गिनती बढ़ाने पर सोचा जा रहा है।

एक और बड़ी मजेदार बात ये कि भारत में क्रिकेट और ख़ास तौर पर आईपीएल से नाम जुड़ना बहुत बड़ी बात है पर अब तक जिन ब्रांड/ग्रुप का भी नाम आईपीएल टाइटल के साथ जुड़ा- उनके साथ कोई चमत्कार नहीं हुआ। इसमें दोष क्रिकेट या आईपीएल को नहीं दे सकते- साफ़ है कि सिर्फ आईपीएल के साथ नाम जोड़ने से काम नहीं चलने वाला। टाइटल अधिकार खरीदने वाले को खुद भी, फायदा उठाने के लिए क्रिकेट को समय, एनर्जी और इनवेस्टमेंट देना होगा। इसे एक प्रोजेक्ट की तरह से लेंगे तभी फायदा होगा। 

आईपीएल, की भारत में लोकप्रियता सभी के सामने है- इसके सामने कोई नहीं और सबूत ये कि आईपीएल 2023 ने ही टीवी पर 500 मिलियन से अधिक दर्शकों और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लगभग 450 मिलियन दर्शकों को आकर्षित किया। डीएलएफ, पेप्सी, विवो और ड्रीम 11 के पास पिछले टाइटल अधिकार अधिकार थे और इनकी कीमत 2008-12 के लिए डीएलएफ द्वारा दिए गए 40 करोड़ रुपये प्रति सीजन से बढ़कर अब 500 करोड़ रूपये प्रति सीजन हो गई है। 

  • चरनपाल सिंह सोबती

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